मोतीचूर रेंज की बाघिन ढाई महीने से है लापता, अधिकारी निश्चिंत

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वन विभाग के ” ब्लू आई ”अधिकारी की नाक के नीचे से आखिर कहां गायब हुई बाघिन 

आसमान निगल गया या धरती खा गई बाघिन को जो विभाग को ढूंढे नहीं मिल रही बाघिन 

आखिर अधिकारी क्यों छिपाना चाहते हैं गायब बाघिन की लाइव लोकेशन ?

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 
देहरादून : उत्तराखंड का वन्य जीव महकमा अपने राज्य के भीतर के वन्य जीवों कोलेकर कितना संजीदा है यह इस बात से पता लग जाता है जब एक बाघिन (Tigress) पिछले ढाई माह से गायब है और विभागीय अधिकारी न तो उसकी खोज ही कर रहे हैं और न कोई बयान ही जारी कर रहे यहीं कि लापता बाघिन जिन्दी है या मर चुकी है, इतना ही नहीं यदि जिन्दा है तो उसकी क्या लोकेशन है और वह किस हाल में है। सूबे के वन्य जीव प्रेमियों का कहना है यदि बाघिन जिन्दा होती तो विभागीय अधिकारी उसकी जरूर लोकेशन बताते। लेकिन वन विभाग के अधिकारियों के मामले पर न जाने क्यों पर्दा डाला हुआ है। 
गौरतलब हो कि मोतीचूर रेंज राजाजी पार्क इलाके में आता है और वहां के वन्य जीव प्रतिपालक वन्य जीव अधिकारियों का ब्लू आई बताया जाता है जिसके पास एक नहीं बल्कि तीन तीन वन प्रभागों हरिद्वार, देहरादून सहित गुर्जर पुनर्वास और अभी इन्हे पदोन्नति के बाद गोविन्द पशु विहार के DFO का भी दायित्व है। चर्चा है गोविंद पशु विहार ये इसलिए नहीं जा रहे क्योंकि वहां बर्फ पड़ती है बाकि सभी दायित्व इन्हे मलाईदार लगते हैं इसलिए इन्हे नहीं छोड़ते।  इतना ही नहीं चर्चित अधिकारी होने के चलते विभागीय उच्चाधिकारियों का इन्हे ” ब्लू आई” बताया जाता है। चर्चा तो यहाँ तक है कि वन्य जीव महकमें में बड़े से लेकर छोटे अधिकारी इनकी जेब में रहते हैं लिहाज़ा कोई भी अधिकारी इनके खिलाफ शिकायत सुनने को तैयार नहीं होते जबकि विभागीय जांच में इनपर कई बार कई गंभीर आरोप लत लग चुके है लेकिन ऊपरी पहुँच के चलते बीते आठ सालों से यहां जमे इस अधिकारी का कोई भी बाल बांका नहीं कर पाया है।
मामला लापता बाघिन का है जिसे खोजने के विभाग द्वारा कोई भी प्रयास नज़र नहीं आ रहे हैं।  हालांकि विभाग के एक उच्चाधिकारी के इस ” ब्लू आई” वन्य जीव प्रतिपालक के सुर में सुर मिलाते हुए कहना है कि बाघिन सुरक्षित है और वह यहाँ से 27 किलोमीटर दूर जा चुकी है।  लेकिन बाघिन किस हालत में है इस सवाल को वे गोपनीय बताते हैं।  इससे साफ़ होता है कि पार्क क्षेत्र में शिकारियों की उपस्थिति है जो बात वे इस तर्क को देकर छिपाना चाहते हैं।  इससे एक बार तो और भी साफ़ हो जाती है कि गायब बाघिन के अलावा अन्य वन्य जीवों पर भी खतरा मंडरा रहा है। ऐसे में वर्षों से पार्क में तैनात अधिकारियों की भूमिका पर भी सवालिया निशान खड़े होते हैं कि आखिर उनकी तैनाती पार्क क्षेत्र में क्यों की गयी है ?