उत्तराखंड का अदभुत उत्पाद संजीवनी बूटी

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डॉ राजेंद्र डोभाल

भारत के वेद पुराणों में वर्णित ’’संजीवनी’’ आज राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय में चर्चा का विषय बना हुआ है। आज सभी वैज्ञानिक जगत मे उसी संजीवनी पर विस्तृत सोध किया जा रहा है जो कि हमारे वेदों पुराणों में कई वर्ष पहले वर्णित किया गया था। सभी लोग अक्सर यह विचार करते है कि आखिर संजीवनी बूटी है क्या ? पुराणों के अनुसार संजीवनी एक विद्या है जिसका ज्ञान भगवान शिवजी को ही प्राप्त था उसके पश्चात् ऋषि भृगु के पुत्र शुक्राचार्य जी ने भगवान शिवजी से संजीवनी विद्या प्राप्त की थी, कहा जाता है कि इसी विद्या से ही भगवान शिवजी ने भार्गव तथा परशुराम को जीवित किया था। इसके अलावा देव गुरू बृहस्पति तथा देव चिकिस्तक अश्विनी कुमारों को यह विद्या प्राप्त होने का वर्णन भी पुराणों तथा संहिताओं में है।

महर्षि बाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण युद्ध काण्ड के एक श्लोक में वर्णन किया गया है कि जो देव चिकित्सक अश्विनी कुमारों द्वारा क्षीरोदसागार के चारों ओर स्थित पवर्तों में से एक चन्द्र पवर्त पर अमृत-सृजन के लिए दिव्य औषधियों का उगाना मुख्य कार्य था। इन्हीं पर्वतों में से एक पर्वत द्रोण पवर्त पर ही वैद्यराज सुशेण जी द्वारा विषल्यकर्णी तथा मृत संजीवनी लेने हेतु हनुमान जी को भेजा गया था, जब श्री राम जी के छोटे भ्राता लक्ष्मण जी को शक्ति का वर्णन किया गया है-

द्वितीय पर्वतश्चन्द्र सवोषधी समन्वित : ।
अश्वीभ्यामृत स्यार्थे औषध्यस्तत्र संस्थितः ।।
पंचम सोमको नामः दैवैर्यत्रामृतं पुराः।
चतुर्थः पर्वतो द्रोणो यत्रोशध्य महाबलाः ।।
विषल्यकर्णी चैत्र मृतसंजीवनी तथा।।

वर्तमान मे भारत मे नही पूरे विश्व के वैज्ञानिक समुदाय द्धारा पुराणों मे उल्लेखित इसी श्लोको का संदर्भ लेते हुए पुनः संजीवनी परिवार के दिव्य औषधियों की खोज तथा इसके वैज्ञानिक विश्लेषण जारी है। सारे वैज्ञानिक समुदाय मे सबसे बडा रहस्य यह है की आखिर संजीवनी का पौधा किसे कहा जाय तथा क्या संजीवनी सच मे मृत को जिंदा करने की क्षमता रखती है। इस सन्दर्भ मे डा0 गणेशन द्धारा वर्ष 2009 मे current science में प्रकाशित शोध पत्र के अनुसार मौजूद सभी भाषाओ के रामायण के अनुसार तथा लगभग 80 भाषाओ मे प्रकाशित Bio-resources database के अध्ययन के पश्चात या की Selaginella bryopteris, Desmotrichum fimbriatum तथा Cressa cretica ही पुराणों मे उल्लेखित संजीवनी से सबसे ज्यादा मिलती वनस्पतियॉ है। उपरोक्त तीन वनस्पतियों मे सबसे प्रमुख बात यह आती है की Selaginella bryopteris को ही संजीवनी क्यों कहा जा रहा है क्योंकि उपरोक्त तीन वन्स्पतिओं मे से C. cretica dry tracks Deccan Plateau, low lands में पाई जाती है जबकी Selaginella bryopteris ही उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाने वाला highly drought tolerant plant बताया गया जो की काफी समय तक Inactive अवस्था में रहने के बाद भी हल्की नमी मिलने पर पुर्नजीवित हो जाता है। इसी तथ्य की पुष्टि 1400 ई0 मे प्रकाशित एक पुस्तक ‘The doctrine signature’ के इस तथ्य से होती है कि ‘The plant with similar syndromes can treat similar diseases’ यदि Similar care similar तो Selaginella bryopteris संजीवनी हो सकती है। हाल ही में वर्ष 2016 के प्रसिद्व Frontiers in plant science जरनल में प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार सिलेजिनेला ब्रियोप्टेरिस पौधे मे हुए एक प्रयोग मे पाया गया कि पौधे को 7 दिन तक dehydrate किऐ जाने पर भी पौधे में मौजूद सभी आवश्यक पादप जीवन उपयोगी प्रोटीन तथा उनकी प्रक्रियाये dehydration process के दौरांन भी अपरिवर्तित तथा निरन्तर बढती हुई अवस्था मे पाये गये।

The Telegraph, 29 सितम्बर 2005 मे प्रकाशित लेख के अनुसार Selaginella जिसको संजीवनी का नाम दिया जा रहा है के ऊपर CSIR को तथा कई अन्य वैज्ञानिक शोध सस्ंथानों द्वारा शोध कार्य किया गया जिसमें जिसमें यह देखा गया है की क्या Selaginella cell growth को Promote कर सकती है तथा कोशिका क्षति को रोक पाने में समर्थ है जो की Madhav Institute of Technology and Sciences, Gwalior, ds DNA fingerprinting and Diagnostics विभाग द्वारा Effect of Selaginella herbs on Insects cells अध्ययन किया गया और यह पाया गया की Selaginella extract protect the cells from Harmful effects of heat, UV rays and destructive chemicals. जनरल ऑफ वायोसांइस (2005) में प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार सिलेजिनेला ब्यिप्टेरिस के एक्वस एक्सटूक्स प्रयोग में यह कोशिका की वृद्धि हेतु तथा तनाव से मृत कोशिका को ठीक करने के लिये बताया गया है।

सेलाजिनेला एक बहुत बडा genus है जो कि सेलाजिनेलेसी कुल से सम्बंध रखते है। सेलाजिनेला जाति के पूरी दुनिया में लगभग 700 से 750 प्रजातियॉ पायी जाती है इनमें से ही एक सेलाजिनेला ब्रियोप्टेरिस है जिससे मुख्यतः संजीवनी नाम से जाना जाता है। इसकी उत्पति भारत में ही मानी जाती है और उत्तराखण्ड के चमोली जिले के द्रोणागिरि गांव के द्रोणागिरी पर्वत में खूब बहुतायात मात्रा में पायी जाती है। नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ फामेस्यिटिकल एजुकेशन एण्ड रिसर्च (NIPER), इण्डिया के 2003 एक अध्ययन के अनुसार इसमें यह एक अच्छा एंटिइन्फलामेट्री गुण वाला पौधा है तथा इसमें एमेंन्टोफ्लेवोन, हिनोकिफ्लेवोन, हेवीफ्लेवोन, बिलोबेटिन तथा से क्योफ्लेवोन नामक पांच मुख्य बाइफ्लेवोनाइटड्स के साथ-साथ एपिजेनिन, लूटियोलिन तथा केफिक एसिड आदि रासासनिक अवयव पाये जाते है।

हिन्दू पुराणो के अनुसार संजीवनी को Magical हर्ब का नाम दिया गया है जो किसी भी शारीरिक विकार का समाधान करने की क्षमता रखती है। पुराणों में वर्णित संजीवनी बूटी तथा Selaginella bryopteris जो आज के युग में संजीवनी का प्रयाय मानी जाने वाली, दोनों का ही उत्तराखण्ड से गहरा संबन्ध है। जिस कारण वर्ष 2016 में उत्तराखण्ड सरकार द्वारा औषधीय गुणो वाली Selaginella bryopteris (संजीवनी) के खोज के लिए परियोजना तैयार की है जो की चीन की सीमा कें नजदीक द्रोणागिरी पर्वत पर संजीवनी की खोज /शोध करेगी।

उपरोक्त तथ्यो के आधार पर Selaginella bryopteris में मौजूद अदभुत प्रोटीन का मानव शरीर पर होने वाले प्रभावो का विस्तृत वैज्ञानिक अध्धयन की आवश्यकता है।

( लेखक डॉ. राजेंद्र डोभाल, वर्तमान में विज्ञान एवम प्रौद्योगिकी परिषद् उत्तराखंड के महानिदेशक हैं )