- मो.नासिर के बहाने आयुर्वेद विवि में शुरू हुआ कुर्सी का खेल
- वेतन आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय से आहरित करने का चर्चित आदेश
- विवादित निर्णय से संघ और भाजपा की नाराज़गी मोल ले ली सरकार ने
राजेन्द्र जोशी
देहरादून : उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय अपने गठन के समय से ही विवाद का केन्द्र बना हुआ है. तब से लेकर अब तक इस विश्वविद्यालय में विजिलेंस जांच की आंच में आये चर्चित अधिकारी मृत्युंजय मिश्रा को लेकर तमाम विवाद भी सामने आये हैं जो सरकारों के संज्ञान में भी हैं। इस बार एक बार फिर मोहम्मद नासिर के बहाने सूबे के एक आला नौकरशाह ने मृत्युंजय को एक बार फिर विश्वविद्यालय की कुल सचिव की कुर्सी पर बैठाने का तानाबाना बुना जाने लगा है।
इतना ही चर्चा तो यहाँ तक है कि बिना नियमावली के मृत्युंजय मिश्रा का प्रवक्ता से कुललचिव पद पर समायोजन करने वाला यह आला अधिकारी खुद भी जहां तमाम विवादों में आने के बाद अभी भी अपने चर्चित चेले के लिए राह आसान बनाने और उसे विजिलेंस जांच के माध्यम से क्लीन चिट दिलवाने में जुटे हुए हैं। देश का शायद यह अपने आप में सबसे अलग मामला है जब किसी सरकार ने किसी महाविद्यालय के प्रवक्ता की उच्च शिक्षा से संबद्धता खत्म कर आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में समायोजित किया हो।
वहीं कुलसचिव की कुर्सी पर बैठाये जाने के ताने -बाने बुनने की बात तब और पुख्ता हो जाती है जब बीते दिन प्रदेश सरकार विजिलेंस जांच की आंच में झुलस रहे डॉ. मृत्युंजय मिश्र का वेतन आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय से ही आहरित करने के आदेश जारी कर दिए। इतना ही नहीं मिश्रा को पिछले कई महीनों से विवादों के चलते वेतन का भुगतान नहीं हो पाया था,जिसके लिए वे शासन से लेकर सरकार तक अपनी पैरोकारी में जुटे हुए थे। हालाँकि बीते दिन हुए फैसले में अब सरकार ने अब भी जब उनकी पद की स्थिति को लेकर स्थिति साफ नहीं की है लेकिन लेकिन वेतनमान पर सरकार का फैसला आश्चर्यजनक बताया जा रहा है।
सत्ता के गलियारों में बीते दिन अचानक आयुर्वेद विश्व विद्यालय में कुललचिव के पद पर कर विभाग के अपर आयुक्त मो. नासिर की तैनाती भी इसी योजना का हिस्सा बताया जा रहा है। चर्चा तो यह है कि आयुर्वेद विश्व विद्यालय में मिश्रा के फिर से दाखिले के लिए चर्चित नौकरशाह ने यह नई बिसात बिछाई है। चर्चा तो यहाँ तक है कि कई बार अपने गलत सलाह से यह नौकरशाह सरकार को गुमराह कर मुख्यमंत्री की किरकिरी तक करवा चुका है। इतना ही नहीं उत्तराखंड में इस नौकरशाह की पहचान घोर उत्तराखंड विरोधी के रूप में है और यही कारण है कि इस बार फिर इसने तमाम उत्तराखंड मूल के अधिकारियों के उपलब्ध होने के बाद भी एक गैरउत्तराखण्डी कुलसचिव को आयुर्वेद विश्वविद्यालय का अतिरिक्त पद भार सौंप दिया।
सूत्रों का कहना है कि चौथे तल पर बैठे इस नौकरशाह ने कुछ दिनों पहले आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुल सचिव की कुर्सी पर नज़रें गढ़ाये चर्चित प्रवक्ता से कुलसचिव की कुर्सी देख रहे मिश्रा से अपने सम्बन्ध ठीक न होने का प्रचार -प्रसार इसलिए करवाया ताकि लोगों की नज़रों से इसके लिए किया जा रहा विरोध कम किया जा सके। लेकिन यह बात भी दीगर है कि वर्तमान में कुल सचिव का अस्थायी तौर पर कार्यभार देख रहे राजेश अदना को हटा दिया गया है।
गौरतलब हो कि प्रदेश सरकार ने पिछले दिनों मृत्युंजय मिश्रा को आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार पद पर तैनात कर दिया था, लेकिन भाजपा और संघ द्वारा बाद में सरकार के इस फैसले पर अंगुली उठने पर मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप के बाद मिश्रा को एक बार फिर कुलसचिव के पद से हटा दिया गया था ।