फर्जी मतदान का विरोध करने वालों का सामाजिक बहिष्कार !

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ऐसे कैसे बचेगा ये जनतंत्र ?

योगेश भट्ट

देहरादून  :  कितनी हैरत की बात है। एक ओर हम लोकतंत्र को मजबूत करने की बात कर रहे हैं, चुनाव सुधार पर जोर दे रहे हैं, वहीं दूसरी ओर फर्जी मतदान का विरोध करने पर सामाजिक बहिष्कार की खबरें सुनाई दे रही हैं। खबर सीमांत विधानसभा क्षेत्र चकराता से है, जहां की त्यूणी तहसील के अधीन आने वाले फनार गांव में तीन परिवारों का मतदान के बाद सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया। सामाजिक बहिष्कार का फरमान ‘स्याणा प्रथा’ के अंतर्गत होने वाली पंचायत में लिया गया।

स्याणा जौनसार बावर क्षेत्र में न्याय की वह प्रथा है, जिस पर क्षेत्र के लोग दशकों से भरोसा करते आ रहे हैं। पूरे जौनसार बावर क्षेत्र में इस परंपरा की मान्यता भी इसी लिए है क्योंकि आम लोगों को इसमें त्वरित न्याय मिलता रहा है। बहरहाल, हालिया जो मामला प्रकाश में आया है, वह न तो किसी अपराध से जुड़ा है और न ही किसी अन्याय की शिकायत से। सीधे तौर पर मसला यह है कि गांव के इन तीन परिवार के सदस्यों ने मतदान केंद्र पर फर्जी मतदान की कोशिश का विरोध किया और इसकी सूचना जिम्मेदार अधिकारियों तक पहुंचाई। इसके चलते उस केंद्र पर फर्जी मतदान संभव नहीं हो पाया।

देखा जाए तो बेहद सराहनीय कार्य है। लोकतंत्र की मजबूती के लिए इस तरह के प्रयासों की ही तो आवश्यकता है। लेकिन हुआ उलट। इन परिवारों के खिलाफ गांव में सामाजिक बहिष्कार का फरमान सुना दिया गया। सवाल ये है कि जिस पंचायत में यह फरमान सुनाया गया, उस पंचायत ने कभी मतदान न करने वालों के खिलाफ भी कोई फरमान सुनाया? दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि स्याणा जैसी प्रथा अन्याय, उत्पीड़न और शोषण के खिलाफ न्याय देने के लिए बनी है, ना कि किसी तरीके के राजनीतिक हस्तक्षेप के लिए। ऐसे में कोई भी पंचायत इस तरीके के सामाजिक बहिष्कार का निर्णय कैसे सुना सकती है?

जबकि सामाजिक बहिष्कार तो उनका होना चाहिए था, जो लोकतंत्र का मखौल उड़ा रहे हों, जो मतदान और मतदाता को खरीदने-बेचने की वस्तु समझते हों। आश्चर्य ये है कि इतने संजीदा मसले पर शासन-प्रशासन सामाजिक संगठन, मीडिया और चुनाव आयोग सब मौन साधे बैठे हैं। जबकि यह घटना तो सीधे लोकतंत्र की आत्मा पर चोट है। इसकी जवाबदेही क्या इन सब की नहीं है, जिनका जिक्र पिछली पंक्ति में किया गया है? क्या इस घटना की जानकारी सामने आने के बाद इसकी गहनता से पड़ताल नहीं होनी चाहिए?

ऐसा फैसला सुनाने वालों का विरोध नहीं होना चाहिए? उनके ऊपर कानून सम्मत कार्रवाई नहीं होनी चाहिए? जिन लोगों का आज सामाजिक बहिष्कार किया गया है, ऐसे में उन्हें सुरक्षा प्रदान करने का जिम्मा किसका है? लोकतंत्र में जिम्मेदार लोगों की यह खामोशी बेहद चिंताजनक है। ऐसे में जबकि हम चुनाव सुधार की बात कर रहे हैं, तो बेहद जरूरी है कि इस तरीके की घटनाओं का प्रतिकार किया जाए। इनके खिलाफ बड़ा एक्शन हो ताकि ऐसा करने वालों के हौसलें पस्त हों और यह एक नजीर बन सके। सही मायनों में चुनाव सुधार की ओर हम तभी कदम बढा पाएंगे।

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