‘मछेरा जाल लपेटने ही वाला है’
अरुण कुकसाल
‘जब सभ्यता बहुत सभ्य हो जाती है तो वह अपनी प्राचीनता को हीन समझ कर उससे पीछा छुड़ाना चाहती है। हम बातें तो हमेशा लोक की करते हैं, पर व्यक्तिगत जीवन अभिजात्य वर्ग जैसा जीना चाहते हैं। गढ़वाली और कुमाऊंनी समाज में यह प्रवृत्ति ज्यादा ही असरकारी हुई है, जिस कारण उनमें लोक का तत्व खोता जा रहा है, इतना कि अब ‘मछेरा जाल लपेटने ही वाला है’। डाॅ. गोविंद चातक
‘जब सभ्यता बहुत सभ्य हो जाती है तो वह अपनी प्राचीनता को हीन समझ कर उससे पीछा छुड़ाना चाहती है। हम बातें तो हमेशा लोक की करते हैं, पर व्यक्तिगत जीवन अभिजात्य वर्ग जैसा जीना चाहते हैं। गढ़वाली और कुमाऊंनी समाज में यह प्रवृत्ति ज्यादा ही असरकारी हुई है, जिस कारण उनमें लोक का तत्व खोता जा रहा है, इतना कि अब ‘मछेरा जाल लपेटने ही वाला है’। डाॅ. गोविंद चातक