काबीना मंत्री प्रीतम सिंह के जीत की राह नहीं आसान

0
566

बसपा के मैदान में कूदने से कांग्रेस के माथे पर बल

देहरादून । चकराता विधानसभा क्षेत्र में लगातार तीन बार चुनाव जीत चुके प्रदेश की काबीना मंत्री प्रीतम सिंह की राह इस बार आसान नजर नही आ रही है। बसपा के उम्मीदवार के चुनाव मैदान में होेने की वजह से इस बार चकराता सीट पर त्रिकोणीय मुकाबले की संभावनाएं बन रही है। जिससे कांग्रेस को भारी नुकसान पहंुच सकता है। भाजपा प्रदेश प्रवक्ता के प्रयासों से इस सीट पर भाजपा पहले की अपेक्षा कापफी मजबूत स्थिति में बताई जा रही है।

राज्य विधानसभा के पहले आम चुनाव में प्रीतम सिंह चकराता सीट से विजय होकर विधानसभा पहंुचे थे। उसके बाद पिफर दोबारा 2007 में उन्होंने इसी सीट पर अपना परचम लहराया। किन्तु 2007 में चकराता सीट पर उनकी प्रतिद्वंदी के रूप में चुनाव मैदान में उतरी मधु चैहान ने कड़ी टक्कर दी थी। वर्ष 2012 के चुनाव में  भी वे मधु चैहान से मुकाबला करते हुए जीतकर विधानसभा पहंुचे। राज्य में हुए अबतक तीन विधानसभा आम चुनाव में यह देखने को मिला की चकराता क्षेत्र में भाजपा सहित किसी अन्य दल का कोई खास वजूद नही है। जिसके चलते प्रीतम सिंह को जीतने के लिए विपक्षी उम्मीदवारों से कोई खास मुकाबला नही करना पड़ा।

किन्तु इस बार विधानसभा आम चुनाव में  चकराता विधानसभा क्षेत्र के हालत कुछ बदले-बदले नजर आ रहे है। बताया जा रहा है कि चकराता क्षेत्र में दलितों के मंदिर में प्रवेश सहित कई अन्य मामलों से प्रीतम सिंह की छवि काफी प्रभावित हुई। इन मामलों में क्षेत्रीय विधायक की खामोशी अब चुनाव में भारी पड़ती नजर आ रही है। जिसका फायदा उठाकर इस सीट पर बसपा के अपनी सही घुसपैठ बना ली है। बसपा ने इस सीट से दौलत सिंह कुंवर को चुनाव मैदान में उतारा है। भाजपा से टिकट के लिए प्रमुख रूप से पूर्व पंचायत अध्यक्ष मधुचैहान दावेदारी कर रही है।

यदि बसपा के उम्मीदवार के चुनाव मैदान में उतरने से मुकाबला त्रिकोणीय होता है। अगर दलित वोटों का बंटवारा कांग्रेस और बसपा के बीच होता है तो इसका सीधा पफायदा इस सीट पर भाजपा को मिलेगा। क्यों ऐसा समझा जा रहा है कि बसपा सीधे-सीधे कांग्रेस के वोट बैंक पर डाका डालेगी। जिसका सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा। बताया यह भी जा रहा है कि प्रीतम सिंह लगातार तीन बार चुनाव जीतकर विधानसभा जा चुके है। उनके लगातार कार्यकाल के दौरान भाजपा उनकी कार्यशैली पर लगातार सवाल उठाती रही है और मोदी सरकार के केन्द्र में सत्ता पर काबिज होने के बाद उत्तराखण्ड के राजनीतिक हालत भी काफी बदले है। जिसके चलते चकराता क्षेत्र में भाजपा भी कापफी मजबूत स्थिति में नजर आ रही है। उपर से बसपा के चुनाव मैदान में कूदने से कांग्रेस से दलित वोट बैंक खिसकने की काफी उम्मीदे है। कुल मिलाकार चकराता सीट पर इस बार हालात पूरी तरह से प्रीतम सिंह के पक्ष में नही नजर आ रहे।