मोदी लहर को भांप नहीं पाई कांग्रेस
नहीं टूटा रानीखेत का मिथक
देहरादून। उत्तराखंड में भाजपा ने विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया है। राज्य के सत्ताधारी दल कांग्रेस को इस चुनाव करारी हार का सामना करना पड़ा है। मुख्यमंत्री हरीश रावत और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय खुद चुनाव हार गए हैं। सीएम हरीश रावत दोनों विधानसभा सीटों से चुनाव हार गए हैं। कांग्रेस इस चुनाव में दस सीटों पर सिमट गई है।
हरिद्वार ग्रामीण सीट से भाजपा नेता स्वामी यतीश्वरानंद ने कांग्रेस के सबसे बड़े नेता और मुख्यमंत्री हरीश रावत को जबरदस्त पटखनी दी है। उन्होंने हरीश रावत को 12 हजार से भी ज्यादा मतों से पराजित किया। किच्छा में भी उन्हें भाजपा नेता राजेश शुक्ला ने हरा दिया।
कांग्रेस के लिए दोहरा झटका यह है कि मुख्यमंत्री के अलावा उनके प्रदेश अयक्ष किशोर उपायाय भी सहसपुर सीट पर भाजपा नेता सहदेव पुंडीर से हार गए हैं। कांग्रेस से बगावत के बाद भाजपा में शामिल होने वाले कुंवर प्रणव चौंपियन ने भी खानपुर सीट जीत ली है। कोटद्वार सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार सुरेंद्र सिंह नेगी भी भाजपा प्रत्याशी हरक सिंह रावत से हार गए हैं। हरक ने उत्तराखंड में कांग्रेस की बड़ी हार के लिए मुख्यमंत्री हरीश रावत के अहंकार को बड़ा कारण बताया है। बता दें कि हरक रावत पिछले साल कांग्रेस से बगावत करने के बाद भाजपा में शामिल हुए थे।
चौबट्टाखाल सीट पर भाजपा प्रत्याशी सतपाल महाराज ने जीत दर्ज कर ली है। राजनीतिक हलकों में उन्हें मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी माना जा रहा है। देहरादून में एक प्रदर्शन के दौरान पुलिस के घोड़े शक्तिमान की टांग टूटने के बाद चर्चा में आए मसूरी के तत्कालीन विाायक गणेश जोशी इस बार भी मसूरी से भाजपा के उम्मीदवार थे और उन्होंने एक बार फिर यहां से जीत दर्ज कर ली है। विकासनगर से भाजपा नेता मुन्ना सिंह चौहान ने राज्य सरकार में मंत्री रहे नवप्रभात को हरा दिया है। यमकेश्वर सीट से ऋतु खंडूरी ने शैलेंद्र सिंह रावत को पटखनी दे दी है।
ऋतु खंडूरी पूर्व सीएम व सांसद बीसी खंडूड़ी की पुत्री हैं। मंगलौर से कांग्रेस के काजी निजामुद्दीन ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी बसपा के सरबत करीम अंसारी को पराजित कर दिया है, भाजपा के ऋषिपाल बालियान तीसरे स्घ्थान पर रहे। भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के बेटे सौरभ बहुगुणा सीतारगंज से चुनाव जीत गए हैं। वहीं, भाजपा के सीएम पद के अघोषित उम्मीदवार पूर्व केंद्रीय मंत्री सतपाल महराज ने कहा है कि होली पर भाजपा की भारी जीत से अब नए युग की शुरुआत हो गई है। अब भय मुक्त, भ्रष्टाचार मुक्त, बेरोजगार मुक्त एवं उन्नत भारत का निर्माण होगा।
उत्तराखंड विधान सभा चुनावों में कांग्रेस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करंट को नहीं भांप पाई। राज्य के चौथे विस चुनावों में पहली बार मिले प्रचंड बहुमत का भान तो भाजपा को भी नहीं था। इस बड़ी जीत ने उत्तराखंड में भाजपा कार्यकर्ताओं में नया जोश भर दिया है। उत्तराखंड विधान सभा के चुनाव में पहली बार जनता किसी राजनीतिक दल को बंपर सीटों से कामयाबी मिली है। अब तक एक बार ही वर्ष 2002 के विस चुनाव में कांग्रेस बहुमत का आंकड़ा 36 को छू पाई थी।
पहाड़ हो या मैदान भाजपा ने सभी किलों में जबरदस्त सेंधमारी कर अपने मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को पस्त कर दिया। मोदी के इस अंडर करंट को कांग्रेस तनिक भी भांप नहीं सकी। खुद सीएम हरीश रावत हर बार 45 सीटों पर जीत का दावा करते रहे। चुनाव प्रचार के दौरान शब्दवाण के माहिर खिलाड़ी रावत इसे पांडव बनाम कौरवों की लड़ाई बताने में पीछे नहीं रहे।
मैदानी जिलों हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर के दो सीटों से चुनाव लड़ 20 सीटों पर ध्रुवीकरण कर वोटों को साधने तक की कोशिश की, लेकिन वे खुद दोनों सीटों से पस्त हो गए। अपने प्रचार के दौरान वे जनता का मूड बिल्कुल भी नहीं जान सके। जनता ने सभी दलों के नेताओं की सुनी, लेकिन जब वोट देने का वक्त आया तो मर्जी अपनी ही की। किसी के बहकावे में आए उनमें मोदी का करंट दौड़ा। यहां तक कि भाजपाइयों को भी इसका एहसास नहीं होने दिया।
हालांकि, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने 50 सीटें तक मिलने का दावा किया था, लेकिन उनका यह भी दावा था कि यदि मुकाबला कड़ा रहा तो पार्टी 37 से 42 सीटें लेने कामयाब रहेगी। यानी भट्ट भी मोदी के इस प्रचंड अंडर करंट को पकड़ नहीं पाए। चुनावों में सबसे बड़ी बात यह देखने को मिली कि मतदाता भी खुलकर किसी के पक्ष में आए। ईवीएम का बटन दबाने के बावजूद वे भाजपा-कांग्रेस में कड़ा मुकाबला मानते रहे। अब जब ईवीएम खुली तो राजनीतिक पंडित भी जनता जनार्दन के फैसले से हैरत ही नहीं बड़े आश्चर्य में हैं। आखिर, मोदी ने अकेले जो कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया।
वहीँ रानी खेत सीट के लिए बना मिथक इस बार भी जारी रहा। इस चुनाव में जहां भाजपा की सरकार बन रही है, वहीं इस सीट से पार्टी प्रत्याशी और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अजय भट्ट चुनाव हार गए हैं। उत्तराखंड चुनाव में रानीखेत से मिथक जुड़ा है यहां जो हारता है उसकी ही पार्टी की सरकार बनती है। अजय भट्ट भाजपा से सीएम की दौड़ में भी शामिल माने जा रहे थे। लेकिन चौथी विधानसभा में भी रानीखेत का मिथक नहीं टूटा। एक तरफ जहां प्रदेश में भाजपा की स्पष्ट बहुमत की सरकार आती नजर आ रही है वहीं दूसरी तरफ भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट करीब चार हजार वोट से हार गए है।