त्रिवेन्द्र ने अब तक मिथक को तोड़ उत्तराखंड में रचा नया इतिहास

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  • त्रिवेंद्र ने प्रतिद्वंदियों के सामने खींच डाली एक बड़ी लकीर  
  • वोट शेयर रिकॉर्ड :भाजपा का वोट शेयर पहुंचा 60 फीसदी पार 
  • मोदी के जादू और त्रिवेन्द्र सिंह रावत के कार्यों  पर लगी मुहर

राजेन्द्र जोशी 

देहरादून  : उत्तराखंड में एक मिथक था, यहां जिस दल की सरकार प्रदेश की सत्ता में काबिज होती रही थी परिणाम राज्य के अस्तित्व में आने के बाद से उस राजनीतिक दल के खिलाफ ही जाते रहे थे, लेकिन इस लोकसभा चुनाव में प्रदेश की जनता ने मोदी के जादू और त्रिवेन्द्र सिंह रावत के कार्यों  पर मुहर लगाते हुए मुख्यमंत्री के विरोधियों की लाख कोशिश के बाद पिछले सभी कयासों को झुठलाते हुए प्रदेश की पांचों सीटें भाजपा की झोली में डालते हुए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने नाम एक ऐसा रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया है जिससे उनका सियासी कद अपने विरोधियों के मुकाबले काफी बढ़ गया है। इतना ही नहीं मार्च 2017 के बाद सीएम त्रिवेंद्र के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी जितने भी चुनाव लड़ी है उनमें भाजपा का परचम लहराता ही रहा है। लेकिन इस लोकसभा चुनाव में पांच की पांच सीटें रिकॉर्ड मतों से जिताकर मुख्यमंत्री  त्रिवेंद्र ने प्रतिद्वंदियों के सामने एक बड़ी लकीर तो जरूर खींच दी है, जो सूबे के राजनीतिक इतिहास में एक नज़ीर के रूप में जानी जाएगी।

हालांकि देशभर में लोकसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा गया लेकिन जिस तरह टिकट वितरण से लेकर चुनाव प्रबंधन में सीएम त्रिवेंद्र ने जो सक्रिय भूमिका निभाई उससे नय़ा उत्तराखंड में भाजपा का एक नया इतिहास भी बन गया है।

गौरतलब हो कि उत्तराखंड गठन के बाद से अब तक प्रदेश में चार बार लोकसभा चुनाव हुए हैं। लेकिन दिलचस्प बात ये रही है कि राज्य में जिस पार्टी की सरकार रही है, लोकसभा चुनाव में उस पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा। यही नहीं चुनाव के बाद सत्ताधारी पार्टियों में गुटबाजी, अंतर्कलह और सत्ता परिवर्तन के दौर देखे गए, लेकिन त्रिवेंद्र रावत ने इस परिपाटी को बदलने में सफल रहे हैं ।

वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में राज्य में कांग्रेस की सरकार थी तब कद्दावर नेता एनडी तिवारी राज्य के मुख्यमंत्री थे। कयास लगाए जा रहे थे  कि तिवारी की छवि के बूते कांग्रेस राज्य की पांचों सीटों पर विजय हासिल करेगी। लेकिन हुआ एकदम उल्टा। कांग्रेस को केवल नैनीताल सीट पर ही जीत मिल सकी, जबकि हरिद्वार में समाजवादी पार्टी चुनाव जीती। शेष तीन सीटें भाजपा के खाते में आगई।

वहीं लोकसभा चुनाव में एंटी इनकंबेंसी का यह दौर वर्ष 2009 में देखा गया। तब भाजपा के जनरल बीसी खंडूड़ी राज्य के मुखिया थे, भाजपा को उम्मीद थी कि पार्टी अच्छा प्रदर्शन करेगी, वहीं भाजपा ने ”खंडूरी है जरुरी” का उसी दरमियान नारा भी दिया और तत्कालीन पार्टी के रणनीतिकारों ने सोचा  की शायद खंडूरी  के चेहरे पर वह सूबे की पाँचों लोकसभा सीट जीत  जाएगी लेकिन परिणाम इसके विपरीत मिले और पार्टी को पांचों  सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ा और इस नाकामी के चलते खंडूड़ी को मुख्यमंत्री तक की कुर्सी गंवानी पड़ी।

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में राज्य की बागडोर हरीश रावत के कंधों पर थी और हरीश रावत पर 2009 की तरह ही कांग्रेस को पांचों सीटें जिताने का दबाव था। लेकिन जब चुनाव नतीजे आए तो कांग्रेस हैरान और परेशान थी कि आखिर कैसे भाजपा ने पांचों सीटों पर कब्जा जमा लिया। इसके बाद हरीश रावत के खिलाफ उनकी ही पार्टी के नेताओं ने बगावत का झंडा उठा लिया, दो साल बाद 2016 में उत्तराखंड को राजनीतिक अस्थिरता के दौर से भी गुजरना पड़ा।

इधर वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों को भी उत्तराखंड में बड़े परिवर्तन की आहट के तौर पर देखा जा रहा था। हालांकि समूचा लोकसभा चुनाव प्रधानमंत्री मोदी पर केंद्रित था, लेकिन चुनाव के नतीजों से बहुत कुछ बदलने के कयास लगाए जा रहे थे। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र के सामने भी यह एक बड़ी चुनौती थी। इससे पहले सीएम त्रिवेंद्र के नेतृत्व में भाजपा थराली उपचुनाव और नगर निकाय चुनाव में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर चुकी थी। लेकिन अब सीएम त्रिवेंद्र का लिटमस टेस्ट बाकी था। जनता मोदी के नाम पर झूम रही थी, लेकिन अंदरखाने ये शक था कि राज्य सरकार के कामकाज के आधार पर कोई उलटफेर तो कहीं न हो जाय ? कांग्रेस ने अपने प्रदेश अध्यक्ष, पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री को चुनाव में उतारकर भाजपा को तीन सीटों पर कड़ी चुनौती दी। हालांकि राजनीति समझने में माहिर होते जा रहे सीएम त्रिवेंद्र इस मूड को अच्छी तरह भांप रहे थे। इसलिए उन्होंने उत्तराखंड में पूरे प्रचार का जिम्मा अपने कंधों पर ले लिया।

इस लोक सभा चुनाव में मुख्यमंत्री  त्रिवेंद्र रावत ने प्रदेश के कोने -कोने जाकर ताबड़तोड़ तरीके से 55 रैलियां की। उन्होंने हर प्रत्याशी के पक्ष में जनसभाएं की, कई रोड शो किए। केंद्र सरकार के कामकाज को जनता के सामने रखा तो राज्य सरकार की उपलब्धियों का जिक्र करना भी वे नहीं भूले। सीएम त्रिवेंद्र ने जनता के मूड को भांपते हुए सैनिकों के मुद्दे को भुनाया तो गांवों, किसानों और महिलाओं की बात भी की। इसी का नतीजा है कि भारतीय जनता पार्टी ने राज्य की पांच की पांच लोकसभा सीटें जीती। वोट शेयर के मामले में भी भाजपा ने रिकॉर्ड बनाया।

सीएम त्रिवेंद्र अपनी रैलियों में कहते थे कि सीटें तो हम जीतेंगे ही, लेकिन वोट शेयर के भी रिकॉर्ड तोड़ेंगे, और हुआ भी ऐसा ही। पिछली बार 55 प्रतिशत वोट भाजपा को मिले थे, लेकिन इस बार 60 फीसदी से ज्यादा वोट भाजपा को मिले हैं । इसी के साथ यह मिथक भी टूटा कि जिस पार्टी की राज्य में सरकार होती है लोकसभा चुनाव में उसे हार का सामना करना पड़ता है। बहरहाल इन नतीजों के बाद उत्तराखंड में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का सियासी कद तो जरूर बढ़ा है।