भू-माफिया और अधिकारियों का गठजोड़ कब्जाने पर लगा बेशकीमती जमीनें!

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  • अल्मोड़ा के हवालबाग,मैंणी गांव की सैकड़ों नाली जमीन अधिकारियों ने दी कब्ज़ा 
  • उत्तरकाशी के सांकरी इलाके में आईएएस ने कब्जाई वन भूमि 
  • देहरादून में भी आईएएस ने कब्जाई नगर निगम की जमीन व नाला 
  • जनदबाव में जांच हो जाए, जांच में तथ्य भी सामने आ जाएं
  • लेकिन उस पर कार्यवाही करने वाला कोई नहीं 

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

देहरादून। उत्तरकाशी के मोरी ,सांकरी इलाके में एक आईएएस द्वारासैकड़ों नाली वन भूमि कब्जाने के बाद अस्थायी राजधानी देहरादून के जाखन इलाके के अंसल ग्रीन वैली इलाके में नगर निगम व बिंदाल नाले की कई बीघे जमीन कब्जाने के बाद अल्मोड़ा जिले के हवालबाग के  मैंणी गांव के आस-पास की सैकड़ों नाली जमीन पर सूबे और अन्य राज्यों सहित केंद्र में तैनात अधिकारियों ने कब्ज़ा दी है।  सरकारी बेशकीमती जमीनों को इस तरह कब्जाने की घटनाओं से साफ़ हो गया है कि उत्तराखंड में भू माफिया की इस कदर पैंठ हो चुकी है कि वह अब सरकार से गलबहियां डाले हुए दिखाई देते हैं, जबकि भू माफियाओं की गतिविधियों पर अंकुश लगाने वालों पर प्रशासनिक अमला नकेल लगाने में जुटा हुआ है।

परिवर्तन पार्टी के अध्यक्ष पीसी तिवारी ने देहरादून में प्रेस वार्ता करते हुए  हवालबाग भूमि  प्रकरण की जांच के समस्त दस्तावेज प्रदर्शित किए। उन्होंने पूरे प्रकरण को मीडिया के समक्ष रखा, तब उत्तराखंड में भू माफिया के प्रभाव की गंभीरता पता चल जाती है।वहीँ इस सबंध में माफिया संस्कृति विरोधी जन अभियान मुख्यमंत्री को भी कई बार ज्ञापन भेज चुका है।लेकिन कोई कार्रवाही नहीं अब तक नहीं हुई। 

गौरतलब यह है कि इस प्रकरण से साफ हो जाता है कि उत्तराखंड में भू माफिया किस कदर बलवान होता जा रहा है, उसके खिलाफ आवाज उठाने वालों की सामत आ रही है। ऐसे और न जाने कितने प्रकरण यहां उत्तरकाशी से लेकर चमोली, पिथौरागढ़ बागेश्वर, नैनीताल जहां जाएं मिल जाएंगे। सभी मामलों में शासन प्रशासन भू माफिया के साथ खड़े नजर आते हैं। हां यह संभव है कि जनदबाव में जांच हो जाए, जांच में तथ्य भी सामने आ जाएं, लेकिन उस पर कार्यवाही करने वाला कोई नहीं है।

ताजा मामला अल्मोड़ा जिले के हवालबाग ब्लाक का है। जहां स्कूल तथा हास्टल बनाने की आड़ में सरकारी जमीन प्राप्त की गई और उसके बाद दूसरी जमीनों पर अवैध कब्जे करने की प्रक्रिया शुरू हुई। इतना ही नहीं आरोपी की पत्नी को फर्जी तरीके से खुद को उत्तराखंड की निवासी बताकर सौ बीघा कृषि भूमि खरीद ली। जिलाधिकारी अल्मोड़ा द्वारा गठित उच्च स्तरीय जांच कमेटी की जांच में सारे आरोप सत्य पाए, इसके बावजूद जिलाधिकारी की संस्तुति पर शासन ने जमीन को सरकार में निहित करने की प्रक्रिया आठ साल में भी पूरी नहीं की। भू माफिया इस कदर बलशाली है कि वह स्थानीय निवासियों, पत्रकारों और शिकायतकर्ताओं पर फर्जी मुकदमे दर्ज करा देता है, यहां तक कि मारपीट तक उतर आता है, लेकिन शासन और प्रशासन से उसको इस कदर संरक्षण मिल रहा है कि कुछ साल चुप रहने के बाद वह फिर से अवैध गतिविधियां प्रारंभ कर चुका है। 

प्लीजेंट वैली फाउंडेशन नाम से एक एनजीओ का मुख्य हर्ताकर्ता दिल्ली में कार्यरत एक वरिष्ठ नौकरशाह है। इस संस्था ने अल्मोड़ा जिले के हवालबाग ब्लाक के अंतर्गत डांडा कांडा कुछ शर्तों के साथ बच्चों का स्कूल तथा हास्टल बनाने की अनुमति मांगी। मामला 2008 का है। अनुमति मिलते ही संस्था ने सार्वजनिक भूमि पर कब्जा करने, सरकारी व वन भूमि को अवैध तरीके से कब्जाने, हरे पेड़ों का पातन करने और खनन और स्टांप एक्ट के खिलाफ काम करने शुरू कर दिए। संस्था की अवैध गतिविधियों का विरोध करने वालों के खिलाफ पुलिस प्रशासन के साथ मिलीभगत कर मुकदमे दर्ज कराए गए। 

इतना ही नहीं दिल्ली में कार्यरत प्रशासनिक अधिकारी की पत्नी आशा यादव के नाम अल्मोड़ा जिले के ही हवालबांग ब्लाक के अंतर्गत मैंणी गांव में सौ नाली जमीन खरीद ली गई। जमीन की खरीद करते समय आशा यादव को उत्तराखंड की निवासी कृषक बताया गया। उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के अध्यक्ष पीसी तिवारी की लिखित शिकायत पर अक्टूबर 2010 को तत्कालीन जिलाधिकारी अल्मोड़ा ने एडीएम के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय जांच कमेटी बनाकर जांच के आदेश दे दिए। जांच कमेटी में तहसीलदार अल्मोड़ा, अधिशासी अभियंता प्रांतीय खंड लोक निर्माण विभाग अल्मोड़ा तथा प्रभागीय वनाधिकारी को शामिल किया गया।   

इस कमेटी की जांच में रक्षित वन क्षेत्र की परिधि के अंतर्गत सड़क, एक बड़ा भवन, दिवालबंदी, फील्ड बनाकर अवैध रूप से अतिक्रमण करने, राज्य सरकार की रक्षित वन श्रेणी की भूमि पर स्थित 30 चीड़ के पेड़ों का अवैध पातन, कुल 0.917 हेक्टेयर भूमि पर अतिक्रमण करने की पुष्टि की गई। इतना ही नहीं 30 चीड़ के पेड़ों का पातन करने के खिलाफ संस्था के विरुद्ध क्षेत्रीय पटवारी द्वारा मुकदमा दर्ज न करने की बात भी कही गई है। 

कमेटी ने अपनी चार पेज की जांच रिपोर्ट के अंतिम पैरा में कहा है कि समिति के विचार में अपर सचिव उत्तराखंड राजस्व अनुभाग-2 के शासनादेश दिनांक 2.12.2008 के अंतर्गत प्लीजेंट वैली को कतिपय शर्तों के अंतर्गत स्कूल हास्टल निर्माण हेतु भूमि क्रय करने की अनुमति प्रदान की गई है, के शर्त/प्रतिबंध संख्या-9 का उल्लंघन हुआ है। अतः ऐसी स्थिति में प्रश्नगत प्रकरण में संबंधित भूमि के शासन द्वारा क्रय किये जाने की स्वीकृति को निरस्त किये जाने हेतु शासन को संर्भित किया जाना उचित होगा तथा शासन द्वारा स्वीकृति निरस्त किये जाने की अनुमति प्राप्त होने के उपरांत प्रश्नगत भूमि को राज्य सरकार में निहित करने की कार्यवाही करना उचित होगा। 

गौरतलब है कि भूमि खरीद, अवैध कब्जे, हरे पेड़ों का पातन और सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा करने की पुष्टि 2011 में हो गई। कमेटी की जांच के बाद जिलाधिकारी ने 2011 में शासन का भूमि का सरकार में निहित करने की सिफारिश कर दी। उस समय राज्य में भाजपा की सरकार थी, उसके बाद पांच साल तक कांग्रेस की सरकार रही और और अब एक साल से अधिक समय से भाजपा की सरकार कार्यरत है। लेकिन संस्था के खिलाफ किसी भी सरकार ने कोई एक्शन नहीं लिया। इसका परिणाम यह हुआ है कि पिछले पांच-छह महीने से संस्था के लोग यहां फिर से अवैध गतिविधियों में जुट गए हैं। इतना ही नहीं इस पूरे प्रकरण की शिकायत करने वाले एडवोकेट, पत्रकार पीसी तिवारी के खिलाफ दिल्ली के कुछ समाचार पत्रों में कूटरचित खबरें प्रकाशित करने का हौव्वा खड़ा किया गया। दिल्ली के सात कथित वकीलों के माध्यम से शिकायत भेजी गई। शिकायत करने वालों की हैसियत जाने बिना पीसी तिवारी के खिलाफ प्रशासनिक जांच शुरू कर दी गई है, लेकिन अवैध गतिविधियों में लिप्त भू माफिया का बाल बांका भी नहीं हुआ है।