देहरादून। उत्तराखंड में तीसरी सियासी ताकत बहुजन समाज पार्टी का विाानसभा चुनाव में सूपड़ा साफ हो गया है। पिछले तीन चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाली बसपा इस चुनाव में कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाई।
हरिद्वार और उधमसिंह नगर में मजबूत मानी जाने वाली बसपा इस चुनाव में चारों खाने चित हो गई। पार्टी के सबसे मजबूत क्षत्रप सरवत करीम अंसारी भी मंगलौर से चुनाव नहीं जीत पाए। उत्तराखंड में राज्य गठन के बाद बसपा 2002 के चुनाव में सात सीटों पर विजयी हुई।
उस समय बसपा ने यह नारा दे डाला कि उत्तराखंड में बसपा बैलेंस आफ पावर की भूमिका में आएगी। विशेषकर हरिद्वार और उामसिंह नगर में बसपा को बड़ी सफलता मिली। इन्हीं दो जिलों में बसपा ने जनाधार बढ़ाने कीदृष्टि से फोकस किया। इसका नतीजा यह रहा कि 2007 के विाानसभा चुनाव में बसपा की सीटें बढक़र आठ हो गईं। यह अलग बात है कि इस दौरान बसपा के बीच सियासी उठापटक भी बनी रही।
लेकिन 2012 के चुनाव में बसपा को अपेक्षित सफलता नहीं मिली और पाटीज़् हरिद्वार तक ही सिमट गई। हरिद्वार से बसपा के तीन विाायक जीतकर आएए लेकिन बाद में दो विाायकों को बसपा से निष्कासित कर दिया गया। इस बार बसपा को विाायकों की संख्या बढऩे की अपेक्षा थी और सभी सीटों पर बसपा ने प्रत्याशी भी उतारे थे। लेकिनए बसपा एक भी सीट पर जीत दर्ज नहीं कर पाई। इसके संकेत साफ हैं कि उत्तराखंड की राजनीति कांग्रेस और भाजपा के इर्दगिर्द की निकट भविष्य में रहने वाली है। बसपा अब इस झटके से कैसे उभरती है यह उसके लिए बड़ी चुनौती से कम नहीं है।