एक बार तो आओ उत्तराखंड में

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राजीव नयन बहुगुणा (वरिष्ठ पत्रकार)
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जब कि देश भर में नए तुग़लकी मोटर क़ानून को लेकर सर्वत्र त्राहिमाम मची है , एवं अंधे चालान काटे जा रहे हैं , ऐसे में मेरे प्रदेश उत्तराखंड से एक राहत भरी खबर यह है कि पुलिस के शीर्ष नेतृत्व ने राह चलतों को दौड़ाने और अनावश्यक दिक्क न करने का निर्देश दिया है ।

इसके साथ ही मेरी इस धारणा को समर्थन मिला है कि मेरे राज्य की पुलिस अपेक्षाकृत मानवीय , संवेदनशील और अनुकरणीय है । भले ही मैं अपनी सभी गाड़ियों के कागज़ और कील कांटे दुरुस्त कर चुका , लेकिन हल्की सी चूक पर भी अपमानित होने की धुकधुकी एक कानून भीरु एवं सभ्य नागरिक की तरह मुझे भी लगी रहती है । मसलन मेरी 1971 मॉडल की विंटेज जीप पर सीट बेल्ट का कोई प्रावधान ही नही है । क्योंकि वह 40 किलोमीटर से अधिक भागती ही नहीं , और सदैव पहाड़ों पर ही चलती है । पहाड़ों पर सीट बेल्ट बांध कर गाड़ी चलाने का अर्थ है , खाई में गिरने पर अंत तक गाड़ी के साथ लुढ़कते जाना ।

तथापि मैं कबडियों के चक्कर लगा रहा हूँ ताकि कहीं से सीट बेल्ट का जुगाड़ कर औपचारिकता पूरी कर सकूं । कोई मित्र यदि मुझे पुरानी सीट बेल्ट उपलब्ध करा सके , तो यह अंग दान करने जैसा पुण्य होगा ।
साथ ही नागरिकों का भी यह दायित्व बनता है कि वह नियमों का पालन करें ।
हमारे प्रदेश की सड़कों पर सर्वाधिक न्यूसेंस फ़र्ज़ी पत्रकार और छुटभैया नेता फैलाते हैं । यहां इनका बाहुल्य है । वर्तमान सरकार ने कमसे कम दायित्व बांटे हैं , क्योंकि भाजपा भ्रष्टाचार का भी केन्द्रीय करण कर देती है । अर्थात सीमित लोग ही भ्रष्टाचार कर सकें । लेकिन कांग्रेस की गत सरकारों ने , और खास कर नारायण दत्त तिवारी ने इस मामले में गज़ब गन्ध मचाई थी । *आज भी उस समय के कई लोग स्वयं को पूर्व राज्य मंत्री लिखते है । लेकिन समझ लीजिए कि जिस व्यक्ति को राज्यपाल ने शपथ न दिलाई हो , वह फ़र्ज़ी राज्यमंत्री है , और जिस पत्रकार पर अपने नियोक्ता द्वारा प्रदत्त कोई दस्तावेज़ न हो , वह फ़र्ज़ी पत्रकार है । बगैर कोई पद धारण किये भी कोई समाजसेवी हो सकता है , और बग़ैर परिचय पत्र के भी कोई पत्रकार हो सकता है , पर ऐसे लोग गुमनाम रहते हैं । फ़र्ज़ी पत्रकार और राज्यमंत्री का उद्देश्य दलाली और चौथ वसूली होता है ।*

एक बार मेरे मित्र हरीश रावत ने भी मुख्यमंत्री रहते , मुझे ऐसे ही एक फ़र्ज़ी पद की पेशकश की थी । उनका प्रस्ताव सुन मेरा खून खौल गया , और शोक हुआ कि वह मुझे भी फ़र्ज़ी पद के लायक समझते हैं । लेकिन उनसे आने पुराने और अच्छे सम्बन्धों तथा उनके सम्मान का लिहाज़ करते मैंने विनम्रता से ना में गर्दन हिला दी । अपने 40 साल से अधिक के पत्रकारिता कैरियर में मैंने कभी भी अपने वाहन पर प्रेस नहीं लिखाया ।
मैं अपने प्रदेश की पुलिस तथा जनता को बधाई देते हुए आज अपनी विंटेज जीप लेकर पहाड़ को निकल रहा हूँ , जिसके सब कागज़ात पूरे हैं , सिवा सीट बेल्ट के ।