एनआईटी श्रीनगर के शिफ्टिंग मामले में हाईकोर्ट का मुख्य सचिव को नोटिस

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  • 15 मई तक मुख्य सचिव को देना होगा नोटिस का जवाब

देवभूमि मीडिया ब्यूरो

नैनीताल  : उत्तराखंड हाईकोर्ट ने श्रीनगर गढ़वाल में एनआईटी शिफ्टिंग के मामले में हाई कोर्ट का जवाब न देने को लेकर मुख्य सचिव को अवमानना नोटिस जारी किया है। एनआईटी  शिफ्टिंग के विरोध में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने पूर्व में दिए गए आदेश का अनुपालन नहीं करने पर मुख्य सचिव को अवमानना नोटिस जारी किया। कोर्ट ने कहा है कि क्यों ने आपके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाए। कोर्ट ने मुख्य सचिव को 15 मई तक जवाब दाखिल करने के आदेश दिए हैं।

गौरतलब हो कि एनआईटी के पूर्व छात्र जसवीर सिंह ने सोमवार को उत्तराखंड के मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह के खिलाफ अवमानना याचिका दायर की थी। श्रीनगर से एनआईटी को राजस्थान के जयपुर में शिफ्ट करने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर पिछली सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति एनएस धानिक की खंडपीठ ने कहा था कि मामला राजनीति और नौकरशाही के हाथों की कठपुतली बन गया है।

वहीं एक जानकारी के अनुसार राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) के लिए देहरादून में भी जमीन नहीं मिली है। संस्थान के लिए 200 से 250 एकड़ जमीन की जरूरत है, जिसको लेकर शासन ने देहरादून जिले में जमीन उपलब्ध कराने के लिए जिला प्रशासन को कहा था। लेकिन, जिले में ऐसी जमीन नहीं है जो संस्थान के निर्माण के लिए माकूल हो। ऐसे में जिला प्रशासन की ओर से जमीन की अनुपलब्धता संबंधी उत्तर शासन को भेजा गया है।

इससे पहले एनआईटी के लिए श्रीनगर के सुमाड़ी के ग्रामीणों द्वारा निःशुल्क जमीन दे दी गयी थी जिसकी  चौहदी तक बना दी गयी थी , मगर अधिकारियों और एनआईटी प्रबंधन ने अपनी सुगमता को देखते हुए करोड़ों रूपये जमीन की चहारदीवारी होने के बावजूद श्रीनगर में एनआईटी की स्थापना में  रोड़े अटकाने शुरू कर दिए जबकि प्रदेश शासन द्वारा एनआईटी को आईटीआई का भवन दे दिया गया था। वहीं एनआईटी प्रशासन ने आने जाने की सुगमता का हवाला देने के कारण इस प्रस्ताव को रद्द कर दिया गया। इसके बाद दो माह पूर्व इसी जमीन का प्रस्ताव भेजा गया, लेकिन अब भी वहां कई पेंच फंसे हैं। ऐसे में गत 26 अप्रैल को अपर मुख्य सचिव तकनीकी शिक्षा की ओर से देहरादून जिले में जलापूर्ति और आवागमन की व्यवस्था वाली 200-250 एकड़ (1000-1250 बीघा) भूमि का चयन करने को कहा था। इसका जल्द से जल्द प्रस्ताव शासन को भेजने को कहा गया था। जिला प्रशासन ने संस्थान के लिए उपयुक्त भूमि की तलाश की तो पता चला कि जिले में कहीं ऐसी जमीन नहीं है।