चम्पावत। भारत नेपाल के मध्य बहने वाली महाकाली नदी पर प्रस्तावित विश्व के सबसे बड़े बांध के निर्माण की कवायद तेज हो चुकी है। कार्यदायी संस्था वापकोस ने मुख्य बांध और अतिरिक्त बांध निर्माण के लिए दोनों स्थानों पर टनल बनाने शुरू कर दिए है। कार्य प्रगति की रिपोर्ट देखने के लिए शनिवार को जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय के सचिव डॉ. अमरजीत सिंह भी पंचेश्वर आने वाले हैं। विभागीय अधिकारियों ने सचिव के भ्रमण की तैयारियां शुरू कर दी हैं।
भारत और नेपाल सरकार ने महाकाली नदी पर करीब 1996 में विश्व के सबसे बड़े बांध का प्रस्ताव तैयार किया था। नेपाल में सरकारों की अस्थिरता के कारण यह महत्वाकांक्षी परियोजना अटकी पड़ी थी। करीब दो साल पूर्व केंद्र में भाजपा सरकार के आने के बाद इस परियोजना ने रफ्तार पकड़ ली थी। बांध निर्माण के लिए नेपाल सरकार ने पंचेश्वर बांध प्राधिकरण भी बनाया है। वापकोस लिमिटेड बांध निर्माण का काम देख रही है।
कार्यदायी संस्था ने करीब एक साल पूर्व नदी के दोनों छोर पर चट्टान की कठोरता मापने के लिए ड्रिलिंग और फिर विस्फोटकों से ड्रिफ्टिंग भी शुरू कर दी थी। बीते अक्टूबर में कार्यदायी संस्था ने तैयार की गई डीपीआर भारत सरकार और पंचेश्वर बांध प्राधिकरण (पीडीए) नेपाल में समिट कर दी थी। अब कार्यदायी संस्था की ओर से टनल बनाने का काम शुरू कर दिया गया है। अब तक मुख्य डैम यानी पंचेश्वर में सात मीटर जबकि अतिरिक्त डैम यानी रुपालीगाड़ में 26 मीटर टनल खोदे जा चुके हैं। वॉपकोस लिमिटेड के अधिकारियों ने बताया कि बांध निर्माण का कार्य तेजी से शुरू कर दिया गया है।
गौरतलब हो कि पंचेश्वर बाँध 315 मी. ऊँचा विश्व में दूसरा सबसे बड़ा बाँध होगा। इस बाँध की क्षमता 6,480 मेगावाट आंकी जा रही है। इस परियोजना पर दो चरणों में काम होना है। पहले 315 मीटर ऊँचा बाँध पंचेश्वर में महाकाली और सरयू नदी के संगम से 2 किमी नीचे बनना है। दूसरे चरण में 145 मीटर ऊंचाई वाला बाँध इससे नीचे महाकाली की अग्रगामी शारदा नदी पर पूर्णागिरी में। बाँध की इस बहुउद्देश्यीय परियोजना में भारत और नेपाल का 134 वर्ग किमी क्षेत्र डूब जाना है। इसमें भी 120 वर्ग किमी का क्षेत्र उत्तराखण्ड का है। सिर्फ 14 वर्ग किमी का क्षेत्र नेपाल का डूबेगा। दोनों ही ओर महाकाली और सहायक नदियों की उपजाऊ तलहटी में बसे प्रमुखतः कृषि पर जीवनयापन करने वाले 115 गांवों के 11,361 परिवार प्रभावित होंगे। ‘टिहरी विस्थापन’ से उबर भी न पाए उत्तराखण्ड के लोगों को एक और बड़े विस्थापन से जूझने की तैयारी करनी है। नेपाल ने अपने प्रभावित क्षेत्र के गांवों के पुनर्वास का एक नक्शा भी तैयार कर लिया है। भारत की ओर से क्षेत्रीय लोगों को ऐसे किसी भी नक्शे की जानकारी नहीं है।