कौन होगा भावी मुख्यमंत्री, शासन से लेकर जनता तक की नज़र फैसले पर टिकी ?

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देहरादून। विधानसभा चुनाव सम्पन्न होने के बाद अब सबकी निगाहे 11 मार्च मतगणना के दिन पर आकर गड़ी हुई हैं। मतगणना के दौरान सुरक्षा और अन्य व्यवस्थाओं को लेकर निर्वाचन आयोग और जिला प्रशासन की ओर से तमाम बंदोबस्त तेज किए गए हैं। वहीं शासन प्रशासन ने भावी सरकार के गठन, भावी मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण की तैयारियों भी शुरू कर दी गई हैं।

उत्तराखंड की भावी सरकार का फैसला आने वाली 11 मार्च को होना है और 23 मार्च से पूर्व सूबे में सरकार गठन की बाध्यता भी। जब ईवीएम मशीनें ऑन होंगी और विधानसभावार सीटों पर हुए मतपरिणाम सामने आने लगेंगे। गौरतलब हो कि कि पूर्व की दोनों सरकारों में यूकेडी ने सहयोगी की भूमिका निभाई थी। हालांकि इस दफा यूकेडी की ओर से कांग्रेस अथवा भाजपा को सरकार बनाने की सूरत में समर्थन न देने की घोषणा की हुई है। जहां एक ओर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल बहुमत के साथ सरकार बनाने का दावा करती आ रही है, हालांकि सरकार किसी एक दल की ही बननी है। वहीं यूकेडी की समर्थन न देने की घोषणा ने भाजपा और कांग्रेस के रणनीतिकारों के माथे पर शिकन की लकीरों में इजाफा किया हुआ है।

बहरहाल नतीजा आने तक कुछ भी कहना सिर्फ कयासबाजी ही होगा। मगर जिस तरह पूर्व के चुनाव परिणाम सामने आए और भाजपा और कांग्रेस के बीच सत्ता की अदला बदली हुई है, उस लिहाज से देखा जाए तो भाजपा की बांछे खिल सकती हैं। और अंदरूनी सूत्रों की माने तो इस आधार पर भाजपाई उत्साहित भी हैं। मगर रानजीति में कब बाजी पलट जाए, कहा नहीं जा सकता। और भाजपा की मुख्य राजनैति प्रतिद्वंदी पार्टी कांग्रेस के मुखिया हारी बाजी पलटने के लिए जाने जाते हैं।

कुल मिलाकर कहा जाए कि कांग्रेस सरकार की कमान संभाले हरीश रावत सही मायने में राजनीति के मंझे खिलाडि़यों में यूं ही नहीं शुमार किए जाते। भाग्य का पलड़ा कब किसके हिस्से भारी पड़ जाए, यह भी भविष्य के गर्भ में छिपा है। 2016 के मार्च माह को इसका उदाहरण माना जा सकता है। जबकि कांग्रेस के दस विधायकों ने पार्टी को  झटका देते  हुए भाजपा का दामन थाम लिया था। शुरूआती समय सभी को एकतरफा मुकाबला लगा था, मगर दिन बीतने के साथ-साथ अंतिम समय भाजपा  तमाम चालों के चलने के बाद भी बाजी हरीश रावत के हाथ लगी थी।

ऊहापोह के बादल तो भाजपा में अभी तक बरकरार बताए जाते हैं। राजनीति के पंडितों की माने तो जीत की सूरत में कांग्रेस के पास सिवाय हरीश रावत के कोई दूसरा बड़ा राजनैतिक चेहरा आसपास भी नहीं है। जबकि भाजपा में हर एक चेहरा, दूसरे से बड़ा बनने की जद्दोजहद करता दिख रहा है। चुनाव प्रचार में राष्ट्रीय अध्यक्ष विधायकों में ही मुख्यमंत्री का चेहरा छिपा होने की बात कहते हुए संभावित चुनावी चेहरा माने जा रहे नेताओं का होश उड़ा चुके हैं। वहीं मतदान के बाद यही गणमान्य हर दूसरी प्रेसवार्ता में खुद को सीएम का दावेदार न होने का दावा करने के साथ ही आलाकमान का हर फैसला मंजूर कहते हुए खुद को रेस में खड़ा करते भी दिख रहे हैं।