कोटद्वार से चुनाव लड़कर क्या खण्डूड़ी की हार का बदला लेंगे हरक ?

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डा0 हरक के कोटद्वार से चुनाव लड़ने के प्रबल संकेत !

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

कोटद्वार विधानसभा एक बार फिर से आगामी विधानसभा चुनाव में उत्तराखण्ड़ की सबसे हाॅट सीट बनने जा रही है। 2012 में जनरल भुवन चन्द्र खण्डूड़ी के मुख्यमंत्री रहते व प्रोजेक्ट होने के बावजूद विधानसभा चुनाव हार जाने से कोटद्वार सीट पूरे देश में चर्चाओं में आ गई थी। जनरल खण्डूड़ी की इस शर्मनाक हार के चलते भाजपा मात्र एक सीट से सरकार बनाने से चूक गई थी। तब जनरल खण्डूड़ी की हार के लिए पूर्व विधायक शैलेन्द्र रावत को दोषी मानते हुए भाजपा नेतृत्व ने उन्हें भारतीय जनता पार्टी से निष्कासित कर दिया था। उस दौरान खण्डूड़ी की हार पर पूरे देश के उत्तराखण्डी प्रवासी स्तब्ध रह गए थे कि जिन खण्डूड़ी के नाम पर पूरे प्रदेश में भाजपा चुनाव लड़ रही थी वे मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट होने के बावजूद कोटद्वार से चुनाव भला कैसे हार गए ? हैं। परन्तु खण्डूड़ी की हार के पीछे यह मिथक भी पुष्ट हो गया कि ब्राहमण नेता कभी भी कोटद्वार से चुनाव नहीं जीत सकते।

अब एक बार फिर से डा0 हरक सिंह रावत इसी कोटद्वार सीट को जीत कर भाजपा की झोली में डाल कर 2012 में हुई जनरल खण्डूड़ी की हार का बदला लेने की फिराक में हैं। हालांकि कोटद्वार में इस बात को लेकर चर्चाएं हैं कि जब जनरल खण्डूड़ी जैसे सबसे बडे़ भाजपा नेता सिटिंग व प्रोजेक्टेड मुख्यमंत्री रहते हुए जबरदस्त भीतरीघात के चलते चुनाव नहीं जीत पाये तो भला डा0 हरक सिंह रावत तो भीतरीघात का सामना कैसे कर पायेंगे। ऐसे में कुछ राजनीतिक विशेषज्ञ डा0 हरक सिंह रावत के चुनाव जीतने की क्षमता पर संदेह व्यक्त कर रहे हैं। परन्तु डा0 हरक सिंह रावत अपनी महत्वकांक्षा के चलते राजनीतिक उथल-पुथल करने में महारथी माने जाते हैं। विगत् मार्च माह में कांग्रेस के आठ बागी विधायकों को लामबंद कर हरीश रावत सरकार की चूलें हिलाने वाले डा0 हरक सिंह रावत ने यह सिद्ध कर दिया कि अपनी महत्वकांक्षा पूरी करने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं।

चुनाव जीतने की कला में माहिर रहे हैं हरक सिंह रावत 

विषम् परिस्थितियों में पराये क्षेत्र से चुनाव जीतने की कला में हरक सिंह रावत माहिर माने जाते हैं। पृथक उत्तराखण्ड़ राज्य बनने के बाद आज तक डा0 हरक सिंह रावत कोई भी विधानसभा चुनाव नहीं हारे। 2002 में लैन्सडाउन से जब हरक सिंह रावत ने विधानसभा चुनाव लडा़ तो उन पर बाहरी प्रत्याशी होने का आरोप लगा था। इसके बावजूद वे भारत सिंह रावत जैसे क्षेत्रीय व दिग्गज नेता को हराकर उत्तराखण्ड़ सरकार में मंत्री बने। 2007 के विधानसभा चुनाव में जहाँ भारत सिंह रावत, सुरेन्द्र सिंह नेगी, डा0 इन्दिरा हृयदेश जैसे दिग्गज नेता अपनी ही विधानसभा में क्षेत्रीय नेता होने के बावजूद चुनाव हार गए। वहीं दूसरी ओर 2007 में जेनी प्रकरण व पटवारी भर्ती में धांधली के आरोपों के बावजूद डा0 हरक सिंह रावत ने एक बार फिर से उसी लैन्सडाउन विधानसभा से दोबारा चुनाव जीत कर बाहरी प्रत्याशी होने का ठप्पा धो डाला। इस बार डा0 हरक सिंह रावत कांग्रेस के सभी दिग्गजों को पछाड़ कर नेता प्रतिपक्ष बने। 2012 में भी डा0 हरक सिंह रावत ने रूद्रप्रयाग जैसे भाजपा प्रभाव वाली सीट पर बाहरी प्रत्याशी होने के बावजूद मात्र एक सप्ताह में जीत दर्ज कर अपनी मजबूत राजनीतिक पकड को साबित किया। जहाँ रूद्रप्रयाग में भाजपा से कभी चुनाव न हारने वाले मातबर सिंह कन्डारी जैसे क्षेत्रीय दिग्गज नेता को हराना किसी टेढी खीर से कम नहीं था। वहीं दूसरी ओर रूद्रप्रयाग के इस चुनाव में हरक सिंह रावत के खिलाफ कांग्रेस के ही बागी प्रत्याशी भी चुनाव लड़ रहे थे तो दूसरी ओर कांग्रेस के कई क्षेत्रीय कार्यकर्ता भी उनके खिलाफ मोर्चा खोले बैठे थे। ऐसी विषम् परिस्थितियों में भी बाहरी प्रत्याशी होने के बावजूद मात्र कुछ दिनों में चुनाव जीतने की ताकत रखने वाले डा0 हरक सिंह रावत इस बार भी कोटद्वार जैसी बेहद टफ़ सीट से विधानसभा चुनाव लड़ने की प्रबल इच्छा पाले हुए हैं।

डा0 हरक सिंह का मिशन कोटद्वार शुरू 

भाजपा में शामिल होने के बाद डा0 हरक सिंह रावत ने कुछ दिन पहले कोटद्वार झण्डा चैक में एक विशाल रैली और एक विशाल जनसभा आयोजित कर कोटद्वार से चुनाव लड़ने के अपने इरादे जाहिर कर दिये थे। इसके कुछ दिन बाद ही कोटद्वार में आयोजित भाजपा की जिला कार्य समिति की बैठक में अचानक पहुँचे डा0 हरक सिंह रावत ने अपनी दावेदारी के संकेत दे दिये थे। तब से कई बार डा0 हरक सिंह रावत कोटद्वार विधानसभा के भाबर क्षेत्र के कई गांव में सघन क्षेत्र भ्रमण कर मजबूत दावेदारी ठोक चुके हैं। सूत्रों की माने तो कांग्रेस के कई कार्यकर्ता डा0 हरक सिंह रावत के साथ अंदरखाने लामबन्द हो चुके हैं। इसके बाद कांग्रेस ही नहीं बल्कि भाजपा में भी पिछले कई वर्षों से विधायकी का सपना देखने वाले दावेदारों की नींद उड़ गई है। हरक सिंह की दावेदारी से भाजपाईयों सहित कांग्रेसियों में हड़कंप मचा हुआ है। बूथ स्तर पर बेहद मजबूत चुनावी प्रबन्धन व जोड़-तोड़ की राजनीति में माहिर डा0 हरक सिंह रावत की कोटद्वार सीट पर मजबूत दावेदारी के चलते कांग्रेस के लिए इस सीट को बरकरार रखना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य होगा तो डा0 हरक सिंह रावत के लिए भी बाहरी प्रत्याशी होने के आरोपों के साथ संभावित बागी प्रत्याशियों व भीतरीघातियों से निपटने की चुनौतीपूर्ण परिस्थिति बनी रहेगी।

सांसद बनने की भी है महत्वाकांक्षा 

हाल ही में भाजपा में शामिल हुये डा0 हरक सिंह रावत बेहद अच्छी तरह से जानते हैं कि भाजपा में वह अचानक सीधे तौर पर मुख्यमंत्री नहीं बन सकते। इसलिए वे वाया संसद जाने का मार्ग चुनने की जुगत में हैं। यदि वह गढ़वाल से बाहर किसी अन्य सीट से विधानसभा चुनाव लडते हैं तो फिर गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र से उनकी दावेदारी कमजोर पड सकती है। बढ़ती उम्र के चलते खण्डूड़ी का यह आखिरी कार्यकाल माना जा रहा है। तब आगामी लोकसभा चुनाव में गढ़वाल सीट का डा0 हरक सिंह की दावेदारी स्वतरू ही बन जाती है। ऐसे में डा0 हरक सिंह रावत इस बार भी गढ़वाल संसदीय क्षेत्र की किसी भी विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर 2019 में गढ़वाल लोकसभा सीट पर अपना दावा मजबूत कर सकते हैं। इसके लिए कोटद्वार से बेहतर और सुरक्षित सीट कोई नहीं हो सकती। क्योंकि वे गढ़वाल लोकसभा के पौड़ी, लैन्सडाउन, रूद्रप्रयाग जैसी अलग-अलग विधानसभाओं से विषम परिस्थितियों में भी लगातार चुनाव जीतते रहे हैं। पौड़ी, श्रीनगर, केदारनाथ, बद्रीनाथ, चैबट्टाखाल, लैन्सडाउन, यमकेश्वर, कोटद्वार सहित गढ़वाल की कई विधानसभाओं में ड़ा0 हरक सिंह रावत का विशेष प्रभाव माना जाता है। स्वयं उनकी पत्नी पौड़ी जिला पंचायत की अध्यक्ष है वहीं दूसरी ओर जिला पंचायत रूद्रप्रयाग में भी उनकी प्रबल समर्थक लक्ष्मी राणा का कब्जा है। इसलिए वह कोटद्वार जैसी नई विधानसभा सीट पर चुनाव जीतकर पूरे गढ़वाल क्षेत्र पर अपनी मजबूत पकड़ को साबित करना चाहते हैं। ताकि 2019 में पौड़ी लोकसभा सीट पर भी उनका कब्जा बरकरार रहे। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी डा0 हरक सिंह रावत की कुशल चुनावी रणनीति का गढ़वाल में अधिक से अधिक लाभ लेना चाहता हैं। यदि वह कोटद्वार सीट जीतकर भाजपा की झोली में डालते हैं तो 2012 में हुई जनरल भुवन चन्द्र खण्डूड़ी की ऐतिहासिक हार का बदला लेने के साथ ही 2019 में पौड़ी लोकसभा सीट पर स्वतरू ही जनरल खण्डुड़ी के उत्तराधिकारी के दावेदार बन सकते हैं।

मजबूत चुनावी प्रबन्धन व राजनीतिक कौशल में माहिर हैं डा0 हरक सिंह रावत

भारत सिंह रावत व सुरेन्द्र सिंह नेगी जैसे दिग्गज क्षेत्रीय नेताओं के वर्चस्व व प्रभाव क्षेत्र वाली लैन्सडाउन जैसी विधानसभा सीट पर लगातार दो बार चुनाव जीतना उनका बेहद मजबूत चुनाव प्रबन्धन व कौशलता को दर्शित करता है। 2007 के विधानसभा चुनाव में सुरेन्द्र सिंह नेगी, डा0 इन्दिरा हृदेश, तिलकराज बेहड़ जैसे दिग्गज मंत्री रहने के बावजूद चुनाव हार गये थे तब भी 2003 में जैनी प्रकरण, पटवारी घोटाले जैसे गंभीर आरोपों के बावजूद डा0 हरक सिंह रावत लगातार दो बार चुनाव जीते थे। 2007 में तो उनकी जीत का अंतर 2002 के मुकाबले दस गुना अधिक था।

महत्वकांक्षाओं  ने बढ़ाया अब तक राजनैतिक कद !

डा0 हरक सिंह रावत अपनी प्रबल महत्वकांक्षाआंे के चलते हमेशा चर्चाओं में रहते हैं। अनेक बार विधायक और मंत्री रहने के साथ ही 2007 में नेता प्रतिपक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद पर काबिज रहे। 2012 में कांग्रेस सरकार के गठन में वह मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार रहे। विगत मार्च माह में नौ बागी विधायकों को लेकर हरीश रावत सरकार की चूले हिलाने वाले डा0 हरक सिंह रावत की हनक हमेशा चर्चाओं में रही। बडे विवादों से डा0 हरक सिंह का हमेशा चोली-दामन का साथ रहा है। उनकी प्रबल महत्वकांक्षा हमेशा मुख्यमंत्री बनने की रही है। जिसके चलते वह प्रदेश के कई ताकतवर नेताओं के मुख्य प्रतिद्वंदी रहे हैं। गढ़वाल बनाम कुमाऊँ की राजनीति को आगामी चुनाव में वह मुख्य मुद्दा बना रहे हैं।

कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हरक के नाम हैं दर्ज  !

उनके नाम पर कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां भी दर्ज हैं। 1997 में बहुजन समाज पार्टी की मायावती सरकार ने खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के चेयरमैन रहते हुये डा0 हरक सिंह रावत ने रूद्रप्रयाग, बागेश्वर, चम्पावत सहित तीन जिलों व 7 नई तहसीलों का निर्माण करवाया। पौड़ी में कृषि निदेशालय् तो रूद्रप्रयाग में चाय विकास बोर्ड के कार्यालय खुलवाये। देहरादून में चिकित्सा शिक्षा मंत्री रहते हुए डा0 हरक सिंह रावत ने देहरादून में दून मेडिकल काॅलेज का निर्माण पूरा करवाया जो कि अब अस्तित्व में आ चुका है।

नजर अब कोटद्वार पर !

अब डा0 हरक सिंह रावत की मंशा कोटद्वार विधानसभा पर जीत दर्ज करने की दिखाई दे रही है। कोटद्वार में मेडिकल काॅलेज लालढांग-चिल्लरखाल रोड़ व कोटद्वार जिला निर्माण व कण्वआश्रम को राष्ट्रीय धरोहर बनाना उनकी प्राथमिकताओं में शामिल है। उनके बारे में कहा जाता है कि वे जहाँ से भी चुनाव लड़ते हैं, निश्चित रूप से जीतते हैं। कोटद्वार सीट पर उनका राजनीतिक भविष्य टिका हुआ है। वे कोटद्वार के भाबर सहित नगर क्षेत्र में अपनी मजबूत पकड़ बनाते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस में उनके समर्थक आज भी उनके लिए जोरशोर से सक्रिय होकर उनके लिए कोटद्वार में मजबूत जमीन तैयार कर रहे हैं।

चर्चाओं में खण्डूड़ी के पोस्टर भी 

डा0 हरक सिंह रावत भली-भाँति जानते हैं कि कोटद्वार में खण्डूड़ी के आशीर्वाद के बिना चुनाव जीतना नामुमकिन है। आज भी कोटद्वार गढ़वाल सहित पूरे प्रदेश में जनरल भुवनचन्द्र खण्डूड़ी सबसे अधिक ईमानदार व साफ-सुथरी छवि के नेता माने जाते हैं। इसलिए कोटद्वार में दावेदारी करने से पहले डा0 हरक सिंह रावत ने पूरी भाबर क्षेत्र सहित नगर क्षेत्र में अपनी फोटो के साथ जनरल खण्डूड़ी के बड़े कटआउट वाले हजारों पोस्टर छपवाकर अपने खण्डूड़ी समर्थक होने का दांव चला है। इससे खण्डूड़ी समर्थकों सहित कोटद्वार के भाजपाइयों में जबरदस्त उत्साह देखा जा रहा है। अब देखना है कि डा0 हरक सिंह रावत कोटद्वार में जनरल खण्डूड़ी की हार का बदला लेने में सफल हो पाते हैं या जनरल खण्डूड़ी की तरह भीतरीघात का शिकार होते हैं।