सूबे की महिलाएं आज भी एम्बुलेंस में बच्चा पैदा करने को मजबूर

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चंपावत । पहाड़ में चिकित्सा जैसी मूलभूत सुविधाएं के अभाव में आज भी बच्चे आपातकालीन सेवा 108 में हो रहे है। दुर्गम क्षेत्रों के तो हाल और भी बुरे हैं। इन क्षेत्रों में प्रसव के दौरान महिलाओं को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। राज्य बनने के 16 साल बाद भी पहाड़ के लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। यह हाल केवल कुमायूं मंडल का ही नहीं है बल्कि सूबे के गढ़वाल मंडल में भी आये दिन इस तरह की घटनाएँ होती रहती हैं।

राज्य के नेताओं को वादे सिर्फ चुनाव तक ही रहते है उसके बाद वह भी भूल जाते हैं। स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में आज भी महिलाएं असमय काल का ग्रास बन रही है। बुधवार को बाराकोट विकास खंड के ग्राम सभा च्युरानी निवासी दीपिका देवी 26 पत्नी रमेश कुमार को सुबह करीब 6: 45 बजे अचानक प्रसव पीड़ा होने लगी। नजदीक में कोई भी स्वास्थ्य सुविधा न होने पर मजबूरन परिजनों ने आपात सेवा 108 को बुलाया।

आपातकालीन सेवा पीड़ित महिला को जैसे ही 10 किमी लोहाघाट सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में ला रहे थे। तभी बापरू के समीप पहुंचे तो महिला की प्रसव वेदना एकाएक बढ़ गई। जिसके बाद चालक मदन व एएमटी वीरेंद्र ने वाहन को सडक़ किनारे रोक दिया। जिसके बाद आशा कार्यकर्ता मीणा देवी ने महिला का सुरक्षित प्रसव कराया। जिसमें महिला ने बच्चे को जन्म दिया। इसके बाद में मां व बेटे को सीएचसी लोहाघाट में भर्ती कराया गया। जहां दोनों की हालात स्वस्थ बताई जा रही है।

उत्तराखंड के सुदूरवर्ती इलाकों की महिलाएं कमोवेश इसी तरह की स्थिति से बच्चा जनने को मजबूर हैं । केवल पूर्व मुख्यमंत्री तिवारी के शासन काल को छोड़ शेष सभी सरकारों के कार्यकाल में सूबे की स्वास्थ्य व्यवस्था बुरी तरह से पटरी से उतर गयी है। सुदूरवर्ती अंचलों के अस्पतालों में कहीं डॉक्टर नहीं हैं यदि हैं भी तो वे काफी दूर हैं वहां तक पहुँचने में महिलाओं के बच्चे एम्बुलेंस अथवा सड़क किनारे की पैदा हो जाते हैं ।