क्या मुख्यमंत्री की कुर्सी से ”J” के कारण दूर होते रहे Maharaz अब ”Z” के सहारे मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुँच पाएंगे ?

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क्या अब कभी भी और कहीं भी पलटी मार सकते हैं महाराज !

Maharaj ने मुख्यमंत्री बनने के लिए ही कहीं अपना नाम Maharaj की जगह Maharaz तो नहीं किया ?

राजेंद्र जोशी 
उत्तराखंड में हमेशा से खुद के लिए जमीन तलाशने वाले महाराज इन दिनों फिर चर्चाओं में है। यह चर्चाएं इस लिए भी महत्वपूर्ण हैं कि 2021 में उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव जो होने जा रहे हैं। ऐसे में हमेशा की तरह इस बार भी राजनीतिक गलियारों में कयास बाजियों का दौर शुरू हो गया है कि क्या महाराज फिर से कहीं और पलटी मारने वाले हैं ?
उत्तराखंड में 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही। उत्तराखंड में नेताओं और उनके चिंटुओं का एक दूसरे दल में आना-जाना शुरू हो गया है। इस सब के बीच सबसे ज्यादा चर्चा धर्म के साथ-साथ राजनीति में दखल रखने वाले महाराज के नाम को लेकर है जिन्होंने अपने नाम महाराज के अंग्रेजी वर्णमाला में “J” की जगह ”Z” कर दिया है ताकि ज्योतिष विज्ञान के अनुसार अब तक मुख्यमंत्री की कुर्सी से ”J” के कारण दूर होते रहे Maharaz अब ”Z” के सहारे मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुँच सकें जिसके लिए वे वर्षों से सपना संजोए हुए हैं। यह बात तब और पुख्ता हो जाती है जब ”आप पार्टी” के एक नेता ने कुछ दिन पहले एक बयान दिया था कि ”उत्तराखंड का कोई बड़ा चेहरा ही उनकी पार्टी से मुख्यमंत्री का चेहरा होगा”  तो राजनीतिक गलियारों में इस बात पर चर्चा शुरू हो गयी कहीं Maharaj ने मुख्यमंत्री बनने के लिए ही कहीं अपना नाम Maharaj की जगह Maharaz तो नहीं किया ? यानि एक बार फिर क्या महाराज फिर से पलटी मारने वाले हैं ?
सतपाल महाराज पिछले कई दिनों से लगातार दिल्ली आते जाते रहे हैं । हमारे विशेष सूत्रों की बात करें तो,कहा जा रहा हैं कि इन दिनों महाराज बार-बार दिल्ली आकर,संघ के बड़े नेताओं से तो मिलने की कोशिश कर ही रहे हैं। साथ ही अमित शाह और प्रधानमंत्री से मिलने की जुगत में लगे हैं। लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी उन्हें इस दिशा में अभी तक कोई सफलता हाथ नहीं लगी है।
चर्चाओं के अनुसार महाराज ने अपने संमधी और रीवा के महाराजा पुष्पराज सिंह जूदेव के माध्यम से भी प्रधानमंत्री आवास तक पहुंच बनाने में तमाम कोशिशें अब तक कर डाली की हैं। लेकिन इस सब के बावजूद भी उन्हें अभी सफलता नहीं मिल पाई है।
राजनैतिक बुज्झक्कड़ों  का मानना हैं कि प्रदेश के गठन के सवाल को लेकर ही महाराज राजनीति में आए थे। कांग्रेस में रहे और एनडी तिवारी के साथ कांग्रेस (तिवारी) में भी रहे। पौड़ी गढ़वाल से सांसद रहे, केंद्र में मंत्री भी रहे, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव से पहले एक बार उनकी फिर मुख्यमंत्री बनने की लालसा जाएगी और उन्होंने हरीश रावत सरकार को गच्चा दिया और तमाम अन्य नेताओं के साथ भाजपा का दामन थाम लिया लेकिन यहां भी उनकी दाल नहीं गली और वे जिस कुर्सी के लिए लालायित थे वह एक बार फिर उससे दूर हो गए। 
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की केंद्र में पकड़ और अपने विरोधियों को अपने काम और जनता के साथ खड़े होकर निरंतर राज्य हित में काम करने के साथ-साथ दिल्ली से देहरादून तक अपने विरोधियों की चुनौतियों का सामना करने के कारण भी महाराज को अब अपना कद निरंतर कमजोर होता दिख रहा है।
राजनैतिक जानकार मानते हैं कि त्रिवेंद्र रावत चुपचाप जनता के साथ रहकर जनता के लिए काम कर रहे हैं। जबकि उनके विरोधी निरंतर इस प्रयास में लगे हैं कि कैसे त्रिवेंद्र की कुर्सी को हिलाया जाए। जिसके लिए वह लगातार कई तरह से गोसिपबाजियां  फैलाते रहे हैं। कभी कहा जाता हैं कि त्रिवेंद्र रावत को हटाया जा रहा है। कभी कहा जाता हैं,विधायक खुश नहीं है,कभी केंद्र खुश नहीं है। इस तरह की गोसिप के बीच त्रिवेंद्र सिंह रावत निरंतर पहाड़ के जनमानस के साथ खड़े होकर काम कर रहे हैं। इसी का परिणाम हैं कि दिल्ली दौरे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह त्रिवेंद्र रावत की पीठ थपथापते हैं ।
इस सब के बीच अब चर्चा जोरों पर हैं कि त्रिवेंद्र सिंह रावत की कार्यशैली और लगातार बढ़ते जनाधार को देखते हुए महाराज एक बार से पलटी मार सकते हैं ! बताया जा रहा हैं कि पिछले दिनों महाराज दिल्ली दौरे के दौरान अपनी अहमियत बताने के लिए संघ एवं बीजेपी के कई वरिष्ठों से मिले हैं। लेकिन जब महाराज की कहीं बात नहीं बनी तो,बताया जा रहा हैं कि महाराज ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के कई नेताओं से यह कहकर संपर्क किया हैं कि उनके साथ भाजप और कांग्रेस खेमे के कई बड़े नेता खड़े हैं। जो उत्तराखंड में 2021 में होने विधानसभा चुनाव में यह तय करेंगे की किसकी सरकार बननी है।
महाराज के “आप” और “कांग्रेस” के नेताओं से मिलने को लेकर राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि यह सब तो महाराज का पुराना खेल है। उन्हें जिसका पलड़ा भारी दिखता हैं,वह उसी के हो जाते हैं। लेकिन इस बार त्रिवेंद्र रावत को चुनौती देना महाराज को भारी पड़ सकता है। इसकी एक वजह यह भी मानी जा रही हैं कि 2017 में चौबट्टाखाल सीट से विधायक चुने गए महाराज से चौबट्टाखाल की जनता खासी नाराज दिख रही है।
स्थानीय लोगों का कहना हैं कि महाराज ने यहां से चुनाव जीतने के बाद कहा था कि चौबट्टाखाल विधानसभा को पर्यटन मानचित्र पर लाकर रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए ठोस कार्य योजना बनाएंगे। हम इस विधानसभा क्षेत्र को पूरे उत्तराखंड में सबसे बेहतरनी सेवाएं प्रदान करेंगे। चौबट्टाखाल विधानसभा का चहुंमुखी विकास करेंगे। लेकिन पर्यटन मंत्री व चौबट्टाखाल के विधायक महाराज के क्षेत्र में पिछले चार सालों में विकास कार्यों की शुरुआत तक नहीं हुई है, जिससे पूरे क्षेत्र की जनता में उनके प्रति काफी नाराजगी है। यह वजह भी हैं कि पिछले दिनों जब महाराज क्षेत्र के दौरे पर पहुंचे तो उन्हें क्षेत्र की जनता की नाराजगी का सामना करना पड़ा। इसके बाद महाराज ने जनता की नाराजगी की झुंझलाहट अपने अधिकारियों पर जमकर भड़ास निकालकर कम की। यह देखिये वीडियो ….

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चौबट्टाखाल की जनता का कहना हैं कि पूरे कोरोना काला में सतपाल महाराज क्षेत्र से गायब रहे और जब अपने पूरे परिवार के साथ क्षेत्र में पहुंचे तो क्षेत्र के लोगों के कोरोना का तोहफा देकर चले गए। कोरोनाकाल के दौराना जब महाराज का परिवार चौबट्टाखाल पहुंचा था तो कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज, उनके परिवार और स्टाफ के 22 लोगों में कोरोना संक्रमित पाए गए थे। जिसने राज्य की सरकार और शासन के साथ-साथ पूरे चौबट्टाखाल क्षेत्र की जनता को संकट में डाल दिया था। लेकिन रसूख के चलते महाराज ने इस मामले को दबा दिया था। लेकिन अब महाराज का रसूख कहीं काम नहीं आ रहा है।
उत्तराखंड बनने के बाद से सतपाल महाराज ने हमेशा सीएम बनने का सपना देखा जो आजतक पूरा नहीं हुआ। उत्तराखंड में तिवारी सरकार में सतपाल महाराज 20 सूत्रीय कार्यक्रम के अध्यक्ष रहे और 2004 में सांसद का चुनाव भी नहीं लड़ा,फिर 2009 में सतपाल महाराज गढ़वाल सीट से सांसद चुने गए,लेकिन केंद्र में कोई मंत्री पद नहीं मिला और 2014 में कांग्रेस की डोलती नाव देखते हुए दिल्ली में बीजेपी में शामिल हो गए। इसके बाद 3 साल महाराज को चुनाव का इंतज़ार करना पड़ा और फिर 2017 में चौबट्टाखाल सीट से विधायक चुने गए, फिर त्रिवेंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। लेकिन यहां भी वह शुरूआत से त्रिवेंद्र सरकार की उपलब्धियों को लेकर प्रश्न चिन्ह लगाते है,जबकि महाराज को हर बार इसमें मुकी खानी पड़ी है।
अब महाराज एक बार फिर से बार-बार दिल्ली दरबार में लगातार हाजरी बजा रहे हैं। लेकिन त्रिवेंद्र रावत की उपलब्धियों और कार्यशैली के पहाड़ जैसी ऊँची उपलब्धियों के चलते महाराज एक बार फिर से खुद को परास्त होते हुए देख अब अपने पुराने घर ”कांग्रेस” और ”आप” के गलियारों में खुद के लिए मुख्यमंत्री का पद खोज रहे हैं। अब देखने वाली बात यह होगी क्या महाराज को यहां सफलता हाथ लगेगी या एक फिर उनके हाथ निराशा ही लगेगी यह अभी भविष्य के गर्भ में है।