देवप्रयाग की ‘हिलटाँप’ और लियो टॉलस्टॉय की कहानी……

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देवप्रयाग के डडुआ में लग चुके प्लांट का विरोध भी अब कहीं से जायज नहीं

वरिष्ठ पत्रकार योगेश भट्ट की फेसबुक वाल से साभार 

विरोध तब तो जायज था जब सरकार ने इस प्लांट के लिए जमीन खरीदने की इजाजत दी । विरोध तब समझ में आता जब स्थानीय लोगों ने शराब प्लांट के लिए जमीन देने से साफ इंकार किया होता । विरोध तब भी जायज था जब सरकार ने प्लांट तैयार करने और शराब बनाने के लाइसेंस जारी किये । मगर आज इस विरोध के इसलिए कोई मायने नहीं है क्योंकि करोड़ों खर्च करने के बाद इस प्लांट से अब उत्पादन शुरू हो चुका है । तीन साल से इस प्लांट पर काम चल रहा है । इस बीच जमीन खरीदे जाने से लेकर प्लांट लगने तक के बीच तमाम प्रक्रियाओं से गुजरा होगा, ऐसे में कोई यह कहे कि किसी को पता ही नहीं चला कि यहां शराब प्लांट लगने जा रहा है यह बात आसानी से गले से नहीं उतरती ।

प्रसिद्ध रूसी साहित्यकार लियो टॉलस्टॉय का नाम विश्व के महान साहित्यकारों में हैं, उन्नीसवीं सदी के वह सर्वाधिक सम्मानित रचनाकार रहे। उन्होंने कई विश्व विख्यात उपन्यासों, कहानियों और नाटकों की रचना की । विश्व की तकरीबन हर भाषा में उनकी रचनाओं का अनुवाद हुआ है। टॉलस्टॉय की रचनाएं धार्मिक आस्थाओं, उच्च विचारों और नैतिक आदर्शों का प्रतिनिधित्व करती हैं । यही कारण है कि उनकी रचनाएं हर देश, काल, परिस्थति, में आज भी प्रासंगिक नजर आती हैं । विश्व भर में बुद्धिजीवियों और विचारकों को टॉलस्टॉय ने किसी न किसी रूप में प्रभावित किया है । कहते हैं कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी तो टॉलस्टॉय को अपना गुरू मानते थे ।

बहरहाल यहां टॉलस्टॉय का जिक्र करने की खास वजह देवप्रयाग के डडुआ गांव में हिलटाप ब्रांड की शराब का वह प्लांट है, जिसके समर्थन और विरोध में इन दिनों जुबानी ‘जंग’ छिड़ी हुई है । शराब खराब है और निसंदेह शराब से जुड़े फैसले किसी न किसी रूप में समाज के बड़े वर्ग पर अपना दुष्प्रभाव छोड़ते हैं । नैतिकता कहती है कि सरकारों को शराब पर कोई भी फैसला लेने से पहले उसके दुष्प्रभावों के बारे में जरूर सोचना चाहिए ।

दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि सरकारें इतना सोचने की जहमत ही नहीं उठाती क्योंकि उनकी निष्ठाएं तो कहीं और गिरवी रखी होती हैं । सरकार के फैसलों का नुकसान समाज उठाता है और पीढ़ियां उसे झेलती हैं । शराब की फैक्ट्रियां किसी भी समाज में कब, क्यों और कैसे लगती हैं ? उनका समाज में क्या दुष्प्रभाव होता है ? किसके हित सधते हैं और कौन दुष्परिणाम भुगतता है ? इन सब सवालों का जवाब टॉलस्टॉय की तकरीबन डेढ़ सौ साल पुरानी ‘money makes man emotionless’ नाम की उस कहानी में है, जो हिंदी में कहीं ‘अमीरी का नशा’ तो कहीं ‘शैतान और किसान की रोटी’ से अनुवादित हुई है । पूरी कहानी तो अंत में मगर कहानी का सार यह है कि किसी समाज को हमेशा के लिए ‘जानवर’ बनाए रखना हो तो उसे सुनियोजित तरीके से शराब में डूबा दो । टॉलस्टॉय की इस कहानी में उतरने पर पता लगता है कि देवप्रयाग में शराब प्लांट भी माने इसी कहानी का हिस्सा है ।

चलिए अब मुद्दे पर आते हैं । मुद्दा यह है कि देवप्रयाग के डडुआ गांव में शराब को जो प्लांट तीन साल पहले मंजूर हुआ, उससे शराब का उत्पादन शुरू हो गया है । इधर प्लांट से जैसे ही शराब की बोतल बाहर निकली, सोशल मीडिया पर ‘देवप्रयाग में शराब फैक्ट्री’ वायरल हो गयी । ऐसा लगने लगा मानो बाहर से किसी ने गुपचुप तरीके से प्लांट लगा दिया गया हो और शराब बनानी शुरू कर दी हो । अभी तक इसका पता न सरकार को रहा हो और न जनता को । हर खेल की खबर रखने वाले समाज के कथित ठेकेदारों को भी इसकी खबर न रही हो । फेसबुक और व्हाट्स एप पर खबर वायरल होते ही तीन साल से चुप्पी साधे बैठा ‘विरोध’ का ‘जिन्न’ अचानक बाहर निकल आया है । देवप्रयाग में शराब प्लांट अखबारों और टीवी चैनलों की सुर्खियां बना हुआ है । जो सूचनाएं तीन साल तक लोगों के पास नहीं थी, वह अचानक सबको कंठस्थ हो गयीं । देहरादून से लेकर देवप्रयाग और उसके आसपास विरोध शुरू होने लगा है । जो कल तक सरकार में रहते हुए शराब फैक्ट्री लगाने का रास्ता साफ कर रहे थे, आज वही मौजूदा सरकार पर निशाना साधने लगे ।

कहते हैं न बात निकलेगी तो दूर तक जाएगी, देवप्रयाग में शराब फैक्ट्री कोई अकेले मौजूदा सरकार की देन तो नहीं है । पुरानी और नयी दोनो सरकारों की सक्रियता और सहयोग से ही यह असंभव संभव हो पाया, हां जो पब्लिक आज यह कहती है कि उन्हें पता नहीं था कि यहां शराब का प्लांट लग रहा है यह भी सरासर झूठ है । जिस फैक्ट्री के लिए जमीनों के खेल में ही लाखों की दलाली खायी गयी है, वहां कैसे संभव है कि यह न पता चला हो कि यहां होना क्या है । दरअसल तीन साल बाद होने वाले विरोध के पीछे मंशा बहुत साफ नहीं है । वरना जब इस्राइल अपने यहां भारत के विरोध के बाद शराब की बोतल से महात्मा गांधी का फोटो हटा सकता है तो देवप्रयाग जो कि विश्वभर में गंगा के लिए विख्यात वहां से शराब फैक्ट्री निरस्त क्यों नहीं हो सकती थी ? यह संभव होता अगर आवाज उठाने वालों ने समय पर आवाज उठायी होती ।

इस्राइल की घटना का जिक्र यहां इसलिए जरूरी है क्योंकि हाल में ही इस्राइल की एक कंपनी ने शराब की बोतलों पर बापू की तस्वीर लगाकर बाजार में उतारा । सवाल आस्था का था, मुद्दा अपने देश की संसद में उठा । विदेश मंत्रालय ने इस्राइल सरकार से इस पर आपत्ति जताई । नतीजा यह निकला कि अभी कुछ दिन पूर्व ही विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सदन को बताया कि इस्राइल ने माफी मांगी है । शराब कंपनी ने बापू की तस्वीर वाली बोतलों का निर्माण बंद करने के साथ ही बाजार में पहुंच चुकी बोतलों को भी वापस मंगाया जा रहा है ।

जिस तरह बापू इस देश में आस्था के प्रतीक हैं ठीक वैसे ही गंगा भी आस्था का एक प्रतीक है । गंगा और शराब का मेल किसी कीमत पर नहीं होना चाहिए, सरकार कोई भी रही हो उसे यह सोचना चाहिए था । दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि निवेशकों के व्यवसायिक हितों के आगे हमारी सरकारें हमेशा बोनी रही है । सरकार देवप्रयाग में शराब प्लांट पर स्थिति स्पष्ट करने के बजाय उलूल जुलूल तर्क दे रही है । जो विपक्ष में रहते हुए हमालवर थे वह अब पैरोकार बन कर खड़े होने लगे । खुद सरकार विकास और रोजगार की दलील देते हुए उत्तराखंड में शराब फैक्ट्री को जायज ठहरा रही हैं । हालत यह है कि सरकार अपने फैसले पर किसी भी हद तक जाने को तैयार है ।

अचानक शुरू हुए विरोध से फैक्ट्री मालिक भले ही परेशान हो मगर सरकार को इसकी कोई परवाह नहीं है । सरकार को मालूम है कि विरोध सतही और सिर्फ खबरों में है । सरकार हर रोज विरोध की काट करा रही है । प्रसिद्ध लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी का बयान भी अभी पिछले दिनों शराब फैक्ट्री के पक्ष आया । दूसरी ओर महिला आयोग जैसी संवैधानिक संस्था की अध्यक्ष ने भी शराब फैक्ट्री के विरोध पर सवाल उठाया है । इन बयानों का विरोध भी हो रहा है तो समर्थन भी किया जा रहा है ।

कुल मिलाकर पहाड़ पर शराब फैक्ट्री का मुददा आश्चर्यजनक रूप से विरोध और समर्थन के बीच झूल रहा है, वह भी कुतर्कों के साथ । आज की स्थिति में समर्थन और विरोध दोनो ही प्रायोजित जान पड़ते हैं । सटीक तर्क न तो पहाड़ में शराब फैक्ट्री के समर्थन में है और न ही विरोध में। अब शराब फैक्ट्री के समर्थन के पीछे यह तर्क तो कतई नहीं हो सकता कि उत्तराखंड में शराब पी जाती है , इसलिए यहां शराब की फैक्ट्रियां लगने दी जाएं । इन फैक्ट्रियों के लगने से कम से कम सही और सच्ची शराब तो उपलब्ध होगी ।

अगर तर्क यह है तो फिर तो राज्य में अफीम और भांग की खेती का भी लाइसेंस खुलना चाहिए, क्योंकि इस नशे का कारोबार भी राज्य में सालाना दो हजार करोड़ से ऊपर का है । सिर्फ यही क्यों फिर तो बहुत कुछ ऐसा खोला जा सकता है जिसकी सार्वजनिक स्वीकार्यता भले ही न हो लेकिन डिमांड के इस फार्मूले पर वह फिट बैठता हो । दूसरे जो लोग इस आधार पर समर्थन कर रहे हैं कि शराब फैक्ट्रियां स्थापित होने से राज्य के स्थानीय फलों और अनाज की खपत बढ़ेगी, वह भी या तो गलतफहमी का शिकार हैं या जानबूझकर मूर्ख बने हुए हैं । उन्हें शायद इसका ज्ञान नहीं है कि जो शराब फैक्ट्रियां लग रही हैं उनमें स्थानीय अनाज या फलों का फिलवक्त तो कोई रोल है ही नहीं ।

शराब फैक्ट्री के विरोध और समर्थन के खेल में एक बात पूरी तरह साफ है कि सरकार की मंशा में कतई साफ नहीं है । वह चाहे पिछली हरीश सरकार रही हो या फिर मौजूदा त्रिवेंद्र सरकार । सरकार की मंशा सही होती जो जनता के लिए जनता द्वारा चुनी गयी सरकारें शराब फैक्ट्री लगाने जैसा निर्णय बिना जनसहभागिता के नहीं लेतीं । सरकारों की मंशा में तो पहले ही दिन से खोट था । जरा खेल को समझिये, आखिर सरकार यह कैसे भूल गयी कि प्रदेश में शराब फैक्ट्री लगाना और देवप्रयाग में शराब फैक्ट्री लगाना दोनो में बड़ा फर्क है ? देवप्रयाग का नाम शराब से जुड़ने का किसे फायदा होगा और किसे नुकसान है सरकारों को क्या वाकई इसका अंदाजा तक नहीं था ?

सरकार चाहती तो कम से कम आस्था के आधार पर उठने वाले विरोध को रोक सकती थी । देवप्रयाग के नाम पर असहज स्थिति से बच सकती थी । प्लांट के मालिक को आस्था से जुड़े इस मुद्दे पर एतिहात बरतने की हिदायत दे सकती थी । मगर नहीं सरकार ने ऐसा करना उचित ही नहीं समझा क्योंकि नीतियां तय सरकार नहीं सरकार से लाभ लेने वाले तय करते हैं । इसलिए सरकार की नजर में शराब आज अच्छी है । ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि शराब और शराब फैक्ट्रियां अच्छी बात है तो सरकार स्थानीय स्तर पर परंपरागत तौर पर स्थानीय उत्पादों से बनायी जाने वाली शराब को मान्यता क्यों नहीं देती ? क्या सिर्फ इसलिए की उससे ‘सरकारों’ के हित नहीं सधते ।

पहाड़ पर शराब प्लांट का समर्थन किसी लिहाज से ठीक नहीं है, लेकिन देवप्रयाग के डडुआ में लग चुके प्लांट का विरोध भी अब कहीं से जायज नहीं है । विरोध तब तो जायज था जब सरकार ने इस प्लांट के लिए जमीन खरीदने की इजाजत दी । विरोध तब समझ में आता जब स्थानीय लोगों ने शराब प्लांट के लिए जमीन देने से साफ इंकार किया होता । विरोध तब भी जायज था जब सरकार ने प्लांट तैयार करने और शराब बनाने के लाइसेंस जारी किये । मगर आज इस विरोध के इसलिए कोई मायने नहीं है क्योंकि करोड़ों खर्च करने के बाद इस प्लांट से अब उत्पादन शुरू हो चुका है । तीन साल से इस प्लांट पर काम चल रहा है । इस बीच जमीन खरीदे जाने से लेकर प्लांट लगने तक के बीच तमाम प्रक्रियाओं से गुजरा होगा, ऐसे में कोई यह कहे कि किसी को पता ही नहीं चला कि यहां शराब प्लांट लगने जा रहा है यह बात आसानी से गले से नहीं उतरती ।

सनद रहे कि देवप्रयाग के डडुआ में कोई पहला शराब प्लांट नहीं है, प्रदेश में शराब प्लांटों का आंकड़ा दहाई में पहुंचने जा रहा है । सच यह है कि नुकसान तो हो चुका है, शराब और भांग को सरकारों ने इस प्रदेश की नियति बना दिया है । बस यहीं से उत्तराखंड के संदर्भ में प्रासंगिक होती है लियो टॉलस्टॉय की यह कहानी…..

देवप्रयाग के डडुआ में प्लांट का समर्थन और विरोध करने वाले दोनो को ही इस कहानी को जरूर पढ़ना चाहिए और सोचना चाहिए कि वह कहां खड़े हैं…… 

अमीरी का नशा / शैतान और किसान की रोटी

एक गरीब किसान बड़े सवेरे अपने हल के साथ खेत पर पहुँचा। नाश्ते के लिए उसके पास रोटी थी। उसने अपने हल को ठीक किया। अपने कोट को उतारकर उसी में रोटी को लपेटकर पास की झाड़ी की ओट में रख दिया और अपने कार्य में जुट गया।

कुछ समय पश्चात जब उसके बैल थक गये और उसे भूख भी लगी तो उसने हल चलाना बन्द कर दिया। उसने बैलों को खोल दिया और अपने कोट में रखी रोटी लाने के लिए झाड़ी की ओर बढ़ा। किसान ने कोट उठाया, लेकिन वहाँ रोटी न थी। उसने इधर-उधर देखा, कोट को झाड़ा, लेकिन रोटी नदारद। किसान समझ न सका कि मामला क्या है?

उसने सोचा-ताज्जुब है, मैंने किसी को इधर आते-जाते नहीं देखा, क्या यहाँ कोई पहले से बैठा था, जो मेरी रोटी ले गया?

वहाँ एक शैतान था, जिसने रोटी उस समय चुरा ली थी जबकि किसान हल जोत रहा था। जब किसान झाड़ी के पास आया, उस समय भी वह झाड़ी के पीछे था। वह इस इन्तजार में था कि किसान प्रेतों के राजा को कुछ गालियाँ दे।

किसान अपनी रोटी खोकर दुखी था। उसने सोचा-इस तरह काम नहीं चलेगा। मुझे भूखों नहीं मरना है। इसमें कोई शक नहीं कि जो कोई भी रोटी ले गया होगा, उसको मुझसे ज्यादा जरूरत रही होगी। भगवान उसका भला करे।

वह कुएँ पर गया। पानी पीकर अपनी भूख मिटायी और थोड़ी देर तक आराम किया। फिर अपने बैलों को लेकर खेत जोतने लगा।

शैतान बहुत दुखी हुआ। उसे दुख इस बात का था कि वह किसान से गलत काम कराने में सफलता न पा सका। उसने अपने मालिक प्रेतों के राजा के पास जाकर आज की घटना की सूचना देने का निश्चय किया। वह प्रेतों के राजा के पास पहुँचा, उसे बताया कि किस प्रकार उसने किसान की रोटी ली और किसान ने गालियाँ देने के बजाय ये शब्द कहे-भगवान उसका भला करे।

इस बात को सुनकर प्रेतों का राजा बहुत क्रुद्ध हुआ। उसने कहा-यदि मनुष्य ने तुम्हारे साथ भलाई की है तो इसमें तुम्हारी गलती है। तुम्हें अपने कार्य का ज्ञान नहीं है। यदि किसान और किसान की स्त्री इसी प्रकार के नेक कार्य करते रहे तो हम घाटे में पड़ जाएँगे। तुम वापस जाओ और अपनी गलतियों को सुधारो। यदि तीन साल के अन्दर तुम अपने कार्य में सफल न हुए तो मैं तुम्हें पवित्र जल में फेंक दूँगा।

शैतान डर गया। वह तुरन्त धरती पर वापस आया। वह सोचने लगा कि किस प्रकार वह अपना काम बनाए। सोचते-सोचते उसे एक उपाय सूझा। उसने एक मजदूर का रूप बनाया और गरीब किसान के साथ काम करने लगा। पहले साल उसने किसान को सलाह दी कि अनाज निचली सतह की जमीन में बोओ। किसान ने उसकी सलाह मान ली। उस साल सूखा पड़ गया। अन्य किसानों की फसलें सूखा पड़ने के कारण नष्ट हो गयीं, लेकिन इस किसान की फसल बहुत अच्छी हुई। उसके पास इतना अनाज हो गया कि साल भर खाने के बाद भी काफी अनाज बच रहा।

शैतान ने सोचा कि फिर गलती हो गयी। अतः अगले साल उसने किसान को सलाह दी कि वह ऊँचे स्थान पर फसल बोये। उस साल अधिक वर्षा के कारण अन्य किसानों की फसल बरबाद हो गयी, लेकिन किसान की फसल लहलहाती रही। उसके पास इतना अनाज हो गया कि वह समझ नहीं पा रहा था कि उसका क्या करे?

तब शैतान ने उसे अनाज से शराब बनाने की सलाह दी। किसान ने शराब बनायी। वह स्वयं पीने लगा और अपने दोस्तों को भी पिलाने लगा।

इतना सब करने के पश्चात शैतान प्रेतों के राजा के पास गया। उसने अपनी सफलता की कहानी उसे सुनायी। प्रेतों के राजा ने कहा-मैं स्वयं चलकर देखूँगा कि तुमको कितनी सफलता मिली है?

वह किसान के घर आया। उसने देखा कि किसान ने अपने अमीर दोस्तों को दावत दी है और उन्हें शराब पिला रहा है। किसान की स्त्री उसके दोस्तों को शराब दे रही है। इसी बीच किसान की स्त्री के हाथ से एक गिलास छूट गया और शराब फर्श पर फैल गयी।

किसान ने गुस्से से अपनी पत्नी की ओर देखा और बोला, ‘‘तुम क्या कर रही हो? बेवकूफ स्त्री? क्या तुम सोचती हो कि यह शराब मामूली पानी है, जिससे फर्श धोया जाए?’’

शैतान ने प्रेतों के राजा की ओर देखा और बोला, ‘‘देखिए, यह वही व्यक्ति है, जिसे किसी समय अपनी रोटी खो जाने का जरा भी गम न था और आज अपनी प्यारी बीवी को डाँट रहा है।’’

किसान अब भी गुस्से में था। वह स्वयं अपने मेहमानों को शराब देने लगा, उसी समय एक गरीब किसान, जिसे कि निमन्त्रण नहीं मिला था, काम पर से लौटते समय वहाँ आया। उसने देखा कि लोग शराब पी रहे हैं। वह दिन भर के परिश्रम से बहुत थका हुआ था। उसे भूख लगी थी। अतः वह भी वहीं बैठ गया। उसे बहुत जोर से प्यास लग रही थी, लेकिन किसान ने उसे पूछा भी नहीं। केवल इतना ही बोला कि यहाँ कोई खैरातखाना नहीं खुला है कि जो भी आ जाए उसे मैं खिलाता-पिलाता रहूँ।

प्रेतों का राजा इससे बहुत प्रसन्न हुआ। शैतान खुशी से उछल पड़ा और बोला, ‘‘रुकिए, अभी आगे देखिए, क्या-क्या होता है।’’

किसान ने अपने अमीर दोस्तों के साथ खूब शराब पी। वे एक-दूसरे की चापलूसी में झूठ-मूठ की तारीफें करने लगे। प्रेतों का राजा किसान और किसान के मित्रों की बातें सुन-सुनकर आनन्दित होता रहा। उसने शैतान की खूब तारीफ़ की और कहा, ‘‘शराब ने इन किसानों को लोमड़ी की तरह बना दिया है। वे एक-दूसरे की चापलूसी करके एक-दूसरे को बेवकूफ बना रहे हैं। शीघ्र ये हमारे हाथों में होंगे।’’

‘‘आगे क्या होता है, इसका इन्तजार कीजिए’’-शैतान बोला, ‘‘उन्हें एक गिलास और तो पीने दीजिए। अभी तो वे लोमड़ी की तरह व्यवहार कर रहे हैं। एक-दूसरे की तारीफ कर रहे हैं। शीघ्र ही आप उन्हें खूँखार भेड़िए की तरह लड़ते देखेंगे।’’

किसान और किसान के दोस्तों ने शराब का दूसरा गिलास पिया। उनकी हरकतों में जंगलीपन आने लगा था। मधुर बातों के स्थान पर अब वे गुस्से में बोल रहे थे। एक-दूसरे को गालियाँ देने लगे। शीघ्र ही वे लड़ने लगे। इस मारपीट में किसान को खूब पीटा गया।

प्रेतों का राजा बड़ी प्रसन्नता के साथ यह सब कुछ देख रहा था। वह बोला, ‘‘यह बहुत अच्छी बात हुई।’’

शैतान बोला, ‘‘रुकिए, अभी और देखिए। इसको तीसरा गिलास तो पीने दीजिए। अभी तो ये भेड़ियों की तरह लड़ रहे हैं, एक गिलास और पीते ही ये सूअरों का-सा व्यवहार करने लगेंगे।’’

किसान और किसान के दोस्तों ने शराब का तीसरा गिलास पिया। वे अब जंगली जानवरों का-सा व्यवहार करने लगे। वे भयानक आवाजें करने लगे। वे स्वयं नहीं समझ पा रहे थे कि वे क्यों इस प्रकार शोर मचा रहे हैं।

धीरे-धीरे मेहमान जाने लगे। किसान उन्हें बाहर पहुँचाने लगा। जब वह मेहमानों को पहुँचाकर जाने लगा तो एक गढ़े में गिर पड़ा। वह नीचे से ऊपर तक कीचड़ में सन गया। गिरते ही वह सूअर की तरह चिल्लाने लगा।

प्रेतों का राजा इससे बहुत प्रसन्न हुआ। उसने कहा, ‘‘तुमने आदमी को गिराने के लिए शराब जैसी चीज का आविष्कार कर, अपनी पिछली भूल को अच्छी तरह सुधार लिया है। लेकिन मुझे बताओ यह शराब तुमने किस प्रकार तैयार करायी है?’’

शैतान ने कहा, ‘‘मैंने केवल इतना ही किया है कि किसान के पास जरूरत से ज्यादा अनाज हो गया। जानवरों का खून मनुष्य में हमेशा ही रहता है। लेकिन मनुष्य के पास जब आवश्यकता भर को ही अनाज होता है तो वह शान्ति से रहता है। उस समय किसान को एक रोटी खो जाने पर कष्ट नहीं हुआ था। लेकिन जब उसके पास आवश्यकता से अधिक अनाज हो गया तो वह उससे आनन्द की खोज करने लगा। और मैंने उसे गुमराह करके आनन्द का रास्ता दिखाया-वह था शराब का सेवन। और जब वह अपने आनन्द के लिए ईश्वर की दी हुई तमाम बरकतों को शराब में उड़ाने लगा तब लोमड़ी, भेड़िये और सूअरों का स्वभाव उसके अन्दर से आप से आप प्रकट हो गया। यदि वह ऐसे ही पीता रहा तो वह हमेशा के लिए जंगली जानवर बन जाएगा।’’

प्रेतों के राजा ने शैतान की खूब तारीफ की। उसकी पहले की भूल माफ कर दी और उसे शैतानों का मुखिया बना दिया।

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