श्री राम जन्मभूमि : तारीखें जो हो गईं इतिहास के पन्नों में दर्ज

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पूरी पटकथा 22-23 दिसंबर, 1949 को अयोध्या में लिखी गई 

वर्ष 1990 में सुरक्षा बलों की गोलियों से कारसेवकों की मौत और 6 दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचा ध्वंस जैसी घटनाएं घटीं

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 
वर्ष 1528 के विवाद से लेकर वर्ष 2020 तक और वर्ष 1949 तक हिंदुओं ने रामजन्म भूमि की मुक्ति के लिए 76 युद्ध लड़े। इनमें कई लोग मारे गए। पर, जिस लड़ाई के बाद मंदिर निर्माण की शुरुआत होने जा रही है, उसकी पूरी पटकथा 22-23 दिसंबर, 1949 को अयोध्या में लिखी गई। भीषण संघर्ष के बाद वर्ष 1990 में सुरक्षा बलों की गोलियों से कारसेवकों की मौत और 6 दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचा ध्वंस जैसी घटनाएं घटीं, लेकिन सफलता 1949 में लिखी गई संघर्ष की एक पटकथा को ही मिली।
आज बुधवार को राम मंदिर का भव्य भूमिपूजन आज अय़ोध्या में होने जा रहा है। अयोध्या नगरी पूरी तरह से इस तरह सजाया और संवारा गया है मानों राम 14 वर्ष के वनवास के बाद एक बार पुनः अयोध्या आ रहे हों। समूची अयोध्या रंग-बिरंगी रोशनी से जगमगा रही है तो वहीं सभी भवनों और मकानों को पीले रंग से सराबोर किया गया है। पूरे अयोध्या में चारों तरफ सिर्फ भूमिपूजन और प्रधानमंत्री मोदी की बड़ी-बड़ी होर्डिंग्स लगी है। जिनमें एक ही संदेश लिखा है कि प्रधानमंत्री मोदी भूमिपूजन करेंगे। लेकिन भूमिपूजन की इस बेला तक पहुँचने के लिए देश के हिन्दू समाज ने कितनी कठिनाइयों का सामना किया यह इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुका है और आज यानि बुधवार पांच अगस्त की तारीख भी इतिहास के पन्नों में दर्ज होगी। अब हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर वर्ष 1528 के विवाद से लेकर आज दिन तक कैसा रहा रामजन्म भूमि आंदोलन का इन लगभग पांच सौ सालों का सफरनामा …..
वर्ष 1528 : अयोध्या में एक ऐसे स्थल पर मस्जिद का निर्माण, जिसे हिंदू भगवान राम का जन्मस्थान मानते थे। मस्जिद बनवाने का आरोप लगा बाबर पर। कि बाबर की शह पर ही उसके सेनापति मीर बाकी ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवाई थी।
वर्ष 1853 : मुगलों और नवाबों के शासन के चलते 1528 से 1853 तक इस मामले में हिंदू बहुत मुखर नहीं हो पाए, पर मुगलों और नवाबों का शासन कमजोर पड़ने तथा अंग्रेजी हुकूमत के प्रभावी होने के साथ ही हिंदुओं ने यह मामला उठाया और कहा कि भगवान राम के जन्मस्थान मंदिर को तोड़कर मस्जिद बना ली गई। इसको लेकर हिंदुओं और मुसलमानों में झगड़ा हो गया।
वर्ष 1859 : अंग्रेजी हुकूमत ने तारों की एक बाड़ खड़ी कर विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों तथा हिंदुओं को अलग-अलग पूजा और नमाज की इजाजत दे दी।
न्यायालय पहुंचा मामला
वर्ष 19 जनवरी 1885 ढांचे के बाहरी आंगन में स्थित राम चबूतरे पर बने अस्थायी मंदिर को पक्का बनाने और छत डालने के लिए निर्मोही अखाड़े के मंहत रघुबर दास ने 1885 में पहली बार सब जज फैजाबाद के न्यायालय में अंग्रेजी सरकार के खिलाफ स्वामित्व को लेकर दीवानी मुकदमा किया। सब जज ने निर्णय दिया कि वहां हिंदुओं को पूजा-अर्चना का अधिकार है। पर, वे जिलाधिकारी के फैसले के खिलाफ मंदिर को पक्का बनाने और छत डालने की अनुमति नहीं दे सकते।
22 दिसंबर 1949 ढांचे के भीतर गुंबद के नीचे मूर्तियों का प्रकटीकरण। प्रधानमंत्री थे जवाहर लाल नेहरू, मुख्यमंत्री थे गोविंद वल्लक्ष पंत और जिलाधिकारी थे केके नैय्यर ।
16 जनवरी 1950 गोपाल सिंह विशारद ने  फैजाबाद के सिविल जज की अदालत में मुकदमा दायर कर ढांचे के मुख्य (बीच वाले) गुंबद के नीचे स्थित भगवान की प्रतिमाओं की पूजा-अर्चना की मांग की।
 5 दिसंबर 1950  ऐसी ही याचना करते हुए महंत रामचंद्र परमहंस ने सिविल जज के यहां मुकदमा दाखिल किया। मुकदमे में दूसरे पक्ष को संबंधित स्थल पर पूजा-अर्चना में बाधा डालने से रोकने की मांग की गई थी।
3 मार्च 1951 गोपाल सिंह विशारद मामले में न्यायालय ने दूसरे पक्ष (मुस्लिम) को पूजा-अर्चना में बाधा न डालने की हिदायत दी। ऐसा ही आदेश परमहंस की तरफ से दायर मुकदमे में भी दिया गया।
17 दिसंबर 1959 रामानंद संप्रदाय की तरफ से निर्मोही अखाड़े के छह व्यक्तियों ने मुकदमा  दायर कर इस स्थान पर अपना दावा ठोका। साथ ही मांग की कि रिसीवर प्रियदत्त राम को हटाकर उन्हें पूजा-अर्चना की अनुमति दी जाए। यह उनका अधिकार है।
18 दिसंबर 1961  उत्तर प्रदेश के केंद्रीय सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मुकदमा दायर किया। प्रार्थना की कि यह जगह मुसलमानों की है। ढांचे को हिंदुओं से लेकर मुसलमानों को दे दिया जाए। ढांचे के अंदर से मूर्तियां हटा दी जाएं। ये मामले न्यायालय में चलते रहे।
कारसेवा आंदोलन की शुरुआत 
24 मई 1990 हरिद्वार में विराट हिंदू सम्मेलन हुआ। संतों ने देवोत्थान एकादशी (30 अक्तूबर 1990) को मंदिर निर्माण के लिए  कारसेवा की घोषणा की।
1 सितंबर 1990 अयोध्या में अरणी मंथन कार्यक्रम हआ और उससे अग्नि प्रज्ज्वलित की गई। विहिप ने इसे ‘राम ज्योति’ नाम दिया। इस ज्योति को गांव-गांव पहुंचाने के अभियान के सहारे विहिप ने लोगों को कारसेवा में हिस्सेदारी के लिए तैयार किया। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कारसेवा पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की। कहा, ‘अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा।’
25 सितंबर 1990 भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने कारसेवा में हिस्सेदारी की घोषणा के साथ गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथयात्रा शुरू की। पर, उन्हें बिहार के समस्तीपुर में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने गिरफ्तार कर लिया। भाजपा ने केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लिया।
30 अक्तूबर 1990 अयोध्या में कारसेवक जन्मभूमि स्थल की ओर बढ़े। सुरक्षा बलों से भिड़ंत। अशोक सिंहल सहित कई कारसेवक घायल। कुछ कारसेवकों ने गुंबद पर पहुंचकर भगवा झंडा लगाया।
2 नवंबर 1990 कारसेवकों के जन्मभूमि मंदिर कूच की घोषणा हुई। पुलिस ने गोली चलाई। कोठारी बंधुओं सहित कई कारसेवकों की मृत्यु। विरोध में जेल भरो आंदोलन।
4 अप्रैल 1991 दिल्ली में मंदिर निर्माण को लेकर विराट हिंदू रैली। उसी दिन मुलायम सिंह यादव सरकार ने इस्तीफा दे दिया। चुनाव हुए और कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी।
अक्तूबर 1991  कल्याण सिंह सरकार ने ढांचे और उसके आसपास की 2.77 एकड़ जमीन अपने अधिकार में ले ली। श्रीराम जन्मभूमि न्यास ने  श्री राम कथाकुंज के लिए भूमि की मांग की। कल्याण सिंह सरकार ने 42 एकड़ जमीन  श्रीराम  कथाकुंज के लिए न्यास को पट्टे पर दी।  इसके बाद न्यास ने वहां भूमि का समतलीकरण किया।
राम जन्म भूमि आंदोलन का फैसला
8 अप्रैल 1984  : वर्ष 1982 में विश्व हिंदू परिषद ने राम, कृष्ण और शिव के स्थलों पर मस्जिदों के निर्माण को साजिश करार दिया और इनकी मुक्ति के लिए अभियान चलाने का फैसला किया। फिर 8 अप्रैल 1984 को दिल्ली में संत-महात्माओं, हिंदू नेताओं ने अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि स्थल की मुक्ति और ताला खुलवाने को आंदोलन का फैसला किया। 
1 फरवरी 1986 : फैजाबाद के जिला न्यायाधीश केएम पाण्डेय ने स्थानीय अधिवक्ता उमेश पाण्डेय की अर्जी पर इस स्थल का ताला खोलने का आदेश दे दिया। मुस्लिमों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया। इस फैसले के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में अपील खारिज हुई।
श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर मंदिर का शिलान्यास
जनवरी 1989 में प्रयाग में कुंभ मेले के अवसर पर मंदिर निर्माण के लिए गांव-गांव शिला पूजन कराने का फैसला हुआ। साथ ही  9 नवंबर 1989 को श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर मंदिर के शिलान्यास की घोषणा की गई। काफी विवाद और खींचतान के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शिलान्यास की इजाजत दे दी। बिहार निवासी अनुसूचित जाति के कामेश्वर चौपाल से शिलान्यास कराया गया।
6 दिसंबर 1992 अयोध्या पहुंचे हजारों कारसेवकों ने ढांचा गिरा दिया। इसकी जगह इसी दिन शाम को अस्थायी मंदिर बनाकर पूजा-अर्चना शुरू कर दी। केंद्र की तत्कालीन नरसिंह राव सरकार ने कल्याण सिंह सहित अन्य राज्यों की भाजपा सरकारों को भी बरखास्त कर दिया। उत्तर प्रदेश सहित देश में कई जगह सांप्रदायिक हिंसा हुई, जिसमें अनेक लोगों की मौत हो गई। 
6 दिसंबर 1992 : अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि थाना में ढांचा ध्वंस मामले में हजारों लोगों पर मुकदमा।
8 दिसंबर 1992 : अयोध्या मेें कर्फ्यू लगा था। वकील हरिशंकर जैन ने उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में गुहार लगाई कि भगवान भूखे हैं। राम भोग की अनुमति दी जाए।
16 दिसंबर 1992 : ढांचे ढहाने के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान के लिए लिब्राहन आयोग गठित किया। इसे 16 मार्च 1993 को रिपोर्ट सौंपनी थी।
इतिहास में दर्ज महत्वपूर्ण तारीखें
1 जनवरी 1993: न्यायाधीश हरिनाथ तिलहरी ने दर्शन-पूजन की अनुमति दे दी।
7 जनवरी 1993 : केंद्र सरकार ने ढांचे वाले स्थान और कल्याण सिंह सरकार द्वारा न्यास को दी गई भूमि सहित यहां पर कुल 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया।
अप्रैल 2002: उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने विवादित स्थल का मालिकाना हक तय करने के लिए सुनवाई शुरू की।
5 मार्च 2003: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को संबंधित स्थल पर खुदाई का निर्देश दिया।
22 अगस्त  2003 : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने न्यायालय को रिपोर्ट सौंपी। इसमें संबंधित स्थल पर जमीन के नीचे एक विशाल हिंदू धार्मिक ढांचा (मंदिर) के होने  की बात कही गई।
5 जुलाई 2005: अयोध्या में विवादित स्थल पर छह आतंकियों के आत्मघाती आतंकी दस्ते का हमला। इसमें सभी मारे गए। तीन नागरिकों की भी मौत।
30 जून 2009: लिब्राहन आयोग ने तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह को रिपोर्ट सौंपी। आयोग का कार्यकाल 48 बार बढ़ाया गया।
30 सितंबर 2010 इस स्थल को तीनों पक्षों श्रीराम लला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में बराबर-बराबर बंाटने का आदेश दिया। न्यायाधीशों ने बीच वाले गुंबद के नीचे जहां मूर्तियां थीं, उसे जन्मस्थान माना।
21 मार्च 2017 : सर्वोच्च न्यायालय ने मध्यस्थता से मामले सुलझाने की पेशकश की। यह भी कहा कि दोनों पक्ष राजी हों तो वह भी इसके लिए तैयार है।
6 अगस्त 2019 : सर्वोच्च न्यायालय ने प्रतिदिन सुनवाई शुरू की।
16 अक्तूबर 2019: सुनवाई पूरी। फैसला सुरक्षित। 40 दिन चली सुनवाई।
9 नवंबर 2019: सर्वोच्च न्यायालय ने संबंधित स्थल को श्रीराम जन्मभूमि माना और 2.77 एकड़  भूमि रामलला के स्वामित्व की मानी । निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावों को खारिज कर दिया। निर्देश दिया कि मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार तीन महीने में ट्रस्ट बनाए और ट्रस्ट निर्मोही अखाड़े के एक  प्रतिनिधि को शामिल करे। उत्तर प्रदेश की सरकार मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक रूप से मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ भूमि किसी उपयुक्त स्थान पर उपलब्ध कराए ।
5 फरवरी 2020 : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की घोषणा की।
 5 अगस्त 2020 : श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए प्रधानमंत्री मोदी द्वारा भूमिपूजन।