हिमालयन हॉस्पिटल जौलीग्रांट में प्लाज्मा थैरेपी से होगा उपचार

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स्वैच्छिक प्लाज्मा डोनेशन को जीवन की रक्षा के लिए ठीक हो चुके लोग आएं
प्लाज्मा डोनेशन का नहीं होता कोई साइड इफेक्ट

देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून :  हिमालयन हॉस्पिटल जौलीग्रांट में भी अब प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना के मरीजों का इलाज होगा। हिमालयन हॉस्पिटल इस थेरेपी को शुरू करने वाला राज्य का पहला गैर सरकारी हॉस्पिटल है। कोविड संक्रमण से उबर चुके लोग ही प्लाज्मा डोनेट कर सकते हैं।
स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय (एसआरएचयू) के कुलपति डॉ.विजय धस्माना ने कहा कि रोगी किसी भी तरह के भ्रम में न रहें। हिमालयन हॉस्पिटल में सामान्य रोगियों से अलग दूसरी बिल्डिंग में कोविड रोगियों के उपचार की व्यवस्था की गई है। इस बीच सरकार से प्लाज्मा थैरेपी के जरिये कोविड रोगियों के उपचार की मंजूरी मिल गई है। प्लाज्मा थैरेपी से उपचार शुरू करने वाले राज्य का पहला गैर सरकारी हॉस्पिटल है।
कुलपति डॉ.विजय धस्माना ने बताया कि प्लाज्मा थैरेपी को एक रेस्क्यू ट्रीटमेंट के तौर पर देखा जा रहा है। हिमालयन हॉस्पिटल प्रशासन काफी समय से इस थेरेपी को शुरू करने की कवायद कर रहा था। अब इसकी सभी औपचारिकताएं अब पूरी कर ली गई हैं।

कौन बन सकता है प्लाज्मा डोनर

जो मरीज कोविड-19 संक्रमण से उबर जाते हैं, उनके शरीर में इस संक्रमण को बेअसर करने की प्रतिरोधी IgG एंटीबॉडीज विकसित हो जाते हैं। इन एंटीबॉडीज की मदद से दूसरे कोविड-19 रोगी के रक्त में मौजूद वायरस को खत्म किया जा सकता है। यानि की वह कोविड-19 से ठीक हुए रोगी ही इस थेरेपी में डोनर बन सकते हैं। प्लाज्मा डोनर की आयु 18 से 60 के बीच और वजन 50 किलोग्राम से कम नहीं होना चाहिए। साथ ही पुरुष एवं अप्रसवा महिला ही इस थेरेपी में डोनर बन सकते हैं ।

संक्रमण से उबर जाने के बाद कर सकते हैं प्लाज्मा डोनेट

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और ड्रग्स कंट्रोलर-जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) के दिशा-निर्देशों के मुताबिक प्लाज्मा डोनेट करने के लिए कम से कम दो सप्ताह (14 दिन) व चार सप्ताह (28 दिन) की दो समयावधियां निर्धारित हैं।
दो सप्ताह (14 दिन) की समयावधि उन मरीजों के लिए है जिनके स्वस्थ होने के बाद आरटी-पीसीआर कोविड-19 रिपोर्ट नेगेटिव आई है। मतलब वह रिपोर्ट नेगेटिव आने के कम से कम 14 दिन बाद ही प्लाज्मा डोनेट कर सकते हैं।
दूसरा, जो लोग संक्रमण से उबर चुके हैं और उनके पास आरटी-पीसीआर की नेगेटिव रिपोर्ट नहीं है, इस स्थिति में भी वह प्लाज्मा डोनर बन सकते हैं। हालांकि इसके लिए वह कम से कम चार सप्ताह (28 दिन) बाद ही प्लाज्मा डोनेट कर पाएंगे।

क्या होती है प्लाज्मा थैरेपी

इसमें डोनर से सूचित सहमति लेने के पश्चात, ऐफेरेसिस तकनीक से खून निकाला जाता है I इसमें खून से केवल प्लाज्मा को निकालकर खून को फिर से उसी डोनर के शरीर में वापस डाल दिया जाता है। प्लाज्मा डोनर महीने में दो बार व एक वर्ष में अधिकतम 24 बार ही प्लाज्मा डोनेट कर सकता है।

कोई साइड इफेक्ट नहीं होता

डोनर से प्लाज्मा निकालने में लगभग एक से दो घंटे का वक्त लगता है। डोनर उसी दिन घऱ जा सकता है और इस पूरी प्रक्रिया का डोनर के स्वास्थ्य पर कोई साइड इफेक्ट नहीं होता।

प्लाज्मा डोनेशन से पहले होती है डोनर की स्वास्थ्य जांच

प्लाज्मा डोनर की राष्ट्रीय मानकों के आधार पर संक्षिप्त स्वास्थ्य जांचें की जाती हैं। इसमें हेपाटाइटिस बी, सी और एचआईवी, सिफलिस एवं मलेरिया आदि स्वास्थ्य जांचें शामिल हैं।

कोरोना विजेताओं से जीवन बचाने की अपील

कुलपति डॉ.विजय धस्माना ने कहा कि प्लाज्मा डोनेट करने से कमजोरी नहीं आती है। यह रक्तदान की तरह ही है। एक बार प्लाज्मा दान करने वाला व्यक्ति दो हफ्ते बाद फिर से प्लाज्मा दान कर सकता है। इसलिए कोरोना से ठीक हो चुके लोग प्लाज्मा डोनेट करने से घबराएं नहीं। इस नेक काम में भागीदार बनने के लिए 0135-2471200, 300, 223, 9719236380 पर फोन कर सकते हैं।