हिमवंत कवि चंद्रकुंवर बर्त्वाल की याद…

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  • चंद्र कुंवर बर्तवाल शोध संस्थान मसूरी और द हिल्स आफ मसूरी में संगोष्ठी 
  • साहित्य कला राजनीति शिक्षा के लोगों का हुआ समागम 

 

वेद विलास उनियाल 

काफल पाक्कु  छायावाद के  कवि चंद्रकुंवर बर्तवाल की यादगार रचना है।  मसूरी के सिल्टन होटल ने अपने सभागार का नाम भी काफल पाक्कु ही रखा है। आज इसी सभागार में स्कूली बच्चों ने अपने भाषणों और उनकी लिखी कविताओं से कविवर को याद किया। 

एक कवि जिसने जीवनके  केवल 28 बसंत देखे हो, जिसकी कविताओं का अमर गान भारतीय साहित्य का एक सुंदर पक्ष हो, जिनका सृजन उन्हें छायावाद के प्रमुख कवियों में शोभित करता हो  उस कवि की याद इस रूप में अऩूठी थी कि चौथी कक्षा में पढने वाला बच्चा भी सुस्वर उनकी लिखी पंक्तियों को सुना रहा था। स्कूली बच्चे उनकी जीवनी और साहित्य के पक्षों का पाठ कर रहे थे।

मसूरी में चंद्र कुंवर बर्तवाल शोध संस्थान मसूरी और द हिल्स आफ मसूरी के तत्वाधान में आयोजित संगोष्ठी में कविवर चंद्रकुंवर की याद में आज इस सभागार में स्कूली बच्चे आए,  साहित्य कला राजनीति शिक्षा  के लोग आए।  आयोजन के शुरू में संस्थान के अध्यक्ष शूरवीर भंडारी ने  बताया कि शहर में किस तरह हर वर्ष  हिमवंत कवि को याद करने की परंपरा बनी है।इसे पहल  अभियान को और सुव्यवस्थित किया जाएगा। 

मसूरी शहर अपनी प्राकृतिक छटा के लिए विख्यात है। दुनिया इसकी सुंदरता को निहारने उमडती है। लेकिन धीरे धीरे यह शहर सांस्कृतिक और रचनात्मक गतिविधियों का केंद्र भी बनता जा रहा है।  समय समय पर सांस्कृतिक आयोजनों मेलों के साथ साथ शहर के बीचों बीच गुजरती माल रोड और दूसरी प्रमुख जगहों पर उत्तराखंड आंदोलन में  मसूरी में बलिदान देने वाले नायकों की प्रतिमा स्मारक,  चंद्र कुंवर बर्तवाल की प्रतिमा यहां के  सामाजिक  सरोकारों की झलक देती है।

रस्किन बांड , हरिदत्त भट्ट शैलेष  टाम आल्टर विक्टर बनर्जी प्रीतम भर्तवाण का यह शहर  शहर है जो उस कवि को याद करता है कि जिसे साहित्य की दुनिया ने भारत का कीट्स कहा है।  कीट्स  शैली बायरन  जैसे विख्यात अंग्रेजी के कवि ज्यादा नहीं जी सके।  लेकिन इस छोटी अवधि में  ये देश दुनिया को सुंदर साहित्य दे गए।  इसी तरह अल्प दिनों की जिंदगी जीने वाले  चंद्र कुंवर बर्तवाल की  कविताएं छायावाद के समय का सुंदर शिल्प है। जो एक तरफ प्रकृति की आराधना करता है, प्रकृति के सानिध्य में जीवन की लय मिलाता है  दूसरी तरफ उनका काव्य मृत्य से साक्षात्कार करता है  उसका अभिनंदन करता है। 

अब छाया में गुंजन होगा,   मुझको पहाड ही प्यारे,  हाय मेरी वेदना न कोई गा सका,  वन में फूल खिलेंगे,  है मेरे पास देने को बहुत जैसी रचनाएं तो उनकी रचनात्मकता को बताती है काफल पाक्को जैसी रचना भी कवि लिखकर पहाडों के जनमासस को झंझोर गए थे।  ये कविताए उन्होंने तब लिखी थी जब वे जान चुके थे कि मृत्य निकट है। इसलिए कुछ कविताएं मृत्य के देव को भी समर्पित हैं।  चंद्रकुंवर ने हिरोशिमा नागाशाही के विध्वंश को देख दशकों पहले कविता के स्वर कहे थे कि   बम गिराने वाले न्यूयार्क,  तू भी ऐसी त्रासदी झेलेगा।

इस अवसर पर  देवप्रयाग के विधायक विनोद कंडारी ने कहा कि इस आयोजन का विस्तार वह अपने क्षेत्र के स्कूल कालेज में भी करेंगे।  कामरेड नेता समर भंडारी ने कहा कि चंद्र कुंवर बर्तवाल की कविताएं मानवीयता के लिए थी। बेशक वह प्रकृति के कवि पहले थे लेकिन एक तरह का व्यवस्था के प्रति विद्रोह भी उसमें झलकता था। पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष मनमोहन सिंह मल्ल, श्री जोतसिंह गुनसोला, डा सुनील सेनन का लोगों को इस रूप में आश्वासन था कि आगे चंद्र कुंवर बर्तवाल के संदर्भ में आयोजन को और सुंदर स्वरूप दिया जाएगा। कार्यक्रम का संचालन अनिल गोदियाल ने बहुत ही सुन्दर तरीके से किया।