हम अपने नौनिहालों को जंगली जानवरों के हमलों से बेमौत मरते नहीं देख सकते : कवीन्द्र

महिलाएं दहशत के चलते अपने मवेशियों के लिए चारा-पत्ती तक नहीं ला पा रही

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एक के बाद एक गांव जंगली जानवरों के हमले से दहशतज़दा 

ग्रामीण शाम ढलने से पहले ही घरों में कैद होने को मजबूर

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

देहरादून : पलायन का दंश झेल रहे उत्तराखण्ड के जनशून्य हो चुके गांवों में जंगली जानवरों के हमले और हमलों से हो रही मौतों से बचे-कुचे लोगों की जान पर आफत बन आई है। एक के बाद एक गांव जंगली जानवरों के हमले से दहशतज़दा हैं। लेकिन सरकार की राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण ग्रामीण शाम ढलने से पहले ही घरों में कैद होने को मजबूर तो हैं ही  महिलाएं दहशत के चलते अपने मवेशियों के लिए चारा-पत्ती तक नहीं ला पा रही हैं ।

उन्होंने कहा अब यह सब और नहीं सहा जाएगा। अब वक्त आ गया है शासन-प्रशासन को जगाने के लिए एक वृहद आंदोलन किया जाए। हम अपने नौनिहालों को बेमौत मरते नहीं देख सकते।

यह बात समाजसेवी और कांग्रेसी नेता कविन्द्र इष्टवाल ने कही।  उन्होंने कहा पौड़ी जिले के पोखड़ा ब्लॉक के देवकुंडई गांव में अभी एक महीने पहले बाघ के हमले में घायल हुई बालिका बमुश्किल ठीक हो पाई थी कि एक माह के अंतराल पर एक नौ साल का बालक बाघ के हमले का शिकार हो गया। बड़ा दुर्भाग्य है कि वन विभाग के मंत्री और अधिकारीगण हाथ में हाथ धरे अनहोंनी का इंतजार करते रहे पर कोई ठोस कदम न उठा सके।

अभी दो दिन पहले क्षेत्र भ्रमण के दौरान देवकुंडई गांव के लोगों ने बताया कि उन्होंने पिछले एक माह के अंदर कई बार बाघ को गांव के आसपास देखा और पिंजरा लगाकर उस बाघ को पकड़ने की मांग की पर उनकी किसी ने नहीं सुनी। विभागों का गैरजिम्मेदारना रवैया ऐसा है कि हमारे नौनिहालों को आज अपनी जान गंवानी पड़ रही है। कविन्द्र इष्टवाल ने कहा कि जो सरकार अपने नौनिहालों को सुरक्षित माहौल नहीं दे सकती है उससे किसी तरह के मदद की उम्मीद करना नाइंसाफी है।

उन्होंने कहा  पौड़ी जिले का डंका आज पूरे देश में है इसमें कोई दोराय नहीं है पर यह भी उतना ही सच्च है कि पौड़ी से ज्यादा बूरा हाल किसी दूसरे जिले का नहीं है। चाहे केन्द्रीय मंत्री डा. निशंक हों, मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत हों, वन मंत्री हरक सिंह हों, पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज हों या फिर उच्च शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत सारे के सारे पौड़ी से जुड़े हुए हैं परंतु इन सबके बावजूद जंगली जानवरों के हमले, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की स्थिति किसी से छुपी हुई नहीं है।