ठेंगे पर किसने रखा लॉकडाउन : उत्तराखंड में कौन बड़ा, सरकार या नौकरशाही ?

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मंत्री कौशिक का बयान केवल मीडिया की सुर्खियां बनकर रह गया, जांच नहीं हुई

मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने स्पष्ट किया, पुलिस की जांच पर पूरा भरोसा

झूठे तथ्यों का सहारा लेकर पास की पैरवी क्यों की गई? सरकार बताए, इस सवाल की जांच क्यों नहीं होनी चाहिए?

क्यों नहीं होनी चाहिए? अपर मुख्य सचिव की पैरवी और पास जारी करने की प्रक्रिया की जांच  

लॉकडाउन तुड़वाने में मदद करने वालों को जांच में दायरे में क्यों नहीं लाया जाना चाहिए?

पौड़ी व रुद्रप्रयाग जिला प्रशासन ने आखिर किसके दबाव में कार्रवाई नहीं की?

उत्तराखंड के किसी भी जिले में यूपी के विधायक और उनकी टोली को क्वारान्टाइन नहीं करने की जांच क्यों नहीं कराई गई?

कोरोना संक्रमण के समय में दूसरे राज्य के लोगों के उत्तराखंड में धड़ल्ले से घूमने की जांच क्यों नहीं करा रही सरकार?

देवभूमि मीडिया ब्यूरो

उत्तराखंड में अब एक बड़ा सवाल उठने लगा है कि कौन बड़ा है सरकार या फिर नौकरशाही ? क्या यहां नौकरशाहों पर सरकार का नियंत्रण है या फिर सरकार पर नौकरशाहों का नियंत्रण है ? विश्वास नहीं होता तो दिल्ली से लेकर यूपी और उत्तराखंड में चर्चाओं में बने लॉकडाउन तोड़ने और लॉकडाउन को तोड़ने में मदद करने वाले हाईप्रोफाइल मामले को जान लीजिए। इस मामले में उत्तराखंड के अपर मुख्य सचिव से लेकर देहरादून जिला प्रशासन के अधिकारी सीधे तौर पर शामिल हैं। वहीं कई जिलों का प्रशासन किसी दबाव में काम करता दिखाई दिया। जिम्मेदारी तो तय होनी ही चाहिए थी, ताकि भविष्य में प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के आदेशों की अवहेलना की कोई भी नौकरशाह जुर्रत न कर सके पर दुर्भाग्य है  ऐसा नहीं हुआ।
कौन बड़ा है? यह सवाल इस वक्त प्रदेश सरकार से प्रदेश की जनता पूछ रही है और यह सवाल जरूर पूछा ही जाना चाहिए, क्योंकि यह किसी विधायक और उसके साथियों को सैरसपाटे का पास जारी करने भर का मामला नहीं है, यह उत्तराखंड के निवासियों की जान खतरे में डालने वाली हरकत है, क्योंकि सरकार ही यह कह रही है कि कोरोना संक्रमण से बचना है तो सतर्कता जरूरी है।
सवाल पर आते हुए आपको बताते हैं कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक, जो सरकार के प्रवक्ता भी हैं, ने स्वीकार किया था कि इस मामले में अधिकारियों के स्तर से चूक हुई है। उन्होंने कहा था कि इस मामले की जांच कराई जाएगी। कौशिक का यह वक्तव्य कोई निजी नहीं था, क्योंकि सरकारी प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री की सार्वजनिक रूप से कही गई बात को सरकार की बात माना जाता है।
कौशिक का बयान केवल मीडिया की सुर्खियां बनकर रह गया, क्योंकि सरकार ने जांच करने की जिम्मेदारी किसी को नहीं दी। वैसे भी यह माना जा रहा था कि सरकार अपर मुख्य सचिव से वरिष्ठ किसी अधिकारी से ही इस पूरे मामले की जांच कराएगी। राज्य में मुख्य सचिव ही उनसे वरिष्ठ हैं।
अब मीडिया को दिए गए मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह के वक्तव्य को जान लीजिए। मुख्य सचिव का कहना है कि इस मामले में पुलिस की जांच पर पूरा भरोसा है। अलग से कोई कमेटी गठित नहीं होगी।
यह तो सभी को मालूम है कि इस मामले में मुनिकी रेती थाना में केवल लॉकडाउन के उल्लंघन के आरोप में यूपी के विधायक अमनमणि त्रिपाठी और उनके साथियों के खिलाफ ही मुकदमा दर्ज है। विधायक और उनकी टोली को लॉकडाउन में उत्तराखंड घू्मने का पास जारी करने, गलत तथ्य देकर पास की पैरवी करने के आरोप इस मुकदमे में दर्ज नहीं हैं। और न ही पास को लेकर कोई बात मुकदमे में है।
अगर, हम मुख्य सचिव के वक्तव्य को सही और सरकार के प्रवक्ता की बात को गलत मानते है, जैसा कि अभी तक दिखाई दे रहा है। ऐसे में स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि इस हाइप्रोफाइल मामले में राज्य सरकार पर नौकरशाहों का दबाव काम कर गया। वो भी उस स्थिति में जब पूरा देश कोरोना संक्रमण की वजह से लॉकडाउन की सभी गाइडलाइन मानने के लिए बाध्य है। ऐसे में कोई सरकार लॉकडाउन तोड़ने में मदद करने वाले नौकरशाहों को जांच के दायरे से कैसे बाहर कर सकती है।
यह तो सरकार को मालूम ही है कि यूपी के विधायक त्रिपाठी दो गाड़ियों में अपने साथियों के साथ उत्तराखंड में घुस गए थे। जबकि लॉकडाउन में बाहर से आने वाले किसी भी शख्स के लिए स्वास्थ्य की जांच तथा 14 दिन की क्वारान्टाइन अवधि से गुजरना अत्यंत आवश्यक है। जबकि विधायक और उनके साथी राज्य में प्रवेश कर गए और क्वारान्टाइन हुए बिना पौड़ी, रुद्रप्रयाग, चमोली, टिहरी, हरिद्वार जिलों से होते हुए यूपी भी चले गए।
यहीं नहीं विधायक ने झूठे, मनगढ़ंत तथ्यों का सहारा लेकर अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश के माध्यम से पैरवी कराकर देहरादून जिला प्रशासन से पास भी जारी करा लिया। अब कोई यह नहीं कह सकता कि अपर मुख्य सचिव ने इनकी यात्रा के लिए पास देने की पैरवी नहीं की थी, क्योंकि जिला प्रशासन ने पास में अपर मुख्य सचिव के पत्र और उस झूठे तथ्य का भी उल्लेख किया है, जिसका सहारा लेकर प्रशासन पर दबाव बनाया गया था।
क्या इस तथ्य की जांच नहीं होनी चाहिए कि पास दिलाने के लिए वरिष्ठ नौकरशाह ने अपने पत्र में यूपी के मुख्यमंत्री के नाम का सहारा क्यों लिया। वरिष्ठ नौकरशाह ने केंद्र सरकार की गाइडलाइन के खिलाफ जाकर पैरवी क्यों की। क्या इन तथ्यों की जांच नहीं होनी चाहिए।
क्या इस बात की जांच नहीं होनी चाहिए कि देहरादून जिला प्रशासन ने उन लोगों और गाड़ियों को यात्रा की परमिशन क्यों जारी कर दी, जो देहरादून आए ही नहीं और न ही उनकी यात्रा देहरादून से शुरू हुई।
अगर, मान लेते हैं कि ये लोग देहरादून आए थे तो कहां ठहरे थे। ये किस होटल में रूके थे या फिर किस भवन में रुके थे। क्या इस तथ्य की जांच नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह मामला कोरोना संक्रमण के समय में यूपी के कई जिलों से होकर आए लोगों से जुड़ा है।
क्या इस तथ्य की जांच नहीं होनी चाहिए कि जब विधायक और उनके साथियों ने जिला प्रशासन के समक्ष कोई आवेदन ही नहीं किया तो उनके नाम यात्रा का पास क्यों जारी किया गया।
जब बदरीनाथ धाम मंदिर के कपाट खुले ही नहीं हैं। वहां जाने की अनुमति जिला प्रशासन ने कैसे दे दी? क्या इस तथ्य की जांच नहीं होनी चाहिए।
क्या इस तथ्य की जांच नहीं होनी चाहिए कि किसी विधायक और उसके साथियों को सैर सपाटा कराने के लिए पास जुटाने की व्यवस्था अपर मुख्य सचिव स्तर से क्यों की गई। यदि उत्तराखंड सरकार ने कोई ऐसी व्यवस्था की है कि दूसरे राज्यों के विधायकों के भ्रमण की व्यवस्था अपर मुख्य सचिव के स्तर से होगी तो कोई बात नहीं। यदि यह व्यवस्था नहीं है तो जांच तो बनती है।
क्या इस बात की जांच नहीं की जानी चाहिए कि श्रीनगर में विधायक और उनके साथियों ने रात्रि विश्राम कहां किया। ये लोग जहां भी रुके होंगे, क्या वहां से संबंधित व्यक्ति ने श्रीनगर प्रशासन या पुलिस को सूचना दी थी। जानकारी तो यह भी है कि ये किसी सरकारी गेस्ट हाउस में रुके थे। बिना किसी जांच प्रक्रिया से गुजर कर लॉकडाउन तोड़ने वालों पर मेहरबानी किस दबाव में की गई, यह भी तो जांच का विषय है।
क्या इस तथ्य की जांच नहीं होनी चाहिए कि पौड़ी जिला में धड़ल्ले से घूमने के बाद  श्रीनगर और रुद्रप्रयाग जिले में प्रवेश करने के दौरान इनको क्यों नहीं रोका गया। रुद्रप्रयाग जिला में इनकी जांच क्यों नहीं की गई। इनको श्रीनगर या रुद्रप्रयाग में क्वारान्टाइन क्यों नहीं किया गया।
चमोली जिला के कर्णप्रयाण में हंगामा करने के बाद भी वहां इनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई। इनको क्वारान्टाइन किए बिना वापस क्यों जाने दिया गया। हालांकि चमोली जिला में इनको आगे बढ़ने से रोक दिया गया, नहीं तो ये चमोली जिला घूम लेते। वहां से वापस लौटते हुए श्रीनगर और देवप्रयाग में पुलिस और प्रशासन ने इन पर कोई कार्रवाई नहीं की।  टिहरी के मुनिकी रेती में इनको गिरफ्तार करके लॉकडाउन के उल्लंघन में मुकदमा दर्ज किया जाता है। मुचलकों पर छूटने के बाद क्या प्रशासन और पुलिस को इन सभी को क्वारान्टाइन नहीं करना चाहिए था। वैसे भी तीन गाड़ियों में ये फिर से लॉकडाउन की गाइडलाइन की धज्जियां उड़ाते हुए वाया हरिद्वार जिला, बिजनौर जिले में प्रवेश कर गए। इन सभी को किसी भी जिले में क्वारान्टाइन क्यों नहीं किया गया, क्या इस तथ्य की जांच नहीं होनी चाहिए।
क्वारान्टाइन पर बार-बार जोर इसलिए दिया जा रहा है, क्योंकि अन्य राज्यों से आने वाले लोगों को अनिवार्य रूप से इस व्यवस्था का पालन करना है। जब इन लोगों को पुलिस और प्रशासन ने रोक लिया था, तो यह किस की जिम्मेदारी थी कि इनसे व्यवस्था का पालन कराए।
और भी बहुत सारे सवाल हैं, जो इस हाइप्रोफाइल मामले से जुड़े हैं, लेकिन सरकार है कि वक्तव्य देने के बाद मौन साध गई और मुख्य सचिव ने तो स्पष्ट ही कर दिया है इस मामले में पुलिस की जांच पर भरोसा है। पुलिस की जांच तो मुकदमे में लिखे आरोपों तक ही सीमित रहेगी। यह तो सबको मालूम ही है कि लॉकडाउन तोड़ने में मदद करने वाले मुकदमे के दायरे से बाहर हैं।
नौकरशाही न जो चाहा, उस मामले की जांच होगी। सरकारी प्रवक्ता ने जो कहा, उस पर कुछ नहीं है। क्या अब यह सवाल नहीं पूछना चाहिए कि उत्तराखंड में कौन बड़ा, सरकार या नौकरशाही?