‘चिपको’ आन्दोलन की वर्षगांठ रैणी के नाराज ग्रामीणों ने नहीं मनाई

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  • ग्राम पंचायत डांग के ग्रामीणों ने मनाया चिपको आंदोलन दिवस 

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

जोशीमठ: चिपको आंदोलन के जरिये पूरे विश्व को पर्यावरण संरक्षण का पाठ पढ़ाने वाली गौरा देवी के रैणी गांव में चिपको आंदोलन की वर्षगांठ पर इस बार वीरानी छायी रही। ग्रामीणों का आरोप था कि पावर प्रोजेक्ट कंपनी ने जंगल जाने का रास्ता ही बंद कर दिया, जिस कारण वह चिपको आंदोलन की वर्षगांठ नहीं मना सके।

गौरतलब हो कि आज के ही दिन 1973 में रैणी में गौरा देवी के नेतृत्व में गौरा देवी की सहेलियों ने पेड़ पर चिपककर पगराड़ी के जंगल में पेड़ों को काटने से बचाया। महिलाओं ने ब्रिटिश कंपनी के मजदूरों को वहां से खदेड़ा था। यहां करीब 2400 से अधिक पेड़ों का कटान होना था, जिसे रोकने के लिए 27 महिलाओं ने जान की बाजी लगाकर सरकार के प्रयास को विफल किया था।

तब से हर साल रैणी गांव के ग्रामीण पगराड़ी के गौरा देवी स्मृति वन में रक्षा सूत्र बांधने जाते थे। इस साल ग्रामीण वहां भी नहीं गए। क्षेत्र पंचायत सदस्य संग्राम सिंह का कहना है कि रैणी में ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट ने ग्रामीणों को रास्ता बंद कर दिया है, जिससे वे गौरा देवी स्मृति वन में नहीं जा पाए। जिससे ग्रामीणों में आक्रोश है। वन पंचायत सरपंच सुरेंद्र सिंह, महिला मंगल दल अध्यक्ष मुल्की देवी, चंद्र सिंह वीणा देवी आदि ने ऋषि गंगा कंपनी के कार्यों का विरोध करने की बात कही है।

वहीं चिपको दिवस पर मुख्यालय के समीप ग्राम पंचायत डांग के ग्रामीणों ने चिपको आंदोलन मनाया। महिलाओं ने ग्राम प्रधान रजनी नाथ, सरपंच वनपंचायत सुलोचना कलूड़ा और महिला मंगल दल की अध्यक्ष कुसुम गुसाईं के नेतृत्व में अपने पुश्तैनी जंगल के वृक्षों पर रक्षासूत्र व राखियां बांधकर पर्यावरण, वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण का संकल्प लिया। डांग गाँव के ग्रामीण ने कहा कि ग्रामीण प्रतिवर्ष 26 मार्च को चिपको दिवस, रक्षाबंधन, स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस व अन्य कई महत्वपूर्ण अवसरों पर जंगल में एकत्रित होकर अपने जंगल एवं पर्यावरण को संरक्षित रखने का संकल्प लेते हैं।

वर्ष 1977-78 में प्रसिद्ध पर्यावरणविद् पद्मविभूषण सुन्दरलाल बहुगुणा ने डांग गांव के इस जंगल को कटने से बचाने के लिए ग्रामीणों के साथ मिलकर चिपको आंदोलन किया व इसे कटने से बचाया। चिपको आन्दोलन की विरासत के रूप में ग्रामीणों को मिले इस जंगल को ग्रामीणों ने आज भी एक धरोहर के रूप में संरक्षित व पोषित किया हुआ है। ग्रामीणों ने समय-समय पर विभिन्न प्रजाति के सैकड़ों पौधों का रोपण और संरक्षण करके इस वन व वन्यजीव क्षेत्र को और भी अधिक समृद्ध किया है। चिपको आंदोलन की वर्षगांठ पर ग्रामीणों ने रक्षासूत्र के साथ-साथ पूर्व में लगाए पौधों की निराई-गुड़ाई भी की।इस मौके पर डॉ. नागेन्द्र जगूड़ी, सुन्दर सिंह गुसाईं, चतर सिंह गुसाईं, शरद गुसाईं, विजयलक्ष्मी राणा, बिजना गुसाईं, अनिता नाथ, रजनी देवी, समुद्री बिष्ट, सीता नाथ, बसंती गुसाईं, शकुन्तला कलूड़ा, बचना गुसाईं, चैता देवी, चिन्द्री देवी, उषा कलूड़ा, अनिता बिष्ट, बृजा देवी, कुशाली नाथ, संजना गुसाईं, कलादेवी, सुनैना नाथ, इन्द्रा देवी, कलावती कलूड़ा, धर्मा बिष्ट, संगीता नाथ, बबीता नाथ, रजनी, डबली देवी, सुनीता राणा आदि कई ग्रामीण शामिल थे।