पुण्यतिथि पर नमन : भारत रत्न नानाजी देशमुख का नाम लेते ही ताजा हो जातीं समृद्धि की यादें

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महान समाजसेवी,सदा जीवन उच्च विचार भावना की प्रतिमूर्ति,ग्रामोदय से राष्ट्रोदय संकल्पना के प्रेरणा भारत रत्न राष्ट्र ऋषि नानाजी देशमुख

कमल किशोर डुकलान

11 अक्टूबर 1916 को महाराष्ट्र के हिंगौली जिले के कंडोली गांव में जन्मे नानाजी देशमुख ताउम्र स्वयं सेवक रहे। जनता पार्टी की सरकार में मोरारजी देसाई मंत्रिमंडल में शामिल हुए। 60 साल से अधिक उम्र होने पर मंत्री पद ठुकरा राजनीति में शुचिता की नींव डाली।
मध्यप्रदेश सतना के चित्रकूट में दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना की। दिल्ली समेत कई प्रांतों के बाद चित्रकूट में कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, साहित्य, ग्रामीण विकास व उद्यमिता पर काम कर 500 गांवों को स्वावलंबन की राह दिखाई। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में उनको राज्यसभा सदस्य मनोनीत किया गया था।
नानाजी को मिले  ये प्रमुख सम्मान
भारत रत्न सम्मान : 2019
ज्ञानेश्वर पुरस्कार : 2005
पद्मविभूषण सम्मान : 1999

काजल की कोठरी में रहकर बिना कालिख लगे निकल जाना,आज के युग में लोग इसे आठवां आश्चर्य ही मानते हैं। राजनीति अपने लिए नहीं,अपनों के लिए नहीं, वरन देश के लिए करने का सामथ्र्य जिस महापुरुष में था,उनमें से प्रमुख नाम आता है महान समाजसेवी,सदा जीवन उच्च विचार भावना की प्रतिमूर्ति,ग्रामोदय से राष्ट्रोदय संकल्पना के प्रेरणा भारत रत्न राष्ट्र ऋषि नानाजी देशमुख का। आज पुण्यतिथि है। उनका नाम आते ही ग्रामोदय के पुण्यधाम चित्रकूट क्षेत्र में समृद्धि अभियान की यादें हर किसी के जेहन में ताजा हो जाती हैं। उन्होंने समाज शिल्पी दंपती अभियान से गांव-गांव में खुशहाली लौटाई थी। उन्होंने खुद के अभावग्रस्त जीवन से सीख लेकर ग्रामोदय के क्षेत्र में तरक्की का ऐसा कारवां खड़ा किया,जो वर्तमान में तमाम प्रकल्पों संग किसानों और युवाओं को बेहतरी की राह दिखा रहा है।

सच में नानाजी देशमुख करोड़ों भारतीयों के बीच एक रत्न थे। वे कार्यों से रत्न थे। कार्यों से ऋषि थे। वे ग्रामोदय और अंत्योदय के अखंड उपासक थे। वे राजनीति में रहकर भी रचनाधर्मी और सृजनकारी थे। उन्होंने स्कूल को स्कूल नहीं कहा, सरस्वती शिशु मंदिर कहा। सरस्वती शिशु मंदिर कहते ही, मां सरस्वती से शिशु का जो नाभि का संबंध है, बिना कुछ कहे स्वत: एहसास होने लगता है। नानाजी देशमुख द्वारा जड़ में बोया गया बीज ही आज पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक विद्या भारती द्वारा सरस्वती शिशु मंदिरों के रूप में पोषित और पल्लवित हो रहा है। भारतीय संस्कृति से दूर रहकर भारत का विद्यार्थी मां सरस्वती की आराधना भला कैसे कर सकता है! धरोहर को धरा पर नानाजी देशमुख ने न केवल उतारा बल्कि आज 28 लाख बच्चे विद्या भारती विद्यालयों के आंचल में अध्ययन कर रहे हैं।

नानाजी देशमुख एक सोच थे। नानाजी देशमुख एक विचार थे। नानाजी के पुरुषत्व में मातृत्व था। जिसके पुरुषत्व में मातृत्व होता है, उसे लोग ईश्वर का अंश ही मानते हैं। नानाजी का संबंध धनाढ्य लोगों से रहा परंतु उन्होंने धनाढ्य के धन का उपयोग ग्रामोदय और अंत्योदय में किया। ग्राम उनकी पूजा थी। उन पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय का बहुत प्रभाव था। वे सत्ता की चकाचौंध से कभी प्रभावित नहीं हुए। उन्होंने सत्ता को सेवा से जोड़ा। जनसंघ के जो 10-12 प्रमुख प्रारंभिक स्तंभ थे, वे उनमें से एक थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा से निकले और आद्य सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार का सान्निध्य प्राप्त कर उन्होंने प्रारंभ में संघ के विचार को और जब संघ की प्रेरणा से जनसंघ बना, तो उसके दीये की अखंड ज्योति से उसका चिन्मयी बनकर वे भारत के कोने-कोने में जनसंघ के विचार को लेकर पहुंचे।

जनता पार्टी की सरकार बनी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी धराशायी हुईं। आपातकाल में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के साथ कदम से कदम मिलाकर गुप्त क्रांति की प्रेरणा नानाजी देशमुख ने दी, वह आज भी प्रख्यात पत्रकार दीनानाथ मिश्र की किताब ‘गुप्त क्रांति’ में पढ़ी जा सकती है। नानाजी देशमुख कहा करते थे, ‘हौसले से बड़ा हथियार नहीं होता।’ जयप्रकाश नारायण के हौसले का नाम नानाजी देशमुख था। जयप्रकाश नारायण नानाजी से अटूट प्रेम करते थे।

यही कारण था कि आपातकाल के काले साए के दौरान जेल में रहने के बाद रोशनी देने वाले में जो अग्रणी थे, वे थे जयप्रकाश नारायण और नानाजी देशमुख। सन 77 में सत्ता आई जनता पार्टी की सरकार बनी। तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी भाई देसाई सहित अनेक नेताओं ने आग्रह किया कि नानाजी जनसंघ कोटे से मंत्री बनें। लेकिन वे सत्ता की चकाचौंध में संगठन छोडऩे को तैयार नहीं थे। उन्होंने कह दिया, ‘‘मैं 60 वर्ष के बाद राजनीति से संन्यास ले लूंगा’’। वे 60 साल के हुए और अपने शब्दों को आचरण का परिधान पहनाते हुए उन्होंने घोषणा की, ‘‘मैं राजनीति से संन्यास लेता हूं, सेवा से नहीं’’।

नानाजी देशमुख को राष्ट्रपति ने उनके कृत्यों को देखकर राज्य सभा में मनोनीत किया। नानाजी ने जीवन मूल्यों पर आधारित समाज-पुनर्रचना को साकार करने की दिशा में अनेक पहलें कीं। वे 27 फरवरी 2010 को अपनी काया छोड़कर चले गए। वे इतने महान् थे कि उन्होंने दधीचि की तरह अपना प्रत्येक अंग दान कर दिया था। उन्होंने जीवित रहते हुए कह दिया था, ‘‘अंग जो भी काम का हो, दूसरे जीवन के लिए उपयोग में ले लेना चाहिए।