इसीलिये तो और नेताओं से हटकर हैं बलूनी

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  • बलूनी के कायल हुये सूबे के बेरोजगार
  • बलूनी में नज़र आती है हनक के साथ कार्य क्षमता 
देवभूमि मीडिया ब्यूरो 
देहरादून : भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख और राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी की प्रशासनिक समझ और नेतृत्व क्षमता राज्य के नौजवानों की उम्मीद बनकर आई है। बलूनी ने अपनी युक्ति और सूझबूझ से न्यायपालिका की गरिमा, वनों के संरक्षण और कोर्ट के फैसले से बेरोजगार हुए नौजवानों को पुनः उम्मीद देकर अपने प्रभाव और क्षमता का लोहा मनवाया है।
उत्तराखंड प्रदेश अधिकतर वनों और संरक्षित पार्कों से आच्छादित है। स्वाभाविक रूप से अपनी हरियाली और नैसर्गिकता से पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है। स्थानीय जनता और युवाओं ने नदियों, पहाड़ों और इन अभ्यारण्यों से जुड़े कार्यों को अपनी रोजी-रोटी बनाया है।
इन गतिविधियों पर हाल ही में अचानक कोर्ट का डंडा चल जाने से हजारों नौजवानों की रोजी-रोटी पर संकट खड़ा हो गया। हाई कोर्ट ने नदियों और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए अनेक स्थानों में मानव गतिविधियों पर पिछले दिनों प्रतिबंध लगा दिया था, इस निर्णय से सर्वाधिक प्रभावित कॉर्बेट पार्क से जुड़े व्यापारी और कामगार हुए हैं। कोर्ट ने पर्यटकों की सर्वाधिक मांग वाले ढिकाला जोन को आवाजाही हेतु बंद करने के आदेश दे दिए थे। साथ ही कॉर्बेट के पांच छह गेट, जहां से सफारी जिप्सियों की पार्क में सैलानियों के आवागमन हेतु आवाजाही होती थी, उनकी संख्या भी कम करने के आदेश दे दिए थे।
स्थानीय व्यापारियों ने अपने स्तर से सभी प्रयास किए और उन्हें एक ही सलाह मिली कि वह सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटायें। बेरोजगार हुए नौजवानों ने स्थानीय विधायक दीवान सिंह बिष्ट के नेतृत्व में हर जिम्मेदार चौखट पर गुहार लगाई और उन्हें निराशा ही हाथ लगी। विधायक के नेतृत्व में बेरोजगार अपर मुख्य सचिव रणवीर सिंह से भी मिले और उन्हें पूर्ववत सुप्रीम कोर्ट जाने का टका सा जवाब मिला। हारकर सभी व्यवसाई राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी के पास गए। बलूनी की वन पर्यावरण में रुचि रही है बाघों के विषय में उनको विशेषज्ञ माना जाता है। पूर्व में हुए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण अभिकरण (एनटीसीए) के सदस्य भी रह चुके हैं। बलूनी पूर्व में राज्य सरकार में वन पर्यावरण सलाहकार रहते हुए वन तस्करों के खिलाफ प्रत्यक्ष अभियान चलाने के कारण चर्चित रहे हैं।
इस विषय पर बलूनी ने कार्बेट के निदेशक राहुल को बुलाकर पूरी जानकारी ली, फिर एनटीसीए के अधिकारियों से कहा कि उनकी गाइडलाइन क्या है ताकि बेरोजगारों को राहत मिल सके। यही नहीं, बलूनी ने सरकार के महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर से नाराजगी व्यक्त की कि कहीं न कहीं कमजोर पैरवी के कारण अनेक लोगों को अपने रोजगार से हाथ धोने की नौबत आई है। प्रशासनिक संवेदनहीनता से आहत बलूनी ने अनेक अधिकारियों को कोर्ट में हो रही सरकार की फजीहत के लिये खरीखोटी भी सुनाई।
तराई वन प्रभाग के कंजरवेटर पराग मधुकर धकाते और कॉर्बेट के निदेशक राहुल को बुलाकर कहा कि वह सरकार के महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर और भारत सरकार के अधिवक्ता राकेश थपलियाल को पूरी तरह ब्रीफ कर इस विषय की जानकारी दें। 
बलूनी ने कहा कि जनता और जंगल के हितों के बीच का रास्ता निकाला जाए। आज नतीजा सबके सामने हैं। प्रभावी पैरवी और माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष व्यवहारिक विषय आने पर न्यायालय ने अपना पूर्व का फैसला वापस ले लिया है और कॉर्बेट के गेटों से जिप्सियों की संख्या अब पूर्ववत रहेगी। साथ ही ढिकाला जोन को पुनः खोलने के विचार हेतु कोर्ट ने भारत सरकार से शपथ पत्र मांगा है।
शासन-सत्ता और न्यायालय के ऐसे सवालों पर जहां जनप्रतिनिधि और ब्यूरोक्रेट या तो चक्करघिन्नी बन जाते हैं या विषय को ही नहीं समझ पाते। वहीं बलूनी ने अपने कौशल और गहरी समझ से जनहित में ऐसा तोड़ निकाला कि बेरोजगार युवाओं के चेहरे पर मुस्कान उन्हें लौट आई है। राज्य की सुस्त और नौकरशाही जरूर इस विषय पर शर्मिंदा होकर आत्ममंथन कर रही होगी।
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