पहाड़ से लोगों का ही पलायन नहीं हो रहा है, संस्थानों का भी पलायन हो रहा

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  • एन.आई.टी. शिफ्टिंग पर कुछ बातें …….
  • पलायन करवाने वाले संस्थानो का कुम्भ आयोजित करवाएं

– इन्द्रेश मैखुरी
उत्तराखंड में वर्ष 2009 में एन.आई.टी स्थापित करने की केंद्र सरकार ने घोषणा की.इसे पहाड़ में बनाने की भी घोषणा हुई.2011 से यह श्रीनगर(गढ़वाल) में अस्थायी परिसर में चल रहा है.जिस परिसर में यह चलाया जाता है, वह राजकीय पॉलीटेक्निक का है.एन.आई.टी के स्थायी परिसर निर्माण के लिए सुमाड़ी गांव का चुनाव किया गया.इस गांव के ग्रामीणों ने एन.आई.टी निर्माण के लिए सरकार को भूमि दान भी दे दी.पर बीते 9 सालों में बात इससे एक इंच आगे नहीं बढ़ी है.

अब इस एन.आई.टी को ऋषिकेश शिफ्ट करने की बात होने लगी है. बीते दिनों दो छात्राओं के सड़क पार करते हुए दुर्घटना का शिकार होने के बाद, यहां छात्रों ने कई दिन तक कक्षाओं के बहिष्कार करते हुए आंदोलन चलाया.इस आंदोलन के बाद छात्र परिसर छोड़ कर चले गए और उन्होंने कहा कि वे कैंपस शिफ्ट होने तक नहीं लौटेंगे.अब एन.आई.टी के डायरेक्टर ने छात्रों को मेल भेज कर कैंपस के आई.डी. पी.एल. ऋषिकेश शिफ्ट किये जाने पर सहमति होने की बात कही है.

ऊपरी तौर पर देखें तो एन.आई.टी का आंदोलन छात्रों का स्थायी कैंपस को ले कर चला आंदोलन नजर आता है. लेकिन थोड़ा गहराई से देखें तो यह संदेह उत्पन्न होता है कि इस आंदोलन के पीछे कोई और है. ऐसा सोचने की वजह यह है कि किसी भी प्रोफेशनल कोर्स या संस्थान में पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं कक्ष बहिष्कार तो दूर की बात है, अपने शिक्षकों की मर्जी के विरुद्ध एक नारा तक नहीं लगा सकते.लेकिन यहाँ छात्र-छात्राएं कक्षा का बहिष्कार ही नहीं करते बल्कि कैंपस बायकॉट करके घर चले जाते हैं और कोई उन्हें कुछ नही कहता ! क्या वाकई इतने लोकतांत्रिक हैं – एन.आई.टी के डायरेक्टर और शिक्षक गण कि वे छात्रों के आंदोलन के अधिकार को मान्यता देते हुए,उनके आंदोलन को खामोशी से देख रहे हैं ?

निश्चित ही स्थायी कैंपस समेत लाइब्रेरी,होस्टल,लैबोरेटरी, इंडस्ट्री से एक्सपोज़र समेत सब चीजों छात्र-छात्राओं का अधिकार हैं,उन्हें यह मिलनी चाहिए. यह सरकारों का नाकारापन है कि एन.आई.टी जैसे प्रोफेशनल संस्थान के छात्र-छात्राओं को इन सुविधाओं से महरूम किया जा रहा है. लेकिन क्या कैंपस शिफ्टिंग से ये सुविधाएं मिलने लगेंगी ?क्या कैंपस शिफ्टिंग ऐसी जादू की छड़ी है ?निश्चित तौर पर नहीं. इन सुविधाओं को पाने के लिए तो लड़ना ही होगा.स्थायी कैंपस निर्माण हो-यह तो छात्र-छात्राओं की वाजिब मांग है. लेकिन कैंपस शिफ्ट हो,यह छात्र-छात्राओं से ज्यादा एन.आई.टी में काम करने वाले प्राध्यापकों और अधिकारियों की मांग प्रतीत होती है. वे अपनी सुगम स्थल पर नौकरी के लिए छात्रों को न केवल मोहरा बना रहे हैं बल्कि कक्षा बहिष्कार जैसे कदमों के जरिये छात्र-छात्राओं के भविष्य से खिलवाड़ भी कर रहे हैं. अगर ऐसा नहीं तो कैसे मुमकिन है कि एक प्रोफेशनल संस्थान में जहां रजिस्ट्रार के पद पर एक रिटायर्ड कर्नल तैनात है, छात्र कक्षा बहिष्कार से ले कर कैंपस बहिष्कार तक उग्र आंदोलनात्मक कदम उठाते हैं और एन.आई.टी का प्रशासन,ऐसे चुप्पी साधे रहता है कि जैसे कुछ हो ही न रहा हो ?

राज्य और केंद्र में एक ही पार्टी की सरकार है. बकौल मोदी जी यह डबल इंजन की सरकार है. लेकिन इस डबल इंजन की सरकार के बस का ,एक एन.आई.टी के परिसर का निर्माण करवाना भी नहीं है. जब पानी सिर से ऊपर गुजर गया तब मुख्यमंत्री का बयान है कि अभी नगर निकाय चुनावों की आचार संहिता है, आचार संहिता के बाद कैबिनेट में जमीन हस्तांतरण का प्रस्ताव लाएंगे.यह मसला आचार सहिंता के बाद नहीं पैदा हुआ,उससे पहले का है.9 साल से लटका हुआ है,जिसमें लगभग पौने दो साल त्रिवेंद्र रावत और 4 साल से अधिक नरेंद्र मोदी का शासनकाल भी शामिल है. मुख्यमंत्री यदि आचार संहिता की आड़ ले कर इस मामले पर कार्यवाही को टाल रहे हैं तो यह साफ है कि वे अभी भी इस मसले पर कुछ ठोस नहीं करना चाहते हैं.

यह भी एक पहलू है कि पहाड़ से सिर्फ लोगों का ही पलायन नहीं हो रहा है, संस्थानों का भी पलायन हो रहा है. उन्हें पलायन करने के लिए विवश करने या आधार देने का काम सरकारें ही कर रही हैं. त्रिवेंद्र रावत के ही राज में 5 जिलों से राजीव नवोदय विद्यालयों का देहरादून आधिकारिक रूप से पलायन करवाया जा रहा है,20 पॉलिटेक्निक बंद किये जा रहे हैं,300 बंद स्कूलों की जमीनें तो विद्या भारती को देने की योजना बना दी गयी है और 3000 स्कूल तो राज्य बनने के बाद से बंद हो चुके हैं. अस्पतालों के डॉक्टरों से लेकर सरकारी अफसरों और कर्मचारियों तक, सब पलायन कर देहरादून को दौड़ रहे हैं. श्रीनगर(गढ़वाल) से संस्थानों के जाने की बात करें तो एस.एस.बी. की ऑफिसर्स ट्रेनिंग ऐकैडमी , यहां से त्रिवेंद्र रावत जी के सत्ता संभालने के कुछ समय बाद पलायन कर चुकी है. अब जो वहां है, वह सब इंस्पेक्टरों की ट्रेनिंग ऐकैडमी है.

पिछले दिन त्रिवेंद्र रावत सरकार के सुर्खियां बटोरने में माहिर उच्च शिक्षा राज्य मंत्री धन सिंह रावत ने हरिद्वार में ज्ञान कुम्भ करवाया.ज्ञान कुम्भ से क्या ज्ञान प्राप्त हुआ,ये तो मंत्री जी ही जाने,पर यदि वे पहाड़ी क्षेत्रों से पलायन करवाने वाले संस्थानो का कुम्भ आयोजित करवाएं तो यह निश्चित तौर पर बेहद भरा-पूरा होगा.सरकार अपने कर्तव्यों से पलायन कर रही है तथा लोग व संस्थान पहाड़ से पलायन कर रहे हैं.