कोराना वायरस की नुकीली प्रोटीन और मानव कोशिकाओं के फ्युरिन एंजाइम का रिश्ता ही है घातक

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फेंफड़ों,लीवर,गुर्दे ओर आंतो की कोशिकाओं में होता है फ्युरीन एंजाइम

राजेन्द्र सिंह जादौन

कोरोना वायरस की इस विश्वव्यापी महामारी के दौर में फिर एक बार यह सवाल पैदा हुआ कि यह बीमारी कॉविड 19फैलाने वाला वायरस सार्स कोव2 किन मायनों में सार्स कोव 1 से भिन्न है ओर क्यों यह पिछली वायरसों को काबू में करने वाली दवाओं से नियंत्रित नहीं किया जा सका है। वैज्ञानिकों ने इसका कारण खोज लिया है लेकिन इस कारण का समाधान खोजना अभी बाकी है। कारण का समाधान मिलते ही सार्स कोब 2 का खेल ही खतम हो जाएगा। असल में सार्स कोव2 अपने में ऐसी नुकीली प्रोटीन की संरचना लिए है जो कि मानव शरीर की कोशिकाओं की झिल्ली से चिपक जाती है ओर इसे चिपकाने का काम कोशिकाओं मै मौजूद एंजाइम फ्यूरिन करता है। अगर फ्युरिन न हो तो सार्स कोव 2घातक परिणाम नहीं दे सकता। इसलिए वैज्ञानिक ऐसा मोलेक्युल खोजना चाहते है जो कि फ्यूरिन के कारण वायरस को कोशिका में मिलने वाले प्रवेश को रोका जा सके। मतलब यह प्रक्रिया रोक दी जाए। अगर यह प्रक्रिया रोकने वाला एजेंट खोज लिया जाता है तो वायरस का खेल खतम हो जाएगा। दुनिया भर के वैज्ञानिक इस दिशा में काम कर रहे है। करीब 39देशों में शोध चल रहे है।
भारत की ही एक कम्पनी नाक में लगा कर वायरस का शरीर में प्रवेश रोकने वाली वैक्सीन केशोध से जुड़ी हुई है।लेकिन इस वैक्सीन के बाजार में आने में कम से कम छह माह तो लगेंगे। वैज्ञानिक बताते है कि किसी वैक्सीन के अपने पूरे परीक्षणों से गुजरने के बाद बाजार में आने में दस साल तक लग जाते है। लेकिन सार्स कोव 2 की वैक्सीन को अगले डेढ़ साल में बाजार में लाने मै प्रयास किए जा रहे है। अभी तक वैक्सीन का जानवरो पर परीक्षण किया गया है। इसके बाद मानव पर दो या तीन परीक्षण होंगे। इन परीक्षणों में समय लगता है। पिछले अनुभव यह भी रहे है कि जब जरूरी परीक्षण पूरे किए बिना वैक्सीन बाजार में भेज दी गई तो नुकसान सामने आए। मानव पर परीक्षणों के बाद वैक्सीन को अलग अलग देशों की नियामक संस्थाओं से उपयोग की अनुमति की जरूरत होती है। लेकिन यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अनुमति दे दो तो फिर अलग अलग देशों में नियामक संस्थाओं में अनुमति की जरूरत नही होती।
सार्स कोव 2 का जो कोशिकाओं की झिल्ली से चिपकने ओर एंजाइम फ्युरिन के जरिए अंदर प्रवेश करने की प्रक्रिया के कारण मानव के फेफड़े,लीवर,आत,गुर्दे ओर मस्तिष्क प्रभावित होते है। मस्तिष्क प्रभावित होने का कारण केंद्रीय तंत्रिका तंत्र का प्रभावित होना है। इन अंगों की कोशिकाएं फ्युरिन एंजाइम बनाती है। इस एंजाइम की मदद से यह वायरस इन अंगों को ही नुकसान पहुंचता है। इसीलिए इस वायरस के संक्रमण में अलग अलग लक्षण पाएं गए है। किसी को दस्त ओर किसी को मस्तिष्क की बीमारी मेनिनजाइटिस के लक्षण पाए गए है। केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के प्रभावित होने के कारण ही मेनिनजाइटिस होती है। सोशल मीडिया में इस वायरस को महज सामान्य फ्लू बताने का गुमराह करने वाला प्रचार भी किया गया। यह सोशल मीडिया का दुरुपयोग ही कहा जाएगा। हुआ तो यहां तक कि बड़े बड़े देशों के शा शासनाध्यक्ष भी इस वायरस के घातक प्रभाव को नहीं समझ रहे थे।
सार्स कोव2के इलाज में हाइड्रोकसी क्लोरोक्विन बहुत प्रभावी रही है। एक अध्ययन मै जो की एक हजार से ज्यादा लोगो पर किया गया था यह पाया गया कि ज्यादातर मरीज स्वस्थ हुए। दवा देने के बावजूद सिर्फ वृद्ध लोगो मै ही मृत्यु दर दशमलव पांच फीसदी रही। इस दवा को लेकर ब्राजील का एक अनुभव साझा किया गया था कि हाइड्रॉक्सि क्लोरोक्विन के डोज से मरीज के ह्रदय की धड़कन तेज हो गई ओर हृदय का दौरा पड़ गया। लेकिन बाद के शोध में यह पाया गया कि हृदय की धड़कन बढ़ने या दौरा पड़ने के कोई लक्षण पैदा नहीं हुए।