आज बात शराब की …..!

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अखिलेश डिमरी 

शराब विरोधी आंदोलनों और उस पर सरकार के लिए राजस्व प्राप्ति की मजबूरियों के बीच कुछ और अहम सवाल भी हैं जिन पर शराब बंदी न होने की दशा में विचार किया जाना जरूरी है।

शराब के विरोध में आन्दोलनों , माननीय उच्च न्यायालय के शराब बंदी के फैसले और सामाजिक संगठनों के दबाव् के बावजूद भी सरकारों का शराब बंदी की बात को न स्वीकारना महज एक तथ्य पर टिका है कि शराब से सरकार को लगभग 2000 करोड़ के राजस्व की प्राप्ति होती है, और इस राजस्व का उपयोग नान प्लान के खर्चों में होता है । इसलिए इस सूबे में कोई भी सरकार हो उसने शराबबंदी की हिम्मत नहीं जुटाई। लाख विरोध के बावजूद ही सही पर सरकार शराब की दुकानों को पुलिस सुरक्षा में चलाने को मजबूर है।

अब शराब से राजस्व प्राप्ति के पहलुओं पर अगर गौर करें तो यह भी आश्चर्यजनक है कि अपना सूबा शायद पूरे देश का एकमात्र सूबा होगा जो शराब के रिटेलर को 20 से 25 प्रतिशत तक कमीशन देता है , जबकि अगर यही कमीशन घटा कर 10 प्रतिशत कर दिया जाए तो मौजूदा शराब विरोधी लहर में सरकार कुछ दुकानों को बंद कर राजस्व के लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर सकती है।

पिछले वर्ष अप्रैल 2016 से सितम्बर 2016 के आबकारी विभाग के आंकड़ों को लीजियेगा तो अकेले देहरादून में शराब की बिक्री का अंदाजा इस बात से लग जाता है कि इन 6 माहों में ही शराब की 3931484 बोतलें बिकी , जिसकी कीमत लगभग 173.16 करोड़ थी, जबकि इस वित्तीय वर्ष का सरकारी लक्ष्य 244 करोड़ 36 लाख रूपए था जो कि शराब बिक्री की इस 6 माही रफ़्तार के अंदाजे से तो कई आगे निकल गया होगा। इसके अलावा बार और रेस्त्रां से भी सरकार को इस 6 माह में ही 10 करोड़ रूपये की राजस्व आमदनी हुई है ।

इन आंकड़ों के बाद सवाल यह उठता है कि सरकार शराब से राजस्व कमाने की दशा में कितनी पारदर्शी है…? अगर आप गौर करें तो दीगर बात यह है कि आज भी सूबे की आबकारी नीति स्पष्ट नहीं है , ओवर रेटिंग और खराब क्वालिटी की शराब का होना बहुत ही आम है, कारण कि शराब की दुकानों पर रेट लिस्ट , बिलिंग मशीन और बार कोड की व्यवस्था न होने से अच्छे ब्रांडों की नकली शराब की बिक्री होना सरल हो जाता है ।

पिछले कई सालों से महज बातें ही की जा रही हैं लेकिन आज भी शराब की दुकानों में बिलिंग मशीन का प्रचलन में न होना भी इस बात को स्पष्ट करता है कि सरकार , सरकार द्वारा शराब के अनुश्रवण हेतु निर्धारित एजेंसियों और शराब माफियाओं के बीच कोई न कोई गठजोड़ तो है , क्योंकि एक तरफ सरकारी विज्ञापन हर खरीद पर बिल लेंने की बात कहते हैं पर शराब की दुकानों में बिल का न मिलना कुछ और ही कहानी कहता है ।

इस मुद्दे पर मेरे इस लेख का आशय शराब को प्रोत्साहित करना , शराब के खिलाफ चल रहे आंदोलन की मूल भावना का विरोध करना कतई नहीं , पर सरकार से इस बिंदु पर सवाल करना जरूर है कि अगर आप शराब को राजस्व प्राप्ति का इतना बड़ा आयोजन मानतें है तो राजस्व प्राप्ति के लिए ठोस पारदर्शी नीति क्यों नहीं…..? आप क्यों बार कोड और बिलिंग सिस्टम को हर दूकान पर लागू नहीं करते…? आप क्यों नहीं कहते कि बिना बिल शराब बेचने और खरीदने पर पाये जाने वाले व्यक्तियों के खिलाफ कार्यवाही होगी …….? आपको अगर राजस्व प्राप्ति के लिए ही शराब की बिक्री को बनाये रखना है तो आप क्यों नहीं रिटेलर का कमीशन 25 प्रतिशत से 10 प्रतिशत कर देते शेष 15 प्रतिशत तो आपके राजस्व का ही हिस्सा होगा ……? ये बसावटों और शालीन मुहल्लों में शराब की दुकानें खोलने की मजबूरी से भी बच जाओगे।

हुजूर बोतल में बंद शराब की भांति ही ये सवाल भी अभी बंद है जो शराब की बोतलों की बिक्री के साथ ही खुल रहे ढक्कनों से बाहर आएंगे और खड़े होंगे …..?