एनआइटी श्रीनगर मामले में हाई कोर्ट हुई सख्‍त

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  • सरकार के खिलाफ कार्यवाही करने के आदेश
  • NIT राजनीति और ब्यूरोक्रेट के हाथों की बनी कठपुतली
  • सीसमिक जोन के आधार पर तो पहाड़ों में कोई भी संस्था नहीं आ पाएंगे

देवभूमि मीडिया ब्यूरो

नैनीताल । मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति एनएस धनिक की खंडपीठ ने नाराजगी जताते हुए 27 मार्च को पहाड़ अथवा मैदान में कैंपस बनाने के लिए चार जगह चिन्हित कर न्यायालय को बताने का आदेश दिया था। इसके बावजूद इस मामले में अभी तक कोई कार्यवाही नहीं होने पर हाई कोर्ट ने आदेश की अवमानना करने पर राज्य सरकार पर कार्यवाही शुरू करने को कहा है।

न्यायालय ने कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा कि राज्य सरकार की सुस्ती के चलते प्रतिष्ठित संस्थान को उत्‍तराखंड से बाहर ले जाया जा सकता है । कोर्ट ने इस मामले में सरकार के खिलाफ याचिकाकर्ता को अवमामना की याचिका दायर करने को कहा है। न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकार को भी फटकार लगाई है। खण्डपीठ ने पूर्व में नए छात्रों के प्रवेशों के बारे पूछते हुए 24 अप्रैल तक पहाड़ी और मैदानी क्षेत्रों में से चार स्थानों को चयनित कर न्यायालय को सूचित करने को कहा था लेकिन सरकार की सुस्ती के कारण ये नहीं हो सका।

खण्डपीठ ने आज श्रीनगर से एनआईआईटी को राजस्थान के जयपुर में शिफ्ट करने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर नाराज होते हुए कहा कि मामला राजनीति और ब्यूरोक्रेट के हाथों की कठपुतली बन गया है। खण्डपीठ ने पूरे राज्य के भूगर्भीय दृष्टि से संवेदनशील होने के जवाब के कारण सरकार से कई सवाल किए, याचिकाकार्त ने न्यायालय को बताया कि आईआईटी रुड़की और सीपी डब्ल्यूडी की विशिष्ट आपत्ति जताई गई थी लेकिन महाधिवक्ता के जमीन से सम्बंधित बयान से कोर्ट को संतुष्ट नहीं है। अभी तक छात्रों के एडमिशन का भी क्लियर नहीं है। दो रिपोर्टों ने वहां निर्माण की अस्वीकृति दे दी है । उत्तराखण्ड सीसमिक जोन है इस आधार पर तो पहाड़ों में कोई भी संस्था नहीं आ पाएंगे नही बनाये जा सकेंगे।

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