पलायन आयोग ने की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए सिफारिशें

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पर्वतीय जिलों के लिए महिलाओं का प्रतिनिधित्व 50 फीसदी से हो अधिक 

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

देहरादून  : ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग की टीम द्वारा राज्य में ग्राम्य विकास के क्षेत्र में योजनाओं का विश्लेषण करने के बाद एक रिपोर्ट मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड त्रिवेन्द्र सिंह रावत को प्रस्तुत की गयी। आयोग द्वारा तैयार की गयी 5वीं रिपोर्ट में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए सिफारिशें की गयी हैं ताकि पलायन को कम किया जा सके।

ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग के उपाध्यक्ष डा. एस.एस. नेगी द्वारा बताया गया कि इस रिपोर्ट में मुख्य सिफारिशें इस तरह हैं …..

1. एम.ए.एन.आर.ई.जी.ए के तहत 50 प्रतिशत से अधिक लाभार्थी महिलाएं हैं, ध्यान केंद्रण उन कार्यों पर होना चाहिए जो महिलाओं के लिए अतिरिक्त आय सृजित कर सकें। समान अवसर और भागीदारी सुनिश्चित करके सभी जनपदों के लिए महिलाओं का प्रतिनिधित्व 50 फीसदी से अधिक बनाए रखने के प्रयास किए जाने चाहिए। महिलाओं के कौशल विकास को प्राथमिकता दी जानी चाहिए ताकि वे कुशल श्रमिकों के रूप में लाभ उठा सकें न कि अकुशल श्रमिकों के रूप में।

2. फसलों को बंदर और जंगली सूअर जैसे जानवरों द्वारा नुकसान होने की समस्या है। कुछ ब्लॉक में जंगली सूअरों से सुरक्षा के लिए दीवारें बनाई जा रही है, सभी जनपदों में ऐसा किया जाना आवश्यक है। बंदरों से फसलों की सुरक्षा के लिए संपत्तियां बनाने के लिए एक योजना वन विभाग की सहायता से तैयार की जानी चाहिए।

3. राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल और सिंचाई दोनो के लिए पानी की कमी एक बडी समस्या बनकर उभर रही है। इस समस्या से निपटने के लिए इस योजना के तह्त कार्यों का संयोजन किया जा सकता है।

4. उत्तराखण्ड मे औषधीय और सुगंधी पौधों की अच्छी क्षमता है लेकिन वर्तमान में वह राज्य में एक लाभकारी गतिविधि के रूप में नहीं उभर रहा है। राज्य में इसकी वास्तविक क्षमता का लाभ उठाने के और इसे महत्वपूर्ण आजीविका उत्पादन गतिविधि में से एक में बदलने के प्रयास किए जाने चाहिए।

5. स्वयं सहायता समूहों द्वारा बनाए गए उत्पादों के लिए गुणवत्ता निगरानी और प्रमाणन किया जाना चाहिए। इससे मानकीकरण होगा और सार्वभौमिक बाजार खुलेगा।

6. विपणन एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उत्पादों के विपणन और खुदरा के लिए गतिशील ऑनलाइन प्लेटफॉर्म विकसित किए जाने चाहिए। एक सोशल मीडिया रणनीति विकसित की जानी चाहिएं सैनिटरी पैड बनाने के लिए स्वयं सहायता समूह विकसित किए जा सकते हैं। प्रत्येक जनपद में एक इकाई की स्थापना की जा सकती हैं क्योंकि यह मासिक धर्म स्वच्छता की ज्वलंत समस्या और आजीविका अवसर दोनो हैं।

7. बिखरे हुए पर्वतीय क्षेत्रों में संयोजन के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण किया जाना आवश्यक है, ताकि सामूहिक उत्पादन में सुधार किया जा सके। संयोजन के माध्यम से बनाई गई संपत्तियों का अनुश्रवण किया जाना चाहिए और उचित रखरखाव किया जाना चाहिए ताकि वे क्षेत्र में फायदेमंद साबित हों।
किसी भी व्यवसाय को पनपने के लिए एक सुदृढ आपूर्ति श्रृंखला अनिवार्य है। उसे कार्यात्मक बाजार लिंकेजिस और परिवहन सुविधाओं के साथ सुदृढ बनाया जाना चाहिए।

8. रिपोर्ट में परियोजना की कई सफल कहानियों का पहले उल्लेख किया गया है। बडी सफलताओं में से एक है बागेश्वर में मोनाल घाटी की महिला सदस्यों द्वारा बनाया गया मंडुआ बिस्किट जिसकी मांग बढी है। इस उपक्रम की सफलता का प्रधानमंत्री के रेडियों कार्यक्रम मन की बात में भी वर्णन किया गया था। स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों और उत्पादन के अपस्केलिंग के साथ नवाचार करके इस तरह के और भी रास्तें तलाशे जाने चाहिए।

9. पर्वतीय क्षेत्रों के लिए आवश्यकता आधारित प्रशिक्षण की कमी जारी है। कौशल विकास को संबोधित करने के लिए एक अधिक व्यापक क्षेत्र विशिष्ट कार्यनीति विकसित की जानी चाहिए।
कौशल विकास और आजीविका आवश्यकताओं के बीच स्पष्ट लिंक स्थापित करना आवश्यक है।
बेहतर लाभ प्राप्ति के लिए उत्पादकता और गुणवत्ता को बढावा देने के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी को स्वदेशी/पारंपरिक कौशल के साथ जोडना जरूरी है।

10. उन जनपदों पर अधिक ध्यान केन्द्रित किया जाना चाहिए जो नकारात्मक अथवा कम विकास दर्शाते हैं। संस्करण केन्द्रों, पैकेजिंग और नर्सरी विकास के लिए स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढावा देने की क्षमता रखने वाले कौशल प्रदान किए जाने चाहिए।

11. पर्वतीय जनपदों में ग्राम विकास अधिकारी के रिक्त पदों की संख्या मैदानी जनपदों और व्यक्तिगत रूप की तुलना में अधिक है। अल्मोडा में 50ः अधिक पद, चंपावत में 50ःए उत्तरकाशी में 40ः और बागेश्वर में 38ः पद खाली है। यह फील्ड स्टाफ (जमीनी स्तर पर कर्मचारियों) में कमी की ओर इशारा करता है जो जमीनी स्तर पर नीतियों के कार्यान्वयन को प्रभावित करता है। क्षेत्र में वी.डी.ओ. पर अधिक जिम्मेदारी के साथ उनकी दक्षता भी घट जाती है। जमीनी स्तर पर बेहतर और कुशल कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए पदों को जल्द से जल्द भरा जाना चाहिए।

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