वन्यजीवों को हमारे स्नेह की आवश्यकता

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नरेंद्र सिंह चौधरी 

वन्यजीव सप्ताह पूरे भारत में वन्यजीवों के संरक्षण के प्रति जागरूकता लाने के लिए प्रति वर्ष अक्टूबर के प्रथम सप्ताह (1 से 7 अक्टूबर) में मनाया जाता है।

यह भी आश्चर्य है कि भारत जैसे देश में, जो जैव-विविधता में विश्व में विशिष्ट स्थान रखता है, में स्वतंत्रता प्राप्ति के इतने दिन बाद, *1972 में ‘वन्यजीव (सुरक्षा) अधिनियम’* अस्तित्व में आया, जिसके प्रावधानों के अनुसार वन्यजीवों के शिकार एवं वन्यजीव उत्पादों के व्यापार आदि को दण्डनीय अपराध घोषित किया गया।

भारत में विभिन्न वन एवं वन्यजीव प्रजातियों का विशाल भण्डार है, इसलिए भी भारत में *’वन्यजीव सप्ताह’* का महत्व औऱ भी बढ़ जाता है। यदि हम अपने प्रदेश की बात करें तो हम पूरे भारत में अग्रणी स्थान रखते हैं। एशिया उपमहाद्वीप का प्रथम और विश्व का तीसरा नेशनल पार्क *कॉर्बेट नेशनल पार्क* उत्तराखंड में ही स्थित है।

उत्तराखंड के जैव विविध क्षेत्र में *फूलोें की है 213 फैमिली, इसमें से 93 प्रजातियां है संकटग्रस्त।*

वन्य जीवों की 3748 प्रजातियों की अभी तक हुई है पहचान, इनमें से 451 प्रजातियों को पहली बार किया गया है रिपोर्ट।

प्रदेश में *पक्षियों की 743 प्रजातियां और तितलियों की है 439 प्रजातियां* पाई जाती हैं।

आसाम के बाद सबसे अधिक प्रवासी पक्षी पहुँचते है हमारे उत्तराखंड में।

पौधों की है उत्तराखंड में 7000 प्रजातियां।

*700 औषधीय वनस्पतियां* है उत्तराखंड में।

वन्य जीवन प्रकृति की अमूल्य देन है। भविष्य में वन्य प्राणियों की समाप्ति की आशंका के कारण भारत में सर्वप्रथम *7 जुलाई, 1955 को ‘वन्य प्राणी दिवस’* मनाया गया था। यह भी निर्णय लिया गया कि प्रत्येक वर्ष अक्तूबर के प्रथम सप्ताह को *वन्य प्राणी सप्ताह* के रूप में मनाया जाएगा। इस प्रकार वर्ष 1956 से हम वन्य प्राणी सप्ताह मना रहे हैं।

आइये, हम जहाँ भी रहें वन्यजीवों और पक्षियों से प्यार करें और उनके प्रति अपने दायित्वों के बोध का स्मरण करने हेतु *वन्यजीव सप्ताह* में कोई एक कार्य वन्यजीवों के लिये करें।

*शुभ वन्यजीव सप्ताह!!*

(लेखक वन सेवा के अधिकारी रहे हैं)