ऐसा अभागा राज्य जिसे 20 वर्ष में भी एक अदद स्थाई राजधानी नहीं मिल पायी
भ्रष्ट नेताओं और भ्रष्ट नौकरशाही ने राज्यवासियों की उम्मीदों पर फेरा पानी
राज्य के संसाधनों का स्वहित में किया जा रहा है जमकर दोहन
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : वर्ष 1952 से अलग राज्य के लिए चलने वाले जनांदोलन व तमाम शहादतों के बाद आखिरकार वर्ष 2000 में अस्तित्व में आए उत्तराखंड को राज्य गठन के बाद 20 वर्ष में भी एक अदद स्थाई राजधानी नहीं मिल पायी है। राज्य गठन के बाद पहाड़वासियों को लगा था कि अपना प्रदेश भ्रष्टाचार मुक्त होगा, नेता और नौकरशाह अपने ही होंगे,चारों ओर खुशहाली आएगी, अपने राज्य की समस्याओं का अंत होगा लेकिन राज्य गठन के बाद से ही जनहित के मुद्दे हाशिए पर नजर आ रहे हैं। राज्य गठन के बाद जो भी दल सत्ता में रहा है उसने गैरसैंण राजधानी के मुद्दे को भुनाया, और इसकी आग में अपनी राजनीतिक रोटियां सेकीं लेकिन सत्ता संभालते ही गैरसैंण सभी के लिए गैर हो गया, यहां तक कि राज्यादोलन के दौरान राज्य का सबसे हितैषी होने का दावा करने वाली उत्तराखंड क्रांति दल कभी कांग्रेस की गोद में तो कभी भाजपा की गोद में सत्ता की मलाई चाटते-चाटते ख़त्म हो गया। राज्य के अस्तित्व में आने के बाद जो भी राजनीतिक दल सत्ता में रहा उसके कार्यकाल में जहां सूबे में नौकरशाही हावी रही वहीं भ्रष्टाचार व कमीशनखोरी बेलगाम रही है।
देहरादून : वर्ष 1952 से अलग राज्य के लिए चलने वाले जनांदोलन व तमाम शहादतों के बाद आखिरकार वर्ष 2000 में अस्तित्व में आए उत्तराखंड को राज्य गठन के बाद 20 वर्ष में भी एक अदद स्थाई राजधानी नहीं मिल पायी है। राज्य गठन के बाद पहाड़वासियों को लगा था कि अपना प्रदेश भ्रष्टाचार मुक्त होगा, नेता और नौकरशाह अपने ही होंगे,चारों ओर खुशहाली आएगी, अपने राज्य की समस्याओं का अंत होगा लेकिन राज्य गठन के बाद से ही जनहित के मुद्दे हाशिए पर नजर आ रहे हैं। राज्य गठन के बाद जो भी दल सत्ता में रहा है उसने गैरसैंण राजधानी के मुद्दे को भुनाया, और इसकी आग में अपनी राजनीतिक रोटियां सेकीं लेकिन सत्ता संभालते ही गैरसैंण सभी के लिए गैर हो गया, यहां तक कि राज्यादोलन के दौरान राज्य का सबसे हितैषी होने का दावा करने वाली उत्तराखंड क्रांति दल कभी कांग्रेस की गोद में तो कभी भाजपा की गोद में सत्ता की मलाई चाटते-चाटते ख़त्म हो गया। राज्य के अस्तित्व में आने के बाद जो भी राजनीतिक दल सत्ता में रहा उसके कार्यकाल में जहां सूबे में नौकरशाही हावी रही वहीं भ्रष्टाचार व कमीशनखोरी बेलगाम रही है।