नरु-बिजुला की 500 साल पुरानी प्रेम कथा आज भी लोकप्रिय

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नरु प्रेमिका बिजुला को सहमति से अनाज के बक्से में डख्याट गांव से तिलोथ गांव लाया था

ऐतिहासिक है तिलोथ गांव (उत्तरकाशी) में नरु – बिजुला का घर

ज्ञानसू लग्यूं घुनडुओं बाँधियों राँसु नरु-बिजोला
नर दा बिजु द्विई भाई होला नरु- बिजोला

कंकव्वी जाण्णा बाड़ाहाटा का थौलु नरु -बिजोला
तख त ओणि सौंजडुडियों की बांध नरु -बिजोला
तुंइन त लुइणी बड़ा नथौला वाली नरु -बिजोला

यह गढ़वाली गीत शूरवीर नरु बिजोला पर आधारित है,हम इसे गा – गा कर बड़े हुए हैं।

उत्तरकाशी के तिलोथ गांव के नरु -बिजोला की कहानी का इतिहास आज से 500 साल पहले उनके इस जीवंत इमारत में छुपा है। हकीकत में 1991 का विनाशकारी भूकम्प भी इस बुलंद इमारत का कुछ नहीं बिगाड़ पाई।

बाड़ाहाट मेला में नरु -बिजोला का किस्सा बहुत प्रचलित हुआ 500 साल पहले की बात है बाड़ाहाट (उत्तरकाशी ) के थौलू (मेले) में दूर दूर से लोग आते थे। यमुना घाटी के लोग भी पैदल गंगनानी से नंद गांव – सिंगोट – नाकुरी होकर बाड़ाहाट पहुँचते थे। तब कुल 18 मील पैदल था। उस जमाने के लोगों के लिए 18 मील कुछ भी नहीं होता था। मोटर वाहन नहीं होते थे।

बाड़ाहाट मेले में यमुना घाटी में स्थित डख्याट गांव की एक सुंदर युवती बिजोला भी पहुँची थीं। इधर तिलोथ गांव से दोनों शूरवीर नरु-और उसका भाई भी थौलू में पहुँचे। वहाँ घूमते- घूमते उनकी नज़र एक सुंदरी पर पड़ी। और वहीं टिक कर रह गई। डख्याट गांव की उस बांद बिजोला की तरफ से भी प्रेम का स्वागत हुआ था। दोनों भाइयों ने उसका गांव का नाम पूछा, साथ रहने की कसमें खाई। चूंकि बिजोला को गांव और यमुना घाटी के लोगों के साथ मेले के बाद गांव लौटना था। जैसे की परंपरा है। बाड़ाहाट में तय हो गया था कि, दोनों भाई डख्याट गांव आएंगे। और भगा कर अपनी प्रेमिका बिजुला ले जाएंगे। जो कि ऐसा ही हुवा।

नरु- और उसका भाई दोनों शूरवीर भाइयों ने इस योजना पर काम किया। वह तिलोथ गांव से अनाज का बक्शा ले गए थे। जिसमें बिजुला युवती को लाना था। रात के वक्त युवती को योजना के मुताबिक बक्शे में नरु और भाई तिलोथ गांव ले आये। अगले दिन यमुना घाटी में इस घटना से लोगों में गुस्सा पनप उठा। गुस्से की चिन्गारी उठ खड़ी हुई। यमुना और गंगा घाटी में युद्ध के हालात पैदा हो गए। इधर से नरु- और भाई को इस दुस्साहस घटना से सबक सिखाने के लिए कई लोग चल पड़े। इसकी नरु- भाई को आहट मिल गई थीं। वह भी सुंदरी बिजुला के बचाव में योजनाओं को मूर्त रूप देने लग गए थे ।

यमुना घाटी के ग़ुस्साये लोगों के नरु- भाई के तिलोथ गांव पर हमला करने की योजना से नरु- भाई ने उदालका गांव (डुंडा ) वर्तमान में जो भारत के आर्मी चीफ श्री विपिन रावत का मामाकोट भी है। में युवती बिजुला को छिपा दिया। पूरा अन्न का प्रबंध किया। गंगा घाटी के और लोग भी नरु- और भाई के इस कारनामे से सहमति जता रहे थे। यही कारण था उनका उन्हें साथ मिला। लेकिन उनकी आत्मा जिनकी बिजुला बेटी को नरु- और भाई भगा के लेकर गए थे उन के दिल में क्या बीत रही होगी ? इस विंदु की परवाह किये बगैर नरु प्रेम में पागल हो गया था। उधर यमुना घाटी के आक्रोशित लोगों ने गंगनानी से ऊपर के रास्ते के जंगलों में कई रातें काटी। नरु को जमीन पर लाने की रणनीति बनाई।

युवती बिजोला को उदालका गांव शिफ्ट करने के बाद नरु- और उसका भाई भागीरथी नदी की ओर बढे। वहां उन्होंने एक पुल को तोड़ डाला । ताकि ग़ुस्साया जत्था उस पार से उदालका गांव न आ पाये। फिर नरु- और उसका भाई आगे बढ़े। बिजुला गांव पहुँचे। उससे तीन किलोमीटर ऊपर सिल्याणा गाँव पहुँचे। नरु ने इसी ऊंचाई पर मोर्चा बांधने का निश्चिय किया। नरु ने तुंरत गांव के लोगों की मदद से एक चबूतरा बनाया । यह चबूतरा आज भी है। इसको लोग पूजते हैं। यहाँ मेला लगता है और देवता नाचाता है। नरु – बिजुला के अमर प्रेम के मुद्दे पर सुबह यमुना घाटी और गंगा घाटी के लोगों की लड़ाई होती है। यमुना घाटी के लोग बड़ी चुनौती देते हैं। लेकिन नरु- और उसका भाई अपनी इस प्रेम कहानी में विजय पाते हैं। फिर नरु युवती बिजुला को तिलोथ गांव लाते हैं। फिर उनकी आगे की पीढ़ी चलती है। उनकी बुलंद इमारत आज भी उनकी वीरता जैसी खड़ी है। 500 साल पहले के इस ऐतिहासिक घटना के किस्से कहानियों, पवाड़ो, कथाओं, गीतों में मिलते हैं।

डख़्याट गांव से अनाज के बक्से में युवती बिजोला को पहाड़ी की पगडंडी से नरु और उसका भाई ले गए थे। जिससे यमुना घाटी और गंगा घाटी से युद्ध के हालात पैदा हो गए थे। तब पगडंडी थीं। आज गंगनानी से नंद गांव 5 किलोमीटर मार्ग बन गया है। गंगनानी बड़कोट से 8 किलोमीटर आगे यमुनोत्री हाईवे पर है। इधर गंगा घाटी नाकुरी से सिंगोट 10 किलोमीटर तक सड़क निर्माण हो गया है। बीच जंगल का 30 किलोमीटर का पैच निर्माण को बचा है।

सभी के पूर्वजों ने यमुनोत्री, गंगोत्री यात्राएँ इसी पैदल मार्ग से की। जिससे नरु- ने भाई की मदद से अपनी बांद बिजुला को ले गए थे। यदि यह बन जाता है तो गंगोत्री- यमनोत्री धाम बहुत पास हो जाएंगे। लोगों को और सहूलियत मिलेगी।

यमुना घाटी में स्थित डख़्याट गांव , गांव वालों के द्वारा लगाया गया सघन जंगल के लिए मशहूर है। गांव वालों के बांज के इस जंगल से गांव में पानी ही पानी है। यह आदर्श गांव है। यह राजगढ़ी से एक किलोमीटर नीचे बसा है। नीचे यमुना नदी है। उस पार कुछ किलोमीटर दूर बड़कोट बाजार है। राजगढ़ी रियासत की गर्मियों की राजधानी थीं।

शीशपाल गुसाईं की फेसबुक वाल से साभार

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