नहीं रहे हिमालय की छटाओं को कैमरे में कैद करने वाले स्वामी सुंदरानंद

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तपोवन कुटिया के पास बनायी जाएगी स्वामी सुंदरानंद की समाधि

देवभूमि मीडिया ब्यूरो

उत्तरकाशी। हिमालय के फोटोग्राफर के नाम से जाने जाने वाले स्वामी सुंदरानंद का बीती रात स्वर्गवास हो गया। गंगोत्री के प्रमुख संतों में शुमार स्वामी सुन्दरानंद ने 95 वर्ष की आयु बुधवार रात अपना नश्वर शरीर छोड़ दिया। गुरुवार को उनका शरीर गंगोत्री ले जाया जाएगा जहां उनकी तपोवन कुटिया के पास ही समाधि बनायी जाएगी।

उत्तरकाशी। हिमालय के फोटोग्राफर के नाम से जाने जाने वाले स्वामी सुंदरानंद का बीती रात स्वर्गवास हो गया। गंगोत्री के प्रमुख संतों में शुमार स्वामी सुन्दरानंद ने 95 वर्ष की आयु बुधवार रात अपना नश्वर शरीर छोड़ दिया। गुरुवार को उनका शरीर गंगोत्री ले जाया जाएगा जहां उनकी तपोवन कुटिया के पास ही समाधि बनायी जाएगी। हिमालय के फोटोग्राफर के नाम से जाने जाने वाले स्वामी सुंदरानंद का बीती रात स्वर्गवास हो गया। गंगोत्री के प्रमुख संतों में शुमार स्वामी सुन्दरानंद ने 95 वर्ष की आयु बुधवार रात अपना नश्वर शरीर छोड़ दिया। गुरुवार को उनका शरीर गंगोत्री ले जाया जाएगा जहां उनकी तपोवन कुटिया के पास ही समाधि बनायी जाएगी।हिमालय के फोटोग्राफर के नाम से जाने जाने वाले स्वामी सुंदरानंद का बीती रात स्वर्गवास हो गया। गंगोत्री के प्रमुख संतों में शुमार स्वामी सुन्दरानंद ने 95 वर्ष की आयु बुधवार रात अपना नश्वर शरीर छोड़ दिया। गुरुवार को उनका शरीर गंगोत्री ले जाया जाएगा जहां उनकी तपोवन कुटिया के पास ही समाधि बनायी जाएगी। हिमालय के फोटोग्राफर के नाम से जाने जाने वाले स्वामी सुंदरानंद का बीती रात स्वर्गवास हो गया। गंगोत्री के प्रमुख संतों में शुमार स्वामी सुन्दरानंद ने 95 वर्ष की आयु बुधवार रात अपना नश्वर शरीर छोड़ दिया। गुरुवार को उनका शरीर गंगोत्री ले जाया जाएगा जहां उनकी तपोवन कुटिया के पास ही समाधि बनायी जाएगी।

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स्वामी सुन्दरानंद को बीते अक्टूबर माह में कोरोना संक्रमण भी हुआ था। जिससे स्वस्थ होकर अस्पताल से वह अपने परिचित डॉक्टर अशोक लुथरा के घर चले गए थे और वहीं रह रहे थे। बीती रात भोजन करने के बाद कुछ देर तक उन्होंने बातचीत की और फिर अपना शरीर छोड़ दिया।

आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले में 1926 में जन्मे स्वामी सुंदरानंद को हिमालय और पहाड़ों के प्रति बचपन से ही आकर्षण था। प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद 1947 में वह पहले उत्तरकाशी और यहां से गोमुख होते हुए आठ किलोमीटर दूर तपोवन जा पहुंचे। कुछ समय तपोवन बाबा के सानिध्य में रहने के बाद उन्होंने वहां संन्यास ले लिया।

वर्ष 1955 में 19,510 फुट की ऊंचाई पर कालिंदी खाल से गुजरने वाले गोमुख-बदरीनाथ पैदल मार्ग से स्वामी सुंदरानंद अपने साथियों के साथ बदरीनाथ की यात्रा पर थे। अचानक बर्फीला तूफान आ गया और अपने सात साथियों के साथ वे किसी तरह बच गया। गंगोत्री हिमालय के हर दर्रे से परिचित स्वामी सुंदरानंद वर्ष 1962 में चीनी आक्रमण के दौरान भारतीय सेना की बार्डर स्काउट के पथ-प्रदर्शक रह चुके हैं। सुंदरानंद ने देवभूमि मीडिया को एक साक्षात्कार में बताया था कि वे भारत-चीन युद्ध के दौरान उन्होंने एक माह तक कालिंदी, पुलमसिंधु, थागला, नीलापाणी, झेलूखाका बॉर्डर एरिया में सेना का मार्गदर्शन किया। इसी दौरान उन्हें हिमालय के विभिन्न रूपों को कैमरे में उतारने की सूझी और उन्होंने सबसे पहले 25 रुपये में एक कैमरा खरीदा और हिमालय की विभिन्न छटाओं की फोटोग्राफी शुरू की।

वर्ष 1955 में 19,510 फुट की ऊंचाई पर कालिंदी खाल से गुजरने वाले गोमुख-बदरीनाथ पैदल मार्ग से स्वामी सुंदरानंद अपने साथियों के साथ बदरीनाथ की यात्रा पर थे। अचानक बर्फीला तूफान आ गया और अपने सात साथियों के साथ वे किसी तरह बच गया। गंगोत्री हिमालय के हर दर्रे से परिचित स्वामी सुंदरानंद वर्ष 1962 में चीनी आक्रमण के दौरान भारतीय सेना की बार्डर स्काउट के पथ-प्रदर्शक रह चुके हैं। सुंदरानंद ने देवभूमि मीडिया को एक साक्षात्कार में बताया था कि वे भारत-चीन युद्ध के दौरान उन्होंने एक माह तक कालिंदी, पुलमसिंधु, थागला, नीलापाणी, झेलूखाका बॉर्डर एरिया में सेना का मार्गदर्शन किया। इसी दौरान उन्हें हिमालय के विभिन्न रूपों को कैमरे में उतारने की सूझी और उन्होंने सबसे पहले 25 रुपये में एक कैमरा खरीदा और हिमालय की विभिन्न छटाओं की फोटोग्राफी शुरू की।वर्ष 1955 में 19,510 फुट की ऊंचाई पर कालिंदी खाल से गुजरने वाले गोमुख-बदरीनाथ पैदल मार्ग से स्वामी सुंदरानंद अपने साथियों के साथ बदरीनाथ की यात्रा पर थे। अचानक बर्फीला तूफान आ गया और अपने सात साथियों के साथ वे किसी तरह बच गया। गंगोत्री हिमालय के हर दर्रे से परिचित स्वामी सुंदरानंद वर्ष 1962 में चीनी आक्रमण के दौरान भारतीय सेना की बार्डर स्काउट के पथ-प्रदर्शक रह चुके हैं। सुंदरानंद ने देवभूमि मीडिया को एक साक्षात्कार में बताया था कि वे भारत-चीन युद्ध के दौरान उन्होंने एक माह तक कालिंदी, पुलमसिंधु, थागला, नीलापाणी, झेलूखाका बॉर्डर एरिया में सेना का मार्गदर्शन किया। इसी दौरान उन्हें हिमालय के विभिन्न रूपों को कैमरे में उतारने की सूझी और उन्होंने सबसे पहले 25 रुपये में एक कैमरा खरीदा और हिमालय की विभिन्न छटाओं की फोटोग्राफी शुरू की।वर्ष 1955 में 19,510 फुट की ऊंचाई पर कालिंदी खाल से गुजरने वाले गोमुख-बदरीनाथ पैदल मार्ग से स्वामी सुंदरानंद अपने साथियों के साथ बदरीनाथ की यात्रा पर थे। अचानक बर्फीला तूफान आ गया और अपने सात साथियों के साथ वे किसी तरह बच गया। गंगोत्री हिमालय के हर दर्रे से परिचित स्वामी सुंदरानंद वर्ष 1962 में चीनी आक्रमण के दौरान भारतीय सेना की बार्डर स्काउट के पथ-प्रदर्शक रह चुके हैं। सुंदरानंद ने देवभूमि मीडिया को एक साक्षात्कार में बताया था कि वे भारत-चीन युद्ध के दौरान उन्होंने एक माह तक कालिंदी, पुलमसिंधु, थागला, नीलापाणी, झेलूखाका बॉर्डर एरिया में सेना का मार्गदर्शन किया। इसी दौरान उन्हें हिमालय के विभिन्न रूपों को कैमरे में उतारने की सूझी और उन्होंने सबसे पहले 25 रुपये में एक कैमरा खरीदा और हिमालय की विभिन्न छटाओं की फोटोग्राफी शुरू की।वर्ष 1955 में 19,510 फुट की ऊंचाई पर कालिंदी खाल से गुजरने वाले गोमुख-बदरीनाथ पैदल मार्ग से स्वामी सुंदरानंद अपने साथियों के साथ बदरीनाथ की यात्रा पर थे। अचानक बर्फीला तूफान आ गया और अपने सात साथियों के साथ वे किसी तरह बच गया। गंगोत्री हिमालय के हर दर्रे से परिचित स्वामी सुंदरानंद वर्ष 1962 में चीनी आक्रमण के दौरान भारतीय सेना की बार्डर स्काउट के पथ-प्रदर्शक रह चुके हैं। सुंदरानंद ने देवभूमि मीडिया को एक साक्षात्कार में बताया था कि वे भारत-चीन युद्ध के दौरान उन्होंने एक माह तक कालिंदी, पुलमसिंधु, थागला, नीलापाणी, झेलूखाका बॉर्डर एरिया में सेना का मार्गदर्शन किया। इसी दौरान उन्हें हिमालय के विभिन्न रूपों को कैमरे में उतारने की सूझी और उन्होंने सबसे पहले 25 रुपये में एक कैमरा खरीदा और हिमालय की विभिन्न छटाओं की फोटोग्राफी शुरू की।

उल्लेखनीय है कि अभी कुछ ही समय पूर्व करीब ढाई करोड़ की लागत से एक दशक से बन रही तपोवनम् हिरण्यगर्भ आर्ट गैलरी (हिमालय तीर्थ) को स्वामी सुंदरानंद ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के सुपुर्द किया था। हिमालय में अपने सफर के दौरान उन्होंने करीब ढाई लाख तस्वीरों का संग्रह किया है जो अब इस आर्ट गैलरी की धरोहर बन चुकी है।

उल्लेखनीय है कि अभी कुछ ही समय पूर्व करीब ढाई करोड़ की लागत से एक दशक से बन रही तपोवनम् हिरण्यगर्भ आर्ट गैलरी (हिमालय तीर्थ) को स्वामी सुंदरानंद ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के सुपुर्द किया था। हिमालय में अपने सफर के दौरान उन्होंने करीब ढाई लाख तस्वीरों का संग्रह किया है जो अब इस आर्ट गैलरी की धरोहर बन चुकी है। उल्लेखनीय है कि अभी कुछ ही समय पूर्व करीब ढाई करोड़ की लागत से एक दशक से बन रही तपोवनम् हिरण्यगर्भ आर्ट गैलरी (हिमालय तीर्थ) को स्वामी सुंदरानंद ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के सुपुर्द किया था। हिमालय में अपने सफर के दौरान उन्होंने करीब ढाई लाख तस्वीरों का संग्रह किया है जो अब इस आर्ट गैलरी की धरोहर बन चुकी है। उल्लेखनीय है कि अभी कुछ ही समय पूर्व करीब ढाई करोड़ की लागत से एक दशक से बन रही तपोवनम् हिरण्यगर्भ आर्ट गैलरी (हिमालय तीर्थ) को स्वामी सुंदरानंद ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के सुपुर्द किया था। हिमालय में अपने सफर के दौरान उन्होंने करीब ढाई लाख तस्वीरों का संग्रह किया है जो अब इस आर्ट गैलरी की धरोहर बन चुकी है। उल्लेखनीय है कि अभी कुछ ही समय पूर्व करीब ढाई करोड़ की लागत से एक दशक से बन रही तपोवनम् हिरण्यगर्भ आर्ट गैलरी (हिमालय तीर्थ) को स्वामी सुंदरानंद ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के सुपुर्द किया था। हिमालय में अपने सफर के दौरान उन्होंने करीब ढाई लाख तस्वीरों का संग्रह किया है जो अब इस आर्ट गैलरी की धरोहर बन चुकी है।

वहीं वर्ष 2002 में उन्होंने अपने अनुभवों को एक पुस्तक ‘हिमालय : थ्रू ए लेंस ऑफ ए साधु’ (एक साधु के लैंस से हिमालय दर्शन) में प्रकाशित किया। पुस्तक का विमोचन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था। अब तक इस पुस्तक की साढ़े तीन हजार प्रतियां बिक चुकी हैं।

वहीं वर्ष 2002 में उन्होंने अपने अनुभवों को एक पुस्तक ‘हिमालय : थ्रू ए लेंस ऑफ ए साधु’ (एक साधु के लैंस से हिमालय दर्शन) में प्रकाशित किया। पुस्तक का विमोचन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था। अब तक इस पुस्तक की साढ़े तीन हजार प्रतियां बिक चुकी हैं।वहीं वर्ष 2002 में उन्होंने अपने अनुभवों को एक पुस्तक ‘हिमालय : थ्रू ए लेंस ऑफ ए साधु’ (एक साधु के लैंस से हिमालय दर्शन) में प्रकाशित किया। पुस्तक का विमोचन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था। अब तक इस पुस्तक की साढ़े तीन हजार प्रतियां बिक चुकी हैं।वहीं वर्ष 2002 में उन्होंने अपने अनुभवों को एक पुस्तक ‘हिमालय : थ्रू ए लेंस ऑफ ए साधु’ (एक साधु के लैंस से हिमालय दर्शन) में प्रकाशित किया। पुस्तक का विमोचन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था। अब तक इस पुस्तक की साढ़े तीन हजार प्रतियां बिक चुकी हैं।वहीं वर्ष 2002 में उन्होंने अपने अनुभवों को एक पुस्तक ‘हिमालय : थ्रू ए लेंस ऑफ ए साधु’ (एक साधु के लैंस से हिमालय दर्शन) में प्रकाशित किया। पुस्तक का विमोचन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था। अब तक इस पुस्तक की साढ़े तीन हजार प्रतियां बिक चुकी हैं।

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