भारत को रजत पदक दिलाने वाला अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी सुरेंद्र ढाबा चलाने को आखिर क्यों है मजबूर

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खिलाड़ियों को मजबूर होकर ढाबा चला कर पकौड़े तल कर ही अपनी जीविका चलाने को होना पड़ रहा मजबूर

डॉ. योगेश धस्माना

गौचर (चमोली) :  नौकायन में चमोली जनपद को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने वाले और अर्जुन पुरस्कार से नवाज़े गए सुरेंद्र कनवासी ने 1982 में बीजिंग चीन में नौकायन में भारत को कांस्य पदक दिलाने वाले व विश्व नौकायन में देश को कीर्तिमान के साथ रजत पदक से सम्मानित व्यक्ति आज गोचर में ढाबा चलाने के लिए मजबूर हैं।

गौरतलब हो कि वर्ष 2000 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित सुरेंद्र चमोली जनपद के नारायण बगड़ विकासखंड के निवासी हैं। रोइंग (नौकायन) के अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी सुरेंद्र सिंह कनवासी ने 1985-91 तक राज्य, राष्ट्रीय और विश्वस्तर पर पांच स्वर्ण, तीन रजत और तीन कांस्य पदक जीते। जहां सरकारें अपने अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों के खेल अकादमी सहित नगद पुरस्कार के साथ जमीन उपलब्ध कराती रहती है। वहीं हमारी सरकार ने उसे गोचर में एक आधा नाली जमीन उपलब्ध तो कराई लेकिन उसे आज तक जमीन पर मालिकाना हक नहीं दिया।

इस खिलाड़ी की एक और बदनसीबी देखिए कि उत्तर प्रदेश सरकार के निर्देश पर जिला प्रशासन ने गोचर में जो जमीन उपलब्ध कराई थी। उस पर प्रशासन ने बस अड्डा बना दिया। जब उस ने शिकायत की तब उस जमीन में आधी नाली विवास्पद जमीन खिलाड़ी को दे दी गयी। लेकिन इसके बाद भी उसे मालिकाना हक के लिए न्यायालयों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। बताया गया है कि अक्टूबर 2018 को मुख्यमंत्री से गुहार लगाने के बाद भी जिला प्रशासन से उसे न्याय नहीं मिल पाया है।

भले ही उत्तराखंड सरकार और उसका पर्यटन मंत्रालय प्रदेश में एडवेंचर स्पोर्ट्स के नाम पर बड़े-बड़े दावा करती रही है। लेकिन स्थानीय लोगों के हाथ झुनझुना ही थमा दिया गया। नौकायन के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने वाले सुरेन्द्र कनवासी ने जब उत्तराखंड राज्य सरकार के पर्यटन विभाग से टिहरी झील पर साहासिक गतिविधियां संचालित करवाने में सहयोग मांगा। तो यहाँ भी उनके हाथ मायूसी ही लगी। यानि सुरेंद्र कनवासी जब अपना प्रस्ताव लेकर राज्य सरकार के दरवाजे पर पहुंचे भी किंतु इस खिलाड़ी के प्रस्ताव पर गौर करना तो दूर सरकार उसे ही एकदम भुला बैठी है।

इस अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी की इच्छा चमोली में रहकर काम करने की थी इसलिए थी कि वह अपने जिले और इलाके के युवाओं को वह दीक्षा देना चाहता था जिसने उसे अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई।  कनवासी ने राष्ट्रीय स्तर के कोच की नौकरी ठुकरा कर चमोली में ही रहकर युवाओं को प्रोत्साहित करने की योजना बनाई थी। दुर्भाग्यवश सरकार और प्रशासन ने इस खिलाड़ी की घोर उपेक्षा कर उसे पहले ठेकेदार और फिर ढाबा चलाने के लिए मजबूर किया। रिवर्स पलायन का दावा करने वाली सरकार जब तक अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी की सेवाएं लेने में असमर्थ है, ऐसे में हमारे खिलाड़ियों को मजबूर होकर ढाबा चला कर पकौड़े तल कर ही अपनी जीविका चलाने को मजबूर होना ही पड़ेगा।

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