मुख्य वन संरक्षक मनोज चंद्रन की जांच से एसीएस को क्यों है परहेज़ !

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  • अपनों को बचाने के लिए तीन-तीन बार बदले जांच अधिकारी !
  • जांच की आंच में कहीं खुद न झुलस जाएं चर्चित अपर मुख्य सचिव!
  • पहले मामले में संदिग्ध अधिकारी को ही बना डाला था जांच अधिकारी 
  • कहीं पोल खुलने के डर से नहीं बदले जा रहे बार-बार जांच अधिकारी!
  • सोनकर,कोमल सिंह और  चर्चित अपर मुख्य सचिव का क्या है रिश्ता !

राजेन्द्र जोशी 

देहरादून : उत्तराखंड में वन अधिकारी से लेकर शासन तक में बैठे मामले में चर्चित अपर मुख्य सचिव किस क़दर प्राकृतिक न्याय के खिलाफ हो गए हैं कि एक मामले की जांच की आंच से अपनों को बचाने के लिए वे एक ही मामले की जांच कभी जांच में संदिग्ध पाए गए अधिकारी से करवाने का आदेश जारी कर देते हैं तो कभी किसी और अपने चाहते अधिकारी से, ताकि तत्कालीन जांच अधिकारी निदेशक और मुख्य वन संरक्षक मनोज चंद्रन की रिपोर्ट में संदिग्ध पाए गए राजाजी पार्क के निदेशक सनातन सोनकर और एसडीओ  कोमल सिंह को येन-केन -प्रकारेण बचाया जा सके। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर शासन में बैठे सूबे के बड़े अधिकारियों को साफ़ छवि के मुख्य वन संरक्षक मनोज चंद्रन को जांच अधिकारी बनाये जाने पर आपत्ति क्यों है। यदि इन अधिकारियों को तत्कालीन जांच अधिकारी मनोज चंद्रन की जांच रिपोर्ट पर आपत्ति है तो हल्द्वानी में तैनात आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी से करानी चाहिए ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए।  लेकिन यहाँ को मामला जांच का नहीं अपनों को जांच रिपोर्ट से बाहर निकालने का है। तो ये अधिकारी कैसे ईमानदार छवि के जांच अधिकारियों से क्यों जांच करवाएंगे ?

आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी से जांच कराने में क्यों है डर !

सूत्रों का कहना है कि शासन में बैठे आला अधिकारियों को ख़तरा है कि कहीं मनोज चंद्रन की जांच रिपोर्ट की आंच में वे और उनके ”हमराज” ही न झुलस जाएँ।  यही कारण है कि गुलदार मामले की जांच फ़ुटबाल की तरह कभी मनोज चंद्रन के पाले में जाती है तो कभी सनातन सोनकर के तो अब गेंद  मुख्य वन संरक्षक वन्य जीव प्रशासन एवं आसूचना सुरेंद्र मेहरा के पाले में आ गयी है। शासन के लोगों का कहना है कि कहीं न कहीं मामले में कोई झोल तो जरूर है जो संदिग्ध अधिकारियों को बचाये जाने का ताना-बाना बुना जा रहा है। 

मामले में यह बात भी सामने आयी है कि जब जांच अधिकारी मुख्य वन संरक्षक मनोज चंद्रन ने शासन से राजाजी टाइगर रिज़र्व के निदेशक सनातन सोनकर और कोमल सिंह के खिलाफ बीती अगस्त में  सीआरपीसी की धारा 197 के तहत मुकदमा चलाने की स्वीकृति मांगी तो अपर मुख्यसचिव ने किन्हीं कारणों से यह स्वीकृति आज तक नहीं दी और जांच अधिकारी ही बदल डाला !

मिली जानकारी के अनुसार 22 मार्च को वन विभाग के  अधिकारियों ने मोतीचूर सपेरा बस्ती में  एक बोरे में गुलदार की खाल और हड्डियां बरामद की थी। मामले में जांच के बाद विभागीय अधिकारियों और कर्मचारियों की भूमिका संदिग्ध पायी गयी थी। मामले में वन विभाग ने रायवाला के एक मीट कारोबारी अमित कुमार को गिरफ्तार किया था जबकि शेष पांच  लोगों को मामले में नामजद किया था।  इसके बाद इन पांचों आरोपियों ने न्यायालयमें आत्मसमर्पण करते हुए अपने को निर्दोष बताया था। 

इस चर्चित मामले की जांच मुख्य वन संरक्षक मनोज चंद्रन ने की और मामले में वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की इस घटना में संलिप्तता पायी थी।  इतना ही नहीं जांच अधिकारी ने पाया कि जिस बक्से में गुलदार की खाल और हड्डियां सील की गयी थी वनविभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की मीलीभगत  से जहाँ उस बक्से पर लगी सील तोड़ दी गयी थी और ताला तक बदल दिया गया था।  जांच अधिकारी श्री मनोज चंद्रन ने मामले को बहुत ही गंभीर मानते हुए इसकी भी जांच किये जाने की जरुरत बताते हुए अधिकारियों को अवगत कराया था।

वन विभाग के आरोपी अधिकारियों और सचिवालय में प्रदेश की जनता और स्वच्छ प्रशासन देने का जिम्मा लिए अधिकारियों की कारस्तानी तो देखिये जिस अधिकारी को जांच रिपोर्ट में संदिग्ध पाया गया और जिसकी भूमिका पर जांच अधिकारी ने ही सवाल उठाये थे बीते दिन उसी अधिकारी को सूबे के अपर मुख्य सचिव रणवीर सिंह ने मामले की जांच सौंप डाली।  जैसे ही अपर मुख्य सचिव ने जांच के आदेश किये पूरे प्रदेश में हंगामा मच गया और लोगों ने सूबे के वन मंत्री से मामले की शिकायत करते हुए अपर मुख्य सचिव के जांच बदलने के आदेश पर सवाल खड़े कर दिए ।

सूबे के वन मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत के संज्ञान में मामला आने के बाद बीते दिन ही उन्होंने अपर मुख्य सचिव रणवीर सिंह के आदेशों को पलटने के वन विभाग के अधिकारियों को निर्देश दे डाले।  इसके बाद मुख्य वन्य जंतु प्रतिपालक मोनिश मालिक ने अपर मुख्य सचिव द्वारा नामित जांच अधिकारी राजाजी टाइगर रिज़र्व के निदेशक सनातन सोनकर से जांच हटाने के आदेश पारित कर दिए हैं। 

मामले में प्रदेश के वन मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत का कहना है कि जिस अधिकारी की भूमिका को जांच अधिकारी ने संदिग्ध पाया हो उसे कैसे उसी मामले की जांच सौंपी जा सकती है। इतना ही नहीं वन मंत्री ने कहा कोई भी अधिकारी बिना सरकार को पूछे कैसे जांच अधिकारी बदल सकता है और गुलदार प्रकरण में जांच अधिकारी बिना सरकार से अनुमति लिए बदला गया है जो गैर कानूनी तो है ही साथ ही न्याय के साथ खिलवाड़ भी है। उन्होंने कहा जांच अधिकारी बदलने का अधिकार केवल सरकार को ही है, लेकिन बावजूद इसके बार -बार जांच अधिकारी बदले जाने से विभाग की छवि को नुकसान हो रहा है। उन्होंने कहा वे अब इस मामले पर प्रदेश के मुख्यमंत्री से बात करेंगे।  उन्होंने कहा अब जो जांच अधिकारी बनाये गए हैं उन्हें विश्वास है वे सही जांच कर तत्थ्य सामने लाएंगे।