भाजपा से विधायक की दावेदारी करने वाले अब कांग्रेस के लिये मागेंगे वोट…..

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-टिकट बंटवारे के बाद खुश नहीं थे भाजपा नेता

-पैरासूट प्रत्याशी  के रूप में होता रहा दोनों दावेदारों का विरोध

-कंडारी पूर्व में भी हो चुके हैं कांग्रेस में शामिल 

रुद्रप्रयाग । रुद्रप्रयाग विधानसभा की राजनीति में नया मोड आ गया है। जिन लोगों का जनता ने पैरासूट प्रत्याशी  के तौर पर विरोध किया, अब वह कांग्रेस में शामिल हो गये हैं। जिसका सीधा लाभ भाजपा जिला संगठन को पहुंचा है। जो लोग कल तक विधायक के दावेदार थे, अब वहीं लोग कांग्रेस के लिये कार्य करते नजर आ रहे हैं ।

विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस के बीच घमासान मचा हुआ है। टिकट बंटवारे के बाद विधायक की दावेदारी करने वाले खुश नहीं हैं और वह अपनी पार्टी से बगावत कर दूसरी पार्टी में शामिल हो रहे हैं। जबकि कई पार्टी कार्यकर्ता ऐसे भी हैं जो बगावत करने के बाद निर्दलीय प्रत्याशी  के रूप में चुनाव मैदान में कूदे हैं।

कहते राजनीति में कोई किसी का नहीं होता। राजनीति में हर किसी को कुर्सी की चाहत होती है और यह चाहत उन्हें कहीं भी धकेल सकती है। 2012 में संपंन हुये विधानसभा चुनाव में पूर्व मंत्री मातबर सिंह कंडारी ने अपने ही साडू भाई डाॅ हरक सिंह रावत से करारी शिकस्त झेली थी। जिसके बाद कंडारी भाजपा को छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गये थे। कुछ समय कांग्रेस में रहने के बाद श्री कंडारी फिर से भाजपा में शामिल हो गये और चुनाव की तैयारियों में जुट गये, लेकिन टिकट न मिलने के कारण श्री कंडारी भाजपा से नाखुश  चल रहे थे। एक बार तो श्री कंडारी ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला भी कर दिया, लेकिन जनता ने श्री कंडारी का साथ नहीं दिया।

वर्ष 2012 में चुनाव हारने के बाद जब श्री कंडारी भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुये थे तो तब से ही उनका विरोध जनता के बीच होने लगा था। जनता के बीच से श्री कंडारी की पकड़ धीरे-धीरे कम होती रही। भाजपा और संघ की सर्वे रिपोर्ट में भी श्री कंडारी को कोई खास महत्व नहीं दिया गया। भाजपा कार्यकर्ताओं का साथ भी श्री कंडारी को नहीं मिला। संगठन के खिलाफ कोई भी कार्यकर्ता खड़ा नहीं हुआ। जिले के सभी भाजपा कार्यकर्ताओं ने पार्टी द्वारा घोषित  प्रत्याशी  के पक्ष में कार्य करने के लिये हामी भरी। श्री कंडारी लगातार भाजपा पर उपेक्षा का आरोप लगाते रहे और अंतः कांग्रेस में शामिल हो गये। पूर्व मंत्री मातबर सिंह कंडारी के कांग्रेस में शामिल होने से भाजपा को कोई बड़ा नुकसान नहीं पहुंचा है। अधिकांश भाजपा के ही कार्यकर्ता चाहते थे कि वह भाजपा छोड़ दें, क्योंकि वह पार्टी द्वारा घोषित प्रत्याशी का लगातार विरोध करते आ रहे थे।

वहीं भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुये भाजपा जिलाध्यक्ष डाॅ आनंद सिंह बोरा भी विधायक की दावेदारी कर रहे थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें भी नकार दिया। डाॅ बोरा भी भाजपा से नाराज चल रहे थे। जिले की जनता इस बार जिले के स्थानीय व्यक्ति को विधायक बनाना चाहती है और डाॅ बोरा भी पैरासूट प्रत्याशी हैं। पैरासूट प्रत्याशी  के तौर पर डाॅ बोरा का भी जनता के बीच विरोध हुआ। डाॅ बोरा के कांग्रेस में शामिल होने के बाद अब भाजपा कार्यकर्ताओं में भी जिलाध्यक्ष बनने की होड़ मच गई है। पैरासूट व्यक्ति को भाजपा का जिलाध्यक्ष बनाये जाने के बाद से कई भाजपा कार्यकर्ता नाराज चल रहे थे, लेकिन डाॅ बोरा के पार्टी छोड़ने से भाजपा कार्यकर्ताओं की जिलाध्यक्ष बनने की राह आसान हो गई है। कुल मिलाकर देखा जाय तो भाजपा के दोनों नेताओं के कांग्रेस में शामिल होने का लाभ सीधे तौर पर भाजपा को पहुंच रहा है।