NHAI के अधिकारियों को कहीं पत्र के दबाव में SIT बचा तो नहीं रही !

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  • NHAI के अफसरों की भूमिका पर आयुक्त ने जांच में उठाए थे सवाल
  • जबकि NHAI के अफसरों के FIR में भी हैं नाम

देहरादून। सूबे के बहुचर्चित एनएच 74 मुआवजा घोटाले में एनएचएआई के अधिकारियों को एफआईआर में आरोपी तो बनाया गया था, लेकिन एसआईटी की जांच में अभी तक कहीं भी एनएचएआई के अफसर आरोपी नहीं बन सके हैं। एसआईटी की जांच के बाद अब यह सवाल उठने लगे हैं कि कहीं एनएचएआई के अफसरों को बचाने में  कहीं केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का वह पत्र तो आड़े नहीं आ रहा जिसमें केंद्रीय मंत्री ने राज्य सरकार को लिखा था कि सीबीआई जांच से अधिकारियों की परफॉर्मेंस प्रभावित होगी। वहीँ इस मामले में कुमाऊं कमिश्नर पांडियन की उस जांच को भी एसआईटी ने दरकिनार कर दिया लगता है जिसमें उन्होंने एनएचएआई के अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल उठाये थे।

गौरतलब हो कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सूबे के मुख्यमंत्री की कुर्सी सँभालते ही एनएच 74 मुआवजा घोटाले के सामने आने के बाद तुरंत ही सीबीआई जांच कराने का ऐलान किया था। लेकिन इसके बाद केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के मुख्यमंत्री को भेजे पत्र के अचानक कहीं से लीक हो जाने बाद राज्य सरकार ने अपने कदम पीछे खींच लिए थे और मामले में राज्य सरकार ने सीबीआई जांच की अनुशंषा के बाद एसआईटी जांच शुरू करने की घोषणा कर दी थी , चर्चा है कि केंद्रीय मंत्री गडकरी नहीं चाहते कि इस प्रकरण में एनएचएआई का कोई भी अधिकारी फंसे।

हालाँकि मामले की जांच के बाद तत्कालीन कुमाऊं कमिश्नर  डी. सेंथिल पांडियन ने  एनएचएआई के अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल उठाए थे, मगर एसआईटी द्वारा अब तक की गई जांच के  बाद यह साफ़ प्रतीत हो रहा है कि इस जांच से एनएचएआई के अधिकारियों को एसआईटी ने अभी तक शामिल ही नहीं किया है यानि गडकरी के उस पत्र का पूरा खयाल एसआईटी कर रही हैकि मामले  में कोई एनएचएआई का अधिकारी न फंसे । हालाँकि कुमायूं कमिश्नर ने अपनी जांच रिपोर्ट में साफ लिखा है कि ”प्रश्नगत प्रकरणों में विशेष भूमि अध्यप्ति अधिकारी नैनीताल व ऊधमसिंह नगर द्वारा पारित अभिनिर्णय व  संशोधित अभिनिर्णय के आधार पर कृषि भूमि से अकृषिक भूमि की प्रकृति के आधार पर जो मुआवजा निर्धारित कर वितरित किया गया है, उसमें सरकारी राजस्व में अत्याधिक वृद्धि हुई है, परंतु इन सरकारी अभिवृद्धि के विरुद्ध एनएचएआई ने आर्बिटेशन में अथवा जिला न्यायालय में अपील दाखिल नहीं की गई। यह भी इंगित किया गया है कि इतनी अधिक राजस्व अभिवृद्धि दृष्टिगत रखते हुए एनएचएआई को अधिनियम प्रावधानिक उपचारों का प्रयोग किया जाना उचित रहता।”

वहीँ यदि एनएच 74 घोटाले की जांच रिपोर्ट का अध्ययन किया जाए तो यह बात भी साफ़ तौर पर सामने आती है कि बिना एनएचएआई के अधिकारियों की मिलीभगत के इतना बड़ा घोटाला हो ही नहीं सकता था। यह बात भी जांच रिपोर्ट के बाद सामने आती है कि मुआवजा के मामले में यदि एसएलएओ ने यदि कई गुना अधिक प्रतिकर तय किया था तो एनएचएआई ने आर्बिटेशन अथवा जिला न्यायालय में अपील क्यों नहीं की? यह बड़ा सवाल आज भी सामने खड़ा है। हालांकि मामले में एसआईटी ने  शुरुआती जांच के दौरान एनएचएआई के कुछ अधिकारियों से अवश्य पूछताछ की , लेकिन उन्हें अभी तक किसी भी जांच रिपोर्ट में एसआईटी ने आरोपी नहीं बनाया है।

मामले की जांच में यह बात भी सामने आयी  है कि जिसका घर लूट रहा था वह चुपचाप बैठा रहा यानि कहीं न कहीं  एनएचएआई के अधिकारियों की इस घोटाले में संलिप्तता रही है अन्यथा एनएचएआई  ने इसका विरोध क्यों नहीं किया क्योंकि धनराशि तो एनएचएआई को अपने खाते से रिलीज करनी थी और  मुआवजा एसएलएओ को तय करना था, वहीँ  यह सवाल भी सामने आ रहा है कि यदि बैकडेट में जमीनों की 143 हुई तो उस वक्त भी एनएचएआई ने विरोध क्यों नहीं किया। कमिश्नर की जांच रिपोर्ट में कहा गया था कि ”प्रश्नगत कार्यवाहियों में काश्तकार, सब डिवीजन, तहसील, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण एवं विशेष भूमि अध्यप्ति अधिकारी कार्यालय के अधिकारियों व कर्मचारियों की संलिप्तता से ऐसा प्रतीत होता है कि यह कार्य सिंडीकेट रैकेट के रूप में कार्य करते हुए सुनियोजित तरीके से दुरुभि संधि कर सरकारी राजस्व का दुरुपयोग सुनिश्चित करना प्रकाश में आया है।”

कुल मिलाकर यहाँ यह बात कमिश्नर की जांच के बाद सामने आयी  है कि इस पूरे प्रकरण में  दर्ज एफआईआर में एनएचएआई के अफसरों को आरोपी बनाया गया था, लेकिन एसआईटी की विवेचना में अभी तक एनएचएआई के अधिकारियों को क्यों नहीं बराबर का आरोपी बनाया यह सवाल अभी भी चर्चा का विषय बना हुआ है । चर्चा तो इस बात की भी  है कि यह सब केंद्रीय मंत्री द्वारा एनएचएआई के अफसरों को बचाने वाले पत्र के दबाव के चलते एनएचएआई के अधिकारियों को एसआईटी इसी लिए जांच में शामिल नहीं कर रही है, जबकि वे भी इस घोटाले में बराबर के दोषी बताये जा रहे हैं ।