आवाज उठ रही है ,हमने यह उत्तराखंड तो नहीं मांगा था !

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  • हम इसे आदर्श राज्य बनाना चाहते थे

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

जिन्होंने उत्तराखंड मांगा था, जो इसके लिए लड़े उनके मन में सपने थे। एक सुंदर सलौना सा राज्य होगा। अपना राज्य अपनी सरकार। क्या वे सपने साकार हुए। आज फिर उत्तराखंड से आवाज उठ रही है। हमने यह उत्तराखंड नहीं मांगा था। हम इसे आदर्श राज्य बनाना चाहते थे। उत्तराखंड की भावनाओं और जन आह्वान  करता यह गीत लोगों को जगाने के लिए नया जनगीत है जिसे सुप्रसिद्ध लोकगायिका रेखा धस्माना उनियाल ने गाया है तो अनमोल प्रोडक्शन यह गीत आपके सामने लाया है। यह स्वर आपके भी हैं तो हमारे भी हैं और उत्तराखंड के जन-जन के भी हैं क्योंकि यह गीत आपका है।

बोल मेरा हुडका अब तू बोल
गढ कुमो का सुपन्या बोल मां बैण्यूं की खौरी बोल
बोल मेरा हुडका अब तू बोल

(मंगल और आह्वान वाद्य हुडका अब तेरी गूंज की जरूरत है। अब तू ही इन पहाडों को फिर से जगा। गढ कुमों के जो सपने थे उनका ध्यान दिया राज्य बनने के बाद भी मां बहनों की विपदा दूर नही हो रही। तू फिर से लोगों में चेतना जगा। सोए उत्तराखंड जगा।)

गरसैण का गीत लगो, भड का गीत पंडो नचो
डांडा नरसिंह बुलो त्यौ डांडियों फिर जगो .
माधो का मलेथा बोल , बोल मेरा हुडका बोल

(गैरसैण पहाडी क्षेत्रों के विकास का प्रतीक है। यानी पहाडों के गीत गाओ, गैरसैण और तमाम गांव कस्बो पर ध्यान दो। उत्तराखंड में जगर पांडव पूजने की परंपरा रही है, तू पंडो नचा, वीर भडों के गीत सुनाकर लोगों को अपने अधिकारों के लिए फिर से तैयार कर। याद रखो यह भूमि माधो सिंह वीर चंद्र सिंह जसवंत सिंह की है।)

कन लडी छे तीलू बाला, गौरा देवी न बचै डाला
नारी का हाथ जगी रे ज्वाला जै नंदा जै हिवांला
ठगुली और बिश्नी का बोल, बोल मेरा हुडका अब तू मोल

(यह भूमि नारी शक्ति की है। यहां के जन आंदोलनों में नारी प्रेरणा बनी है। तीलू का साहस, गौरा देवी का प्रकति के लिए लडना गौरव गाथा है। शराब माफिया और हरिद्वार में सन्यासिनो के हित के लिए लडने वाली टिंचरी माई और स्वतंत्रता आंदोलन में बागेश्वर के तट पर हजारों महिलाओं क नेतृत्व करने वाली बिश्नी देवी कुंती देवी की गाथा का स्मरण करने का वक्त है। ये भूमि है जहां विशाल हिमालय है नंदा देवी के प्रतीक नंदा की प्रसिद्ध ऊंची चोटी है।) 

चूल्हा भड्डू तोर की दाल, मुनस्यरी की राजमा लाल
फाणु डुबका को उमाल , चल रे भुला थोडा उकाल
मां का हाथ मूला को झोल , बोल मेरा हुडका अब तू बोल

(यहां की संस्कृति परंपरा खान पान रीतिरिवाज को याद करो। गांव की ओर लौटो या रह रहकर आते रहो। थीडी सी ऊंचाई है। पर उस वक्त को याद रखो, वो भड्डू में बनती दाल, फाणु, डुबका, और मां कितने दुलार से मूला का साग बनाती थी। अपने पहाडों को फिर से याद करो। बदलते दौर में भी कुछ चीजे जिन्हें संजोकर रखो।)

डबडबादीं तेरी आंखी, गौ गदिन्यु कैन झांकी
ह्यूंद हवा सरसरांदी जुकुडी आग झुरझुरांदी
तेरी डांडियो की लगी रे मोल
बोल मेरा हुडका अब तू बोल

(किस तरह पलायन हुआ है। गांव सूने हैं, वहां पथराई आंख किसी के इंतजार में डबडबाती है. वहां सर्द हवांए हैं लेकिन जी जलता है। तेरे पहाड़ डुकडे टुकड़ें बिकता जा रहा है। तू कब आएगा। कब देखेगा अपने गांव खेत खलियानों को )

कब तलक जी खैरी खौला, खाली रैगे हमरु झोला
खौल्या रैग्या हम क्या बोला, यूं बाटो हम सजौला
गिर्दा राही कू बाजो बोल, बोल मेरा हुडका बोल

(आखिर हम कब तलक कष्ट उठाएंगे, राज्य कुछ मुट्ठी भर लोगों के लिए बना। हमारे हाथ कुछ नहीं आया। हम तो अवाक रह गए , यहां का जीवन वही रह गया। गांव भूतहा हो गए । हुडका तेरा साथ कभी गिरदाजी ने जनगीतों में और राहीजी ने जागर लोकपरंपरा के गीतों को गाने में लिया था। तू पवित्र मंगलकारी साज है। इन उजडे वीरान हो चुके गांवों को अब फिर से सजाने का वक्त आया है। हताशा छोड़ कर उठने का वक्त है)

बोल मेरा हुडका बोल , पित्रो की भूमि च बोल
मां वैण्यू की खौरी बोल, गढ कुमो जोनसार बोल

जनआंदोलनकारी गिर्दा जी के जैंता एक दिन त आलो दिन ये दुनि मां .नरेंद्र सिंह नेगी के उठा उत्तराखंडियों जैसे जनगीतों के साथ इस जनगीत को भी धरना प्रदर्शन जुलूस में सुना रहे हैं। इसमें लोगों को फिर से एकजुट होने, अपनी संस्कृति परंपरा और इतिहास की याद दिलाई गई है। साथ ही अहसास कराया गया है कि हुडका वाद्य अब तुम ही लोगों को जगाओ। लोग बहुत निराश हैं उन्हें प्रेरित करो।

 

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