आकांक्षा की आकांक्षा है कि उत्तराखंड की राजधानी बने गैरसैंण

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  • जब एक छोटी बच्ची ने प्रधानमंत्री से साझा की उत्तराखंड की व्यथा 
  • प्लीज पीएम अंकल गैरसैंण को राजधानी बना दो ..
  • कक्षा सात की छात्रा ने प्रधानमंत्री को लिखी चिट्ठी 
-बालिका ने कहा- पहाड़ बचाना है और बेटियों को पढ़ाना है तो गैरसैंण राजधानी बना दो, प्लीज 

रुद्रप्रयाग। समाज के कथित ठेकेदार जब अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ने लगे तो किसी न किसी को तो आगे आना ही पड़ता है। उत्तराखंड की पीड़ा प्रदेश के नेताओं को को तो कभी महसूस नहीं हुई लेकिअं पहाड़ की एक बेटी ने जब पहाड़ की पीड़ा को अपने शब्दों में एक पत्र के रूप शब्दों से उकेरा तो हर किसी को यह सोचने को विवश होना पड़ा कि हाँ इसका संमाधान तो ”गैरसैंण” ही है, इस मुद्दे को लेकर उत्तराखंड के नेता पिछले 17 सालों से कबड्ड़ी -कबड्ड़ी खेल रहे हैं लेकिन इस मुद्दे को कोई भी पार्टी हलकर सूबे के शहीद आंदोलनकारियों और जनाकांक्षाओं को पूरा करने का साहस नहीं दिखा पा रही हैं।

 उत्तराखंड में कक्षा सात में पढ़ने वाली एक बालिका ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी भेजकर पहाड़ की ज्वलंत समस्याओं को उकेरने के साथ गैरसैंण राजधानी बनाने की विनती की है। चिट्ठी में बालिका ने शिक्षा, सड़क, स्वास्थ्य, प्राकृतिक आपदा, जंगली जानवरों के आतंक जैसी गम्भीर सवालों को उठाया है। 

नालंदा पब्लिक स्कूल, रुद्रप्रयाग में कक्षा सात में पढ़ रही 13 वर्षीय आकांक्षा नेगी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजी चिट्ठी में लिखा है कि नमस्ते। मैं पहाड़ के एक छोटे से नगर रुद्रप्रयाग में रहती हूं। पहले अपने गांव राजकीय प्राथमिक विद्यालय कनकचैरी (पोखठा) में पढ़ती थी, लेकिन वहां न तो छात्र थे और न ही अध्यापक। मेरी छोटी बहन कक्षा तीन में पढ़ती है जबकि भाई दूसरी कक्षा में है। गांव में पढ़ने की अच्छी सुविधा नहीं थी। स्कूल भी दूर था तो मेरे पिता मुझे, मेरी बहन व भाई को लेकर रुद्रप्रयाग आ गये। अब मैं एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ रही हूं। मैं बड़ी होकर जज बनना चाहती हूं। चिट्टी में लिखा गया है कि आपने बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा दिया है, लेकिन जब मैं अपनी सहेली तनुजा के बारे में सोचती हूं तो दुख होता है। वो पढ़ने में होशियार है, लेकिन जिस सरकारी स्कूल में पढ़ती है तो वह गांव से बहुत दूर है। हाई स्कूल तो और भी दूर है। गांव के कई बच्चों को नदी पार करनी होती है। जब केदारनाथ आपदा आई थी तो झूला पुल बह गये थे। वो पुल अब भी नहीं बने हैं। गांव के बच्चे नदी पार करते समय ट्राली को भी हाथों से खींचते हैं। ट्राली खींचते समय कई बच्चों की उंगलियां कट जाती हैं।

प्रधानमंत्री जी, मैं आपको यह भी बताना चाहती हूं कि गांवों के अधिकांश स्कूलों में न तो अध्यापक हैं और न ही अन्य सुविधाएं। कई स्कूलों में तो शौचालय और पीने का पानी भी नहीं है, जिससे हम लड़कियों को ज्यादा समस्या होती है। मिडिल के बाद हाई स्कूल और इंटर कालेज बहुत दूर हैं। ऐसे में गांव की लड़कियों को पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ जाती है क्योंकि माता-पिता अपनी बेटियों को गांव से अधिक दूर पढ़ने के लिए नहीं भेजते हैं। ऐसे में बेटियां कैसे पढ़ेंगी। हमारे पहाड़ का जीवन बहुत कठिन होता है सर, यहां कई समस्याएं हैं, सड़क, स्वास्थ्य, जंगली जानवर का भय और उससे भी अधिक भूस्खलन, भूकंप और बाढ़ का भय।

मेरी मां को आज भी घास-लकड़ी लेने जंगल जाना होता है और वहां हमेशा गुलदार या भालू का भय होता है। मोदी सर, आपने श्रीनगर गढ़वाल में पिछले साल भाषण में गढ़वाली में दो शब्द कहे तो मुझे बहुत अच्छा लगा था। मेरे पिता कहते हैं कि यदि राजधानी गैरसैंण होती तो गांव में ये समस्याएं नहीं होती। नेता और अधिकारी पहाड़ में हमारी तरह रहते तो हमारा दर्द समझ पाते। यदि राजधानी गैरसैंण होती तो लोग पहाड़ छोड़कर मैदानों की ओर नहीं जाते। मेरे पिता कहते हैं कि उन्हें और बड़े लोगों को देहरादून आने-जाने में भी परायेपन का अहसास होता है। यदि गैरसैंण स्थायी राजधानी होती तो पहाड़ के लोगों को अधिक सुविधा होती, अपनेपन का अहसास होता। मोदी जी, आपने कहा था कि पहाड़ की जवानी और पहाड़ का पानी पहाड़ों के काम ही आएगा। ऐसा कब होगा? अधिक कुछ नहीं कहती हूं। आपसे विनती है कि यदि आप सच्चे दिल से चाहते हैं कि बेटियां बचाओ-बेटियां पढ़ाओ, तो मेरा कहना है कि आप हमारे पहाड़ को बचा लो, यदि पहाड़  बचाना है और यहां की बेटियों को पढ़ाना है तो यहां हम लोगों को मूलभूत सुविधाएं चाहिए। आपसे विनती है प्लीज, गैरसैंण राजधानी बना दो। प्लीज, प्लीज।