संस्कृत भाषा नहीं बल्कि भारत की गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक भी : राज्यपाल

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उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के छठे दीक्षांत समारोह में 40 मेधावी स्वर्ण पदक से सम्मानित

devsanskrit_1हरिद्वार  : संस्कृत केवल एक भाषा नहीं अपितु सदियों से समाज को ज्ञान और संस्कारों से पोषित व समृद्ध कर रही भारत की गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है जिसमें आध्यात्म, आदर्श जीवन दर्शन, ज्ञान-विज्ञान और श्रेष्ठ साहित्य का अनमोल खजाना संरक्षित है। संस्कृत भाषा में रचित ग्रन्थों में मौजूद ज्ञान को केवल संस्कृत के अध्येताओं तक सीमित नहीं रहना चाहिए, इसमें निहित ज्ञान-संपदा से भलीभांति परिचित व लाभान्वित होने के लिए दुनियाभर के शोधार्थियों और संस्कृत विद्वानों को जोड़ने की आवश्यकता है इसके लिये कम्प्यूटर-इंटरनेट जैसे सभी आधुनिक तकनीक व संचार माध्यमों का प्रयोग सर्वाधिक उपयुक्त होगा। इस दिशा में ठोस परिणामों के लिये संस्कृत विश्वविद्यालय को अपनी भूमिका रेखांकित करनी होगी।

    देवभूमि में स्थापित इस विश्वविद्यालय को ज्ञान का ऐसा उत्कृष्ट केन्द्र बनाने का लक्ष्य निर्धारित करना होगा, जैसे कभी तक्षशिक्षा और नालन्दा विश्वविद्यालयों थे जिनमें दुनिया के सभी देशों के विद्यार्थियों, शोधार्थियों और जिज्ञासुओं के लिये अध्ययन व सभी प्रकार की जिज्ञासाओं के समाधान की व्यवस्था थी। राज्यपाल डॉ. कृष्ण कांत पाल शनिवार को उत्तराखण्ड संस्कृत विश्व विद्यालय के छठे दीक्षान्त समारोह को सम्बोधित कर रहे थे।

devsanskrit_2राज्यपाल ने संस्कृत को उदीयमान भविष्य की धरोहर बताया और उसके वैभवशाली अतीत तथा वर्तमान चुनौतियों का उल्लेख करते हुए कहा कि इन चुनौतियों का मुकाबला तभी किया जा सकता है जब प्राचीन और आधुनिक विज्ञान को एक साथ रखा जाए। आज सारी दुनिया आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा की ओर आकर्षित हो रही है। आयुर्वेद, योग और सिद्धा जैसी चिकित्सा पद्धतियों का अनमोल साहित्य संस्कृत में मौजूद है जिसे महर्षि पाणिनी, महर्षि कात्यायन तथा योगशास्त्र के प्रणेता महर्षि पतंजलि ने संस्कारित किया है। इन तीनों ही महर्षियों ने बड़ी कुशलता से योग की क्रियाओं को भाषा में समाविष्ट किया यही इस भाषा की विशेषता और रहस्य है जिसकी वैज्ञानिकता पूरी दुनिया में प्रमाणित हो चुकी है।

संस्कृत और रोजगार पर बोलते हुए राज्यपाल ने कहा कि विश्वविद्यालय, संस्कृत के साथ म्यूजिमोलाॅजी जैसे पाठ्यक्रम शुरू करें। इससे संस्कृत भाषा के संरक्षण-संवर्धन तथा प्रचार-प्रसार को मजबूती मिलेगी और विश्वविद्यालय से उपाधि प्राप्त विद्यार्थियों के लिए पुरातत्व विभाग व संग्रहालयों में रोजगार के दरवाजे भी खुलेंगे।

उन्होंने कहा आज उपाधि प्राप्त विद्यार्थियों को बधाई देते हुए राज्यपाल ने उनका आह्वान किया कि संस्कृत भाषा में निहित भारतीय मूल्यों व संस्कारों से पोषित अपने ज्ञान, योग्यता और चारित्रिक गुणों की शक्तियों से देश-प्रदेश और समाज को लाभान्वित करते हुए अपनी आजीविका सुनिश्चित करें।

devsanskrit_3राज्यपाल ने प्रेरक शब्दों में कहा, -‘‘विद्यार्थियों को पदक से सम्मानित करके व उपाधि प्रदान करने पर गर्व के साथ ही मुझे यह अनुभूति हो रही है कि मैंने भारतीय संस्कृति और मूल्यों को पोषित करने का कार्य विश्वसनीय हाथों में सौंपा है।’’

भू-मंडलीकरण के इस युग में संस्कृत भाषा और उसके साहित्य में छिपे अथाह ज्ञान के वैज्ञानिक अध्ययन व शोध को नितान्त आवश्यक बताते हुए राज्यपाल व कुलाधिपति ने संस्कृत की अनगिनत विशेषताओं का उदाहरण दिया और कहा कि विश्वभर में कम्प्यूटर के लिये सर्वाधिक सुविधाजनक मानी जा चुकी संस्कृत भाषा के डिजिटाईजेशन की तकनीक जैसे-जैसे विकसित होती जायेगी वैसे-वैसे कम्प्यूटर के क्षेत्र में अभूतपूर्व परिणाम भी परिलक्षित होंगे तब वैश्विक स्तर पर संस्कृत के प्राचीन ग्रन्थों पर शोध का महत्व और अधिक बढ़ेगा।

राज्यपाल ने आयुर्वेद सहित वैदिक गणित, प्राचीन अर्थशास्त्र, कृषि एवं वनस्पति विज्ञान, प्राचीन समुद्र विज्ञान और एस्ट्रोलाॅजी जैसे विषयांे के मानक कोश तैयार किए जाने पर बल देते हुए कहा कि इनके कोश तैयार होने से विश्व पटल पर इन्हें आधुनिक ज्ञान (नाॅलेज) के समान स्थापित करने में आसानी होगी। इन कोशों के माध्यम से इस बात को तार्किक और तथ्यात्मक रूप से स्थापित किया जा सकता है कि प्राचीन भारत में भी विज्ञान विकसित रूप में मौजूद था।

विश्वविद्यालय परिसर में संपन्न दीक्षांत समारोह में राज्यपाल द्वारा शैक्षिक सत्र 2014-15 व 2015-16 में विभिन्न विषयों में डी.लिट., पी.एचडी., स्नातक, स्नातकोत्तर और अन्य व्यावसायिक पाठ्यक्रमों उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले 40 विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया।