स्व चंद्र सिंह राही के बेटे राकेश भारद्वाज का पिता की परंपरा में लोकसंगीत पर काम

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वेद विलास उनियाल 

आज उत्तराखंड के विख्यात लोकगायक और संस्कृतिकर्मी स्व चंद्र सिंह राही के बेटे राकेश भारद्वाज अपने पिता की परंपरा में लोकसंगीत पर पूरी तन्मयता से काम कर रहे हैं । साजों के बीच ही उनका दिन गुजरता है। खास बात यह कि वह स्व राहीजी के कुछ दुर्लभ और आज के लिए बेहद सामयिक गीतों को धुनों के कुछ नए स्वरूप में लाने का प्रयास कर रहे हैं। पहाडों के लोकसंगीत को चाहने वालों के लिए यह सुंदर सौगात होगी। आज उनका जन्मदिन पर समाज उनके संगीतसृजन के लिए शुभकामनाएं देता है।

उत्तराखंड के विख्यात लोक गायक चंद्र सिंह राहीजी के निधन ने लोक संगीत के चाहने वालों को उदास सा कर दिया था। रह रह कर मेरे मन में उनके गीत गूंजते थे। हिलमा चांदी को बटना, जुन्याली रात को सुणोलू, सांत समुंदर पार च जाण ब्वै। लोक संस्कृति के लिए और अपने पहाड के लिए ऐसी तडफ मैंने बहुत कम कलाकारों में पाई। उत्तराखंड की लोकसंस्कृति सुनहरे इतिहास का जिस समय भी अवलोकन होगा चंद्र सिंह राही अपने हुड़के और गीत के साथ वहां शीर्ष कलाकारों में नजर आएंगे। क्या नहीं गाया उन्होने और कौन सा लोकसाज नहीं बजाया उन्होंने । सही मायनो में अद्बभुत कलाकार। कभी हमने उन्हें किसी पन्ने या डायरी को सामने रखकर गीत गाते हुए नहीं देखा। कभी शर्तों पर गीत गाते हुए नहीं देखा। वह गायक थे मन रम गया तो क्या -क्या नहीं सुना सकते थे। निजी महफिलों से लेकर मंचो तक । और सच कहें तो उनकी निजी महफिल लाजबाब होती थी।

एक बार प्रसिद्ध संगीतकार कल्याणजी ने मुझसे पूछा राहीजी कैसे हैं। मैं चौंका था मैंने कहा कि क्या आप राहीजी को जानते हैं। तब कल्याणजी ने कहा था कि आपके राहीजी अद्भुुत गायक है। उनके हुडके के साथ हम कुछ गरबा गीतों को बनाना चाहते हैं। पर वह हाथ ही नहीं आते। बस आने की बात कह देते हैं। मेरा मन झूम उठा था कि हमारे लोकसंस्कृति में ऐसे विराट व्यक्तित्व के लोग हैं।

मुझे लगता था कि शायद चंद्र सिंह राही की विरासत उन तक ही सिमट जाएगी। राहीजी के निधन को बस, पांच दस दिन हुए थे। किसी ने बताया कि राहीजी के बेटे राकेश भारद्वाज अभियान नाम से कोई सांस्कृतिक आयोजन कर रहे हैं। यह गीतों भरी संध्या होगी। पहाडी संगीत का एक फ्यूजन। कुछ पुराना कुछ नया। सत कहूं तो घर से निकलते वक्त मैं थोडा शंकित था। पहाडी गीत संगीत में फ्यूजन। और साथ में यह ख्याल कि राहीजी का बेटा ऐसा करने जा रहा। जो राहीजी सिथेंसाइजर को देखकर चिढ जाते थे। जो कहीं से भी लोकधुन को उसके दायरे और कसौटी पर परखकर देखते थे। आज वास्तव में होगा क्या। लेकिन नेहा खंकरियाल की पहली वंदना ने ही बहुत कुछ आश्वस्त कर दिया कि जो होगा शुभ होगा।

एकदम नए उभरते या कई सालों की साधना कर रहे गायक गायिका। नेहा खंकरियाल, शाश्वत पंडित, मोहित, अनन्या पवार और कई दूसरे गायक गायिकाओ के साथ उन्होंने जो प्रस्तुति दी, वह मन में बस गई। बहुत सुंदर स्वर में नेहा की गाई न्यूली सुनने को मिली थी। वहीं विदेशों में पली बढी अनन्या ने ठंडो रे ठंडो सुनाया था। आशिष पडित अपने गिटार के साथ थे तिन चिच्ठी किले नी भैजी। यह पूरा कार्यक्रम मंत्रमुग्ध कर गया। तब संगीत दे रहे राकेश भारद्वाज पिता के शोक में सिर का मुंडन कराए हुए थे। पर शो मस्ट गो आन।

यह यात्रा यही नहीं है। अब राकेश भारद्वाज ने बेडू पाको के तहत कुछ गीतों को सामने लाए हैं। साथ ही एक जनगीत बोल हुडका अब तू बोल को भी धुन और स्वर दिए हैं। उनकी स्वर यात्रा का अगला पडाव न्यूजीलैंड हैं जहां वे वाडुली के तहत जा रहे हैं। खास बात यह कि वे अपने पिता के दुलुर्भ गीतों को फिर से लोगों के समझ लाने का सुंदर प्रयास में जुटे हैं। यह सब सामने आना समाज के लिए शुभ होगा। राहीजी की विरासत बडी है। उत्तराखंड का शायद ही कोई ऐसा पहलू हो जिसमें उन्होंने गीत न गाया हो। उनके इशारों पर लोक साजों की स्वर लहरी गूंजती थी। राकेश भारद्वाजजी की जन्मदिन है । आइए उस आयोजन को याद करते हुए नेहाजी की आवाज में यह मंगल गीत सुनिए………