एम्‍स दिल्‍ली के निदेशक व केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव को आइएफएस संजीव चतुर्वेदी मामले में जारी हुआ अवमानना नोटिस

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  • संजीव चतुर्वेदी ने 2014 में एम्स में अनियमितता के पकड़े थे 13 मामले 

  • उत्तराखंड हाई कोर्ट ने प्रतिवादियों को 26 जुलाई तक जवाब देने को कहा

  • सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिवादियों पर जुर्माना 25 हजार से  50 हजार किया था 

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

नैनीताल  :  रमन मेग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित आइएफएस संजीव चतुर्वेदी के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार 50 हजार जुर्माना अदा नहीं करने पर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान दिल्ली के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया और केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव प्रीति सूदन को अवमानना नोटिस जारी कर उत्तराखंड हाई कोर्ट ने 26 जुलाई तक जवाब देने को कहा है। उत्तराखंड हाई कोर्ट ने कहा है कि क्यों न आपके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाय।

गौरतलब हो कि विगत दिनों आइएफएस संजीव ने कैट की कोर्ट में दो प्रार्थना पत्र दाखिल किए थे। एक में उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार द्वारा उनकी चरित्र पंजिका में किए गए जीरो अंकन मामले में दिया हलफनामा झूठा है। संजीव ने इस मामले में आपराधिक केस चलाने का आदेश पारित करने की फरियाद की है, जबकि दूसरे में उन्होंने एम्स दिल्ली में घपलों का उल्लेख किया है। साथ ही कहा कि घोटालों को सार्वजानिक करने और उनपर अंकुश लगाने की वजह से उन्हें निशाना बनाया गया।

संजीव चतुर्वेदी के अनुसार 2014 में उनके द्वारा एम्स में अनियमितता के कुल 13 मामले पकड़े गए थे। जिसके बाद ही प्रतिशोधात्मक कार्रवाही के चलते संजीव को एम्स से हटा दिया गया। अब कैट की कोर्ट ने दोनों मामलों में जवाब दाखिल करने के आदेश पारित किए हैं।

हाईकोर्ट ने पिछले साल संजीव की एसीआर में जीरो अंकन को प्रतिशोधात्मक कार्रवाई बताते हुए 25 हजार जुर्माना लगा दिया था। इस आदेश को केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को चुनौती दी तो सुप्रीम कोर्ट ने ना केवल हाईकोर्ट का आदेश को सही ठहराया बल्कि जुर्माना 25 हजार से बढ़ाकर 50 हजार कर दिया। इसके बाद संजीव द्वारा 26 जून को हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की गई थी।

न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने मामले को सुनने के बाद एम्स निदेशक व केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव को अवमानना नोटिस जारी किया।

उल्लेखनीय है कि आइएफएस संजीव चतुर्वेदी के चरित्र पंजिका पर जीरो अंकन का मामला कैट में विचाराधीन है। कैट चेयरमैन संजीव के केस को दुर्लभ श्रेणी का बता चुके हैं। साथ ही वादी को दूसरे सक्षम न्यायालय में वाद दायर करने व रजिस्ट्रार को उन्हें केस से संबंधित फाइल लौटाने के निर्देश हाल में दे चुके हैं। पिछले साल जुलाई में कैट चेयरमैन न्यायमूर्ति एल. नरसिम्हन रेड्डी ने मैग्सेसे पुरस्कार विजेता संजीव के सीआर से संंबंधित नैनीताल बेंच में चल रही सुनवाई को छह माह के लिए स्थगित कर दिया था।

बीते साल 21 अगस्त को नैनीताल हाई कोर्ट ने आदेश को रद करने के साथ ही केंद्र सरकार पर 25 हजार जुर्माना लगा दिया था। एम्स दिल्ली ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की। सर्वोच्च न्यायालय ने नैनीताल हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए केंद्र पर 25 हजार जुर्माना और लगा दिया था। वहीं 20 फरवरी को हाई कोर्ट ने कैट चेयरमैन के खिलाफ अवमानना नोटिस जारी किया था। इस नोटिस के खिलाफ जस्टिस रेड्डी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। 11 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना नोटिस पर तीन माह के लिए रोक लगा दी। 29 मार्च को जस्टिस रेड्डी ने खुद को इस मामले से अलग करने का फैसला किया।