सरकार की जीरो टॉलरेंस की नीति पर प्रमुख सचिव का पलीता !

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  • एक प्रमुख सचिव के सामने पॉलिसी के नहीं कोई मायने!

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

देहरादून : वैसे भी उत्तराखंड के अस्तित्व में आने से लेकर आज तक राज्य की ब्यूरोक्रेसी ने जो गुल खिलाये हैं वह अपने आप में नायाब है लेकिन वहीँ राज्य की ब्यूरोक्रेसी के कृत्यों को लेकर इस बार जो चर्चाएं आम हैं वह आपको आश्चर्य में  डाल सकता है। यहाँ सरकार के प्रमुख सचिव के सामने मंत्रिमंडल के निर्णय कोई मायने नहीं रखते। या यूँ  कहें कि कैबिनेट के निर्णय उनके सामने बौने साबित होते रहे हैं। यह बात खुद उनके द्वारा निकाले गए शासनादेश से साफ़ ही जाता है।

गौरतलब हो कि देश के अन्य राज्यों की तरह उत्तराखंड में भी विधानसभा से पारित किसी भी तरह के कानूनों या पॉलिसी को केवल विधानसभा  बदल सकती है। वहीँ उत्तराखंड में भी इसी तरह प्रिक्योरमेंट पॉलिसी (खरीद नियमावली)को बदलने का अधिकार केवल विधानसभा को ही होता है जबकि मंत्रिमंडल में लिए गए फैसलों को बदलने का अधिकार मंत्रिमंडल को ही होता है।  लेकिन उत्तराखंड सरकार के एक चर्चित प्रमुख सचिव के सामने न तो  विधानसभा में पारित पालिसी के ही कोई मायने हैं और तो और वे मंत्रिमंडल के फैसलों को तो वे चुटकी में ही बदल डालते हैं।  

मामला उत्तराखंड में बन रही राष्ट्रीय राज मार्ग की सड़कों का है जहाँ सड़क बनाने वाले ठेकेदारों को सड़क निर्माण में प्रयोग होने वाले उप खनिजों यानि बालू, बजरी और बोल्डर के खनन को लेकर एक शासनादेश का है। उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार की अधिप्राप्ति नियमावली के अनुसार पहली निविदा में जहाँ कम से कम तीन निविदाओं का आना जरुरी कहा गया है वहीँ तीन निविदा न आने के बाद दूसरी बार निविदा में यदि एक ही निविदा आती है और वह विभागीय तकनीकी अहर्ता पर यदि फिट बैठती तो विभाग को ठेकेदार को वह निविदा उनको देनी होगी। 

लेकिन यहाँ तो प्रमुख सचिव ने सारे कायदे -कानूनों और नियमों को तोड़ते हुए यह शासनादेश निकाल डाला कि पहली -दूसरी और तीसरी बार भी यदि किसी भी उपखनिक क्षेत्र व लॉट हेतु उत्तराखंड उपखनिक (परिहार) (संशोधन) नियमावली 2017 के प्रावधानानुसार ई -निविदा सह ई -नीलामी में राष्ट्रीय स्तर पर तीन निविदाकार प्राप्त न होने की स्थिति में उक्त उपखनिज क्षेत्र व लॉट हेतु राष्ट्रीय स्तर पर कम से कम तीन बार ई -निविदा सह ई -नीलामी की प्रक्रिया पूर्ण कराने का कष्ट करें।  उक्त प्रक्रिया के उपरान्त भी अगर संदर्भित उपखनिज क्षेत्र व लॉट हेतु न्यूनतम तीन अर्ह  निविदाकार प्राप्त नहीं होते यहीं तो केस -टू -केस प्रकरण शासन को संदर्भित करें।  

प्रमुख सचिव के द्वारा जारी शासनादेश से साफ़ है कि विभाग ठेकेदारों को बुलाकर उनसे मोल भाव कर सकता है जिससे साफ़ यही कि इस प्रक्रिया में जमकर भ्रष्टाचार किया जायेगा जो सरकार की जीरो टॉलरेंस की नीति के विपरीत है जबकि इसके लिए उत्तराखंड अधिप्राप्ति नियमावली में केवल निविदाएं ही करने का प्रावधान है न कि केस -टू -केस प्रकरण की सुनवाई का अधिकार प्राप्त है।