प्रणव का अब ‘स्थायी इलाज’ जरूरी!

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– उत्तराखंड का विधायक कहलाने का कोई हक नहीं

  • विधायक के कृत्यों से भाजपा की भी  हो रही अच्छी  खासी फजीहत 

योगेश भट्ट 

तमंचे पे ‘डिस्को’ करना, बात बात पर हथियार लहराना, भरी बैठकों में बदसलूकी करना, कहीं भी कपड़े उतारकर अपने शारीरिक सौष्टव का प्रदर्शन करना, विधायकी का रौब गांठना, खुद को पुराना आईएफएस अफसर बताना, बेजुबां पर गोलियां दागना, यह सब कुवंर प्रणव के पुराने शगल है । उत्तराखंड पहली निर्वाचित सरकार के दौर से प्रणव की बेहुदगियों को बर्दाश्त करता रहा है मगर अब वाकई अति हो चुकी है । इस बार तो तमाम हदें पार हो गयी उत्तराखंड का विधायक रहते हुए प्रणव का उत्तराखंड विरोधी चेहरा सामने आया है ।

उत्तराखंड से प्रणव की नफरत का अंदाजा वायरल हो रहे वीडियो में अश्लील शब्दों से साफ लगाया जा सकता है । इस वीडियो पर जनता की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आ रही है, चौतरफा निंदा हो रही है, हर ओर से लानत भेजी जा रही है । इस बहाने त्रिवेंद्र सरकार और भाजपा की भी खासी फजीहत हो रही है । यह सब स्वाभाविक भी है और जरूरी भी, आखिर सवाल राज्य की अस्मिता का जो है । प्रणव की सनक ने इस बार तो सीधे उत्तराखंड के मान सम्मान पर चोट की है । बहुत संभव है कि प्रणव की भाजपा से विदाई भी हो जाए, क्योंकि फिलवक्त ऐसा निर्णय न लेने के पीछे कोई सियासी मजबूरी भी नहीं है । मगर सवाल यह है कि प्रणव को सही ‘सबक’ मिलेगा या नहीं ?

इस बार प्रणव ने जो किया वह कानूनी तौर पर भले ही कोई बड़ा अपराध न हो, लेकिन नैतिक तौर पर प्रणव की हरकत अक्षम्य है । एक विधायक रहते हुए उत्तराखंड को गरियाना सिर्फ प्रदेश और प्रदेश की जनता का ही नहीं बल्कि उस सदन का भी अपमान है, जिसके वह सम्मानित सदस्य है । वायरल हो रहे वीडियो के बाद तो प्रणव को नैतिक तौर पर उत्तराखंड की विधानसभा का सदस्य रहने का भी कोई हक नहीं है । प्रणव से नैतिकता की उम्मीद बेईमानी है, मसला उत्तराखंड की अस्मिता से जुड़ा है इसलिए फैसला इस बार सरकार या सिस्टम के साथ साथ जनता को भी करना होगा ।

जहां तक प्रणव की बेहूदगी का सवाल है तो यह कोई पहली बार नहीं है, और यह भी हकीकत है कि प्रणव अकेला ही नहीं जो उत्तराखंड में ऐश भी काट रहा हो और विरोधी भी हो । लंबी फेहरिस्त है जिसमें राजनेताओं, अफसरों और ठेकेदारों से लेकर खबरनवीश भी शामिल हैं, जो यहां ‘खा’ भी रहे हैं और ‘घुर्रा’ भी रहे हैं । फर्क इतना है कि बाकी सब पर्दे में है और प्रणव ने सभी हदें पार कर दी हैं । सच तो यह है कि सीमायें प्रणव ने पहले भी कई बार लांघी मगर सरकार, सिस्टम और तो और जिस भी राजनैतिक दल में वह रहे, हर कोई हर बार प्रणव की हरकतों की अनदेखी करता रहा l

मगरमच्छ कांड से लेकर पत्रकार को धमकाने तक के बीच तमाम घटनाएं हुई जिसमें प्रणव के खिलाफ एक्शन होना चाहिए था, मगर सियासी संरक्षण के चलते हर बार मामला रफादफा कर दिया गया । सिस्टम और सरकार की कमजोरी हर बार प्रणव की ताकत बनती चली गयी और उसका दुस्साहस बढ़ता गया । मगर इस बार प्रणव की सनक ने उत्तराखंड की अस्मिता पर सीधे चोट की है । वायरल वीडियों में साफ है कि प्रणव ने उत्तराखंड की गैरत को ललकारा है । खुलेआम हथियारों को लहाराते हुए अपनी शान में कसीदे पढ़ते हुए प्रणव ने जिस तरह उत्तराखंड को भद्दे अश्लील शब्दों में गरियाया है , वह उत्तराखंड पर ही नहीं बल्कि उन सियासी दलों के मुंह पर भी तमाचा है जो उसे विधानसभा में भेजने का बंदोबस्त करते रहे हैं । प्रणव ने सियासत को तो शर्मशार किया ही, उस उत्तराखंड की विधानसभा को भी कलंकित किया है जो कोई खैरात नहीं बल्कि तमाम शहादतों और कुर्बानियों का फल है ।

कल्पना भी नहीं की जा सकती कि कोई विधायक उस राज्य के लिए अश्लील शब्दों और भद्दी गालियों का इस्तेमाल कर सकता है, जिसके दम पर वह अपना सीना फुलाये घूम रहा है । प्रणव को कदाचित यह भान नहीं कि जिस उत्तराखंड के लिए वह अश्लील शब्दों का इस्तेमाल कर रहा हैं, उसकी पहचान उसका वजूद उसी उत्तराखंड से है । उसी उत्तराखंड के दम पर उसकी कथित रियासत भी है और सियासत भी । उसी उत्तराखंड के दम पर वह सरकारी सुरक्षा घेरा भी है, जिसके भीतर रहकर वह तांडव मचाए है । एक राज्य और उसकी जनता के लिये कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि उत्तराखंड से मिली सुरक्षा के घेरे में उत्तराखंड के ही सरकारी अतिथि गृह में उत्तराखंड का ही विधायक उत्तराखंड को अपने गुप्तांग पर बैठा रहा है । लानत प्रणव पर ही नहीं उस जनता पर भी है जिसने उसे अपना प्रतिनिधि चुन कर भेजा है । लानत उन सियासी दलों पर भी है जिन्होंने उसे सिर्फ सियासी अंकगणित के फेर में टिकट दिया है ।

अब देखते हैं कि सरकार क्या करती है और जनता क्या करती है ? सरकार चाहे तो बहुत कुछ कर सकती है, प्रणव के बहाने उत्तराखंड के तमाम विरोधियों को सबक दे सकती है । वायरल वीडियो को सरकार और उसका सिस्टम गंभीरता से ले तो प्रणव को शिकंजे में आसानी से लिया जा सकता है । हालांकि वायरल हुए वीडियों के बाद प्रणव ने सफाई दी है, वही कहा जिसकी उम्मीद थी कि यह साजिश है, वीडियो के साथ छेड़छाड़ है । एक बार के लिए प्रणव की बातों पर यकीन कर भी लिया जाए तो सवाल यह उठता है कि छेड़छाड़ हुई भी तो कितनी ?

एक जनप्रतिनिधि के रूप में सार्वजनिक जीवन जीने वाले से इस तरह की हरकतों की उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह जाम छलकाते हुए हथियारों की नुमाइश लगाये या महफिल सजाकर अश्लीलता प्रदर्शित करे । साफ पता चल रहा है कि वायरल वीडियो दिल्ली में उत्तराखंड सदन का है और जितने हथियार विधायक के हाथ में एक साथ दिख रहे हैं वह सभी लाइसेंसी नहीं हैं । इतना ही नहीं वीडियो में कमरे की दीवारों पर टंगे फोटो गवाही दे रहे हैं कि यह ‘सनकी’ विधायक उत्तराखंड सदन में भी स्थायी तौर पर कब्जा जमाये हुए है । उत्तराखंड सदन में रहकर उत्तराखंड को गरियाना मतलब “जिस थाली में खाना, उसी में छेद करना” है । जीरो टालरेंस के जुमले वाली सरकार पर यह बड़ा सवालिया निशान है । सत्ताधारी पार्टी के एक विधायक की यह हरकत अगर सरकार की नजर में क्षम्य है तो यह तय मानिये कि इस प्रदेश के भविष्य की कोई उम्मीद नहीं की जा सकती ।

हालांकि जिस तरह के हालात हैं ,उसमें सरकार से किसी बड़े या सख्त कदम की उम्मीद नहीं की जा सकती । हां, उन ताकतों से जरूर उम्मीद की जा सकती है जिन्होंने एक वक्त में अलग उत्तराखंड के लिए मुलायम सिंह जैसे राजनेता से सीधे टक्कर ली । वो ताकतें जो आज हाशिये पर हैं मगर एक दौर में जो जमकर लड़े भी और जीते भी । उस तरूणाई से उम्मीद की जा सकती है जो इस राज्य के मर्म और उसकी अहमियत को समझ रहे हैं, जिसमें कुछ कर गुजरने का जुनून है। उनसे भी उम्मीद की जा सकती है, बीते डेढ़ दशक में जिनके सपने चकनाचूर हुए हैं ।

कुल मिलाकर प्रणव और उत्तराखंड में रह रहे प्रणव जैसे हर उत्तराखंड विरोधी को बेनकाब किया जाना और सबक सिखाना जरूरी है । इसके लिए चाहे सरकार हो या संगठन किसी को किसी भी हद तक जाना पड़े, जाना चाहिए । उम्मीद है कि इस बार सही समय पर ‘सही चोट’ होगी । हां, यह सनद रहे कि जो अपने राज्य का नहीं हो सकता वही कभी राष्ट्र का भी नहीं हो सकता ।