सेंट जॉन्स इन द विल्डरनेस चर्च यानी “जंगल के बीच ईश्वर का घर”

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…in Nainital

1880 के नैनीताल में हुए प्रलयकारी भू-स्खलन में मारे गए 43 यूरोपियन के नाम चर्च के भीतर हैं अंकित 

प्रयाग दत्त पाण्डे
नैनीताल में बसावट शुरू होते ही कुमाऊँ के वरिष्ठ सहायक कमिश्नर जॉन हैलिट बैटन ने चर्च बनाने के लिए सूखाताल के पास इस स्थान को पहले ही चुन लिया था। मार्च,1844 में कलकत्ता के बिशप डेनियल विल्सन नैनीताल आए।उनके साथ पादरी भी थे।बिशप को चर्च के लिए चुनी गई इस जगह पर ले जाया गया।उन्हें पहली नज़र में यह जगह पसंद आ गई।बिशप ने इस जगह को तत्काल अपने स्वामित्व में ले लिया।उन्हें यह जगह ‘जन्नत’सी लगी।इसीलिए बिशप ने इस चर्च को नाम दिया-सेंट जॉन्स इन द विल्डरनेस चर्च यानी ‘जंगल के बीच ईश्वर का घर।’
कुमाऊँ के तत्कालीन कमिश्नर जी.टी.लुशिंगटन के आदेश पर अधिशासी अभियंता कैप्टन यंग ने चर्च की इमारत का नक्शा बनाया।अक्टूबर,1846 को चर्च का नक्शा पास हुआ।बिशप के कार्यकाल के 13 वें वर्ष के मौके पर 13 अक्टूबर,1846 को चर्च की इमारत का शिलान्यास हुआ।चर्च के शिलान्यास की इबारत एक काँच की बोतल में लिखी गई।इस बोतल को इमारत की बुनियाद में रख दिया गया।
2 अप्रैल,1848 को निर्माणाधीन सेंट जॉन्स चर्च को प्रार्थना के लिए खोल दिया गया।दिसंबर,1856 को सेंट जॉन्स इन द विल्डरनेस चर्च की इमारत बन कर तैयार हो गई थी।चर्च के निर्माण में पन्द्रह हजार रुपए खर्च हुए।यह धनराशि चंदे और वहाँ मौजूद कमरों के किराए से जुटाई गई।1860 में चन्दे के रूप में जुटाई गई तीन सौ साठ रुपये की रकम से रूड़की की केनाल फाउंड्री से चर्च के लिए दो फिट का पीतल का घण्टा बनवाया गया।घण्टे में लिखा था-“एक आवाज!शून्य में चिल्लाना।”
1880 के नैनीताल में हुए प्रलयकारी भू-स्खलन में मारे गए 43 यूरोपियन में से कुछ को चर्च से लगे कब्रिस्तान में दफ़नाया गया।इस भू-स्खलन में मौत के मुँह में समा गए यूरोपियन नागरिकों की याद में सेंट जॉन्स चर्च के भीतर पीतल की एक लंबी पट्टी लगाई गई है। इसमें सभी यूरोपीय मृतकों के नामों का उल्लेख किया गया है।