गुरु-शिष्य परंपरा वर्तमान सन्दर्भ में आज हम कहां हैं खड़े जरा गौर कीजिये 

कमल किशोर डुकलान
भारत वर्ष में आज भारतीयों की ये हालत है कि अगर कोई भारतीय संस्कृति के पक्ष में खड़ा होता है तो उसे साम्प्रदायिक रंग दिया जाता है। हिन्दू धर्म की पैरवी करने वाले को विकास का विरोधी कहा जाता है। पाश्चात्य संस्कृति से अगर नुकसान हो रहा होता है तो भी आधुनिक लोग इसे देखकर भी अनदेखा कर देते हैं जबकि भारतीय संस्कृति से अगर फायदा होता है तो उस पर तथाकथित सेकुलरों द्वारा साम्प्रदायिकता की संज्ञा दी जाती है। पाश्चात्य संस्कृति का अगर सबसे ज्यादा प्रभाव आज तकनीकी शिक्षा,चिकित्सा शास्त्र पढने वाले छात्रों पर पङा है।
भारतीय संस्कृति में गुरु का बड़ा सम्मान होता था। जबसे शिक्षा में पाश्चात्य शिक्षा और संस्कृति का समावेश हुआ है, तब से छात्र गुरु शब्द का अर्थ ही भूल गये हैं। आज एक गुरु सिर्फ टीचर बनकर रह गया है। जिनका काम सिर्फ बच्चों को पढाना है। गुरुकुल शिक्षा प्रणाली में गुरु अपने ज्ञान द्वारा छात्रों के मन में किसी विशेष विषय के प्रति रुचि पैदा करता है।अगर छात्र को प्राथमिक कक्षा तक अपने गुरु के द्वारा सही मार्गदर्शन मिल जाए तो आगे की कक्षाओं में उसे समस्या उत्पन्न नहीं होगी।
वर्तमान समय में गुरु और शिष्य की परंपरा समाप्ति पर है। शिष्य गुरु का रिश्ता सिर्फ किताबी शिक्षा तक रह गया है। प्राचीन समय में गुरु अपने शिष्य के ज्ञान की परख के लिए उसे खुद प्रायोगिक या लिखित कार्य देते थे। शिष्य की सृजनशीलता की परख भी गुरु की देखरेख में होती थी। आजकल तो ज्ञान या यूँ कहें किताबी ज्ञान तो एक शिक्षक देता है जबकि परीक्षा दूसरा शिक्षक करता है और जाँच करने के लिए तीसरा शिक्षक होता है जिसे ये नहीं मालूम होता है कि जिस छात्र की शिक्षा का मूल्यांकन किया जा रहा है वो असल मेँ शिक्षित है या नकल करके लिखा है। यहाँ बिना पढा लिखा भी नकल करके पास हो सकता है क्योंकि पढाने वाला मूल्याँकन नहीं करता है।

सरकारी स्कूल में और कम पैसे में पढ़ने में अभिभावकों को  और उनके नौनिहालों को शर्म आती है पर कोचिंग संस्थाओं में ये अपनी जमीन बेचकर जरुर पढ़ाना चाहेंगे, कोचिंग संस्थाओं में सिर्फ पैसे का खेल होता है बाकि कुछ नहीं।

आज जगह जगह कोचिंग संस्थाएँ कुकुरमुत्तों की तरह उग गई हैं। विद्यार्थी विद्यालय में कम और कोचिंग संस्थाओं में ज्यादा नजर आने लगे हैं। इनकी फीस भी बहुत ज्यादा होती है। इन कोचिंग संस्थाओं में पढे हुए सभी विद्यार्थी सफल नहीं होते पर फिर भी विद्यार्थियों के मन में इनके प्रति एक विशेष प्रकार का लगाव है। स्कूल में कम पैसे में पढने में इनको शर्म आती है पर कोचिंग संस्थाओं में ये अपनी जमीन बेचकर जरुर पढना चाहेंगे। कोचिंग संस्थाओं में सिर्फ पैसे का खेल होता है बाकि कुछ नहीं। जितना छात्र महंगे कोचिंग संस्थान में पढकर नम्बर लाते हैं वहीं अगर छात्र स्कूल में अच्छा मन लगाकर पढ़ेंगे तो विद्यालय में भी कोचिंग सेंटर के बराबर नम्बर आएँगे।
कोचिंग संस्थानों से जब छात्र बाहर निकलता है, तो पैसे कमाने के तरीके लेकर निकलता है, ना कि ज्ञान लेकर। आधूनिक शिक्षा संस्थानों से ज्ञान को तो एक योजना के तहत बाहर निकाल दिया है और इसे महज साधू संन्यासियों की बपौति बनाकर रख दिया है। ज्ञान छात्र के अन्तरात्मा को जागृत करता है। जो ज्ञान छात्र के अन्तरात्मा को जागृत न करें वो ज्ञान नहीं अपितु बाह्य जगत में तिकड़म  भिड़ाकर किसी तरह दूसरों का खून चूसकर दी जाने वाली शिक्षा है। गुरु हमेशा आध्यात्मिक और आत्मिक उन्नति प्रदान करता है। जबकि आधुनिक शिक्षक छात्र को किताबी ज्ञान के साथ सिर्फ आर्थिक उन्नति कैसे की जाए, यही सिखाते हैं।
आज जरुरत एक ऐसी शिक्षा पद्धति लागू करने की है जो छात्रों की मानसिक उन्नत्ति में सहायक हो और गुरु-शिष्य के रिश्तों को बनाये रखें। भारतीय शिक्षण पद्धति और गुरुकुल शिक्षा प्रणाली छात्र के बहुमुखी विकास लिए सर्वोत्तम उपाय है। गुरुकुल शिक्षा प्रणाली से बच्चों की शिक्षा कम ही नहीं होगी अपितु उनका मानसिक और सामाजिक विकास ज्यादा होगा। और अगर किसी का मानसिक और सामाजिक विकास उन्नत हो तो उसे सफलता के झण्डे गाड़ने से कोई नहीं रोक पाएगा।