सरकार के इस कड़े कदम से विभागों में मची हुई है खलबली!
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सरकार के इस कड़े कदम से विभागों में मची हुई है खलबली!देवभूमि मीडिया ब्यूरो वहीं सीआरएस पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना है कि जिनके पास जो जिम्मेदारी है, उन्हें वह निभाना ही चाहिए। सरकार ने अधिकारी काम करने के लिए बनाए हैं। यदि कोई काम नहीं करेगा तो उन्हें तो सरकार घर भेजेगी ही। सरकार ने अनिवार्य सेवानिवृत्ति का फैसला लिया है।– त्रिवेंद्र सिंह रावत, मुख्यमंत्रीदेहरादून : मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कामचोर और अक्षम अफसरों और कर्मचारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति पर भेजने के एलान से सचिवालय से लेकर प्रदेश के तमाम विभागों तक में खलबली का माहौल है। मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने कार्मिक विभाग को इस मसले पर कार्रवाई करने के पहले ही निर्देश जारी कर दिए हैं। इसके बाद अब प्रशासनिक विभागों के स्तर पर कामचोर और भ्रष्ट आचरण वाले लोकसेवकों की सूची बनाने की कवायद शुरू हो गई है। सरकार के इस कड़े कदम से विभागों में खलबली का माहौल है अब तक कामचोर और भ्रष्टाचार में लिप्त रहे ऐसे लोग खुद ही बाहर निकलने का रास्ता खोजने में जुट गए हैं ताकि कम से कम इज्जत तो बची रहे। प्रशासनिक सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सरकार की इस कार्रवाई के लपेटे में उन कारिंदों के आने की ज्यादा संभावना है, जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में जांच चल रही है या फिर वे बीमारी का बहाना बनाकर की लंबी छुट्टी पर चल रहे हैं। वहीं उत्तराखंड कार्मिक शिक्षक आउटसोर्स संयुक्त मोर्चा के मुख्य संयोजकठाकुर प्रहलाद सिंह का कहना है कि ” हम मुख्यमंत्री के फैसले का स्वागत करते हैं। इससे कार्य संस्कृति में सुधार होगा और कड़ा संदेश जाएगा, लेकिन सरकार उन विभागाध्यक्षों पर कार्रवाई करे। जिनकी हठधर्मिता की वजह से कर्मचारियों को कार्य से विरत होना पड़ता है। सरकार का यह ऐतिहासिक कदम है।”सूत्रों के अनुसार तो अकेले लोक निर्माण विभाग में ही 80 से अधिक प्रकरणों में इस तरह की जांच चल रही है जबकि पुलिस विभाग भी इससे अछूता नहीं है यहां भी कई इंस्पेक्टर और दरोगा भी इसी तरह की जांच का सामना कर रहे हैं। इसी तरह सिंचाई, शिक्षा, ऊर्जा, पेयजल, शहरी विकास, आवास समेत कई अन्य विभागों में भी ऐसे कई प्रकरण हैं जहां कई जांच की आंच के दायरे में हैं। प्रशासनिक सूत्रों के मुताबिक, सबसे पहले गाज ऐसे ही कर्मियों पर गिर सकती है। वहीं यह भी खा जा रहा है कि यदि सरकार ने पूरी शक्ति के साथ सीआरएस को लागू किया तो सैकड़ों नकारा अफसर-कर्मचारियों को घर जाना पड़ सकता है। ऐसे में ऐसे कर्मचारी और अधिकारी खुद ही अपने पिछले सेवा रिकॉर्ड को बारीकी से जांचने पर जुटे हुए हैं कि कहीं उनका तो नंबर नहीं। इधर उत्तराखंड अधिकारी-कर्मचारी समन्वय मंच के प्रांतीय प्रवक्ता पूर्णानंद नौटियाल का कहना है कि ”हम सरकार के इस कदम का स्वागत करते हैं, लेकिन सरकार को यह भी सुनिश्चित करे कि सीआरएस का दुरुपयोग न हो। यदि कर्मचारी सरकार से हजारों रुपये का वेतन प्राप्त करते हैं, तो उनकी भी यह जवाबदेही बनती है।गौरतलब हो कि प्रदेश के सभी सरकारी विभागों में लगभग 1.50 लाख से अधिक राजकीय कर्मचारी तैनात हैं जबकि लगभग 40 हजार से ज्यादा कर्मचारी निगमों व उपक्रमों में तैनात होने के साथ ही लगभग 20 हजार से अधिक आउटसोर्स कर्मचारी भी प्रदेश के तमाम विभागों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार सीआरएस कई आधार तय किये जा रहे हैं जिनमें वे अधिकारी और कर्मचारी हामिल होंगे जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में कभी कोई एक्शन हुआ हो, उन अधिकारीयों और कर्मचारियों जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में जांच गतिमान हो , वहीं कुछ ऐसे अधिकारी और कर्मचारी जिनकी पिछले कई सालों से वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट खराब रही है और कुछ ऐसे नकारा अधिकारी और कर्मचारी हैं जो 50 की उम्र पार कर चुके हैं और बीमारी की छुट्टी पर ज्यादा रहते हैं और वे अधिकारी और कर्मचारी जिन्हे कभी सेवा नियमावली के उल्लंघन में दोषी पाया गया हो इन्हे सरकार आने वाले कुछ दिनों में जबरन सेवानिवृत कर सकती है।
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
वहीं सीआरएस पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना है कि जिनके पास जो जिम्मेदारी है, उन्हें वह निभाना ही चाहिए। सरकार ने अधिकारी काम करने के लिए बनाए हैं। यदि कोई काम नहीं करेगा तो उन्हें तो सरकार घर भेजेगी ही। सरकार ने अनिवार्य सेवानिवृत्ति का फैसला लिया है।
– त्रिवेंद्र सिंह रावत, मुख्यमंत्री
देहरादून : मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कामचोर और अक्षम अफसरों और कर्मचारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति पर भेजने के एलान से सचिवालय से लेकर प्रदेश के तमाम विभागों तक में खलबली का माहौल है। मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने कार्मिक विभाग को इस मसले पर कार्रवाई करने के पहले ही निर्देश जारी कर दिए हैं। इसके बाद अब प्रशासनिक विभागों के स्तर पर कामचोर और भ्रष्ट आचरण वाले लोकसेवकों की सूची बनाने की कवायद शुरू हो गई है। सरकार के इस कड़े कदम से विभागों में खलबली का माहौल है अब तक कामचोर और भ्रष्टाचार में लिप्त रहे ऐसे लोग खुद ही बाहर निकलने का रास्ता खोजने में जुट गए हैं ताकि कम से कम इज्जत तो बची रहे।
प्रशासनिक सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सरकार की इस कार्रवाई के लपेटे में उन कारिंदों के आने की ज्यादा संभावना है, जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में जांच चल रही है या फिर वे बीमारी का बहाना बनाकर की लंबी छुट्टी पर चल रहे हैं।
वहीं उत्तराखंड कार्मिक शिक्षक आउटसोर्स संयुक्त मोर्चा के मुख्य संयोजकठाकुर प्रहलाद सिंह का कहना है कि ” हम मुख्यमंत्री के फैसले का स्वागत करते हैं। इससे कार्य संस्कृति में सुधार होगा और कड़ा संदेश जाएगा, लेकिन सरकार उन विभागाध्यक्षों पर कार्रवाई करे। जिनकी हठधर्मिता की वजह से कर्मचारियों को कार्य से विरत होना पड़ता है। सरकार का यह ऐतिहासिक कदम है।”
सूत्रों के अनुसार तो अकेले लोक निर्माण विभाग में ही 80 से अधिक प्रकरणों में इस तरह की जांच चल रही है जबकि पुलिस विभाग भी इससे अछूता नहीं है यहां भी कई इंस्पेक्टर और दरोगा भी इसी तरह की जांच का सामना कर रहे हैं। इसी तरह सिंचाई, शिक्षा, ऊर्जा, पेयजल, शहरी विकास, आवास समेत कई अन्य विभागों में भी ऐसे कई प्रकरण हैं जहां कई जांच की आंच के दायरे में हैं। प्रशासनिक सूत्रों के मुताबिक, सबसे पहले गाज ऐसे ही कर्मियों पर गिर सकती है। वहीं यह भी खा जा रहा है कि यदि सरकार ने पूरी शक्ति के साथ सीआरएस को लागू किया तो सैकड़ों नकारा अफसर-कर्मचारियों को घर जाना पड़ सकता है। ऐसे में ऐसे कर्मचारी और अधिकारी खुद ही अपने पिछले सेवा रिकॉर्ड को बारीकी से जांचने पर जुटे हुए हैं कि कहीं उनका तो नंबर नहीं।
इधर उत्तराखंड अधिकारी-कर्मचारी समन्वय मंच के प्रांतीय प्रवक्ता पूर्णानंद नौटियाल का कहना है कि ”हम सरकार के इस कदम का स्वागत करते हैं, लेकिन सरकार को यह भी सुनिश्चित करे कि सीआरएस का दुरुपयोग न हो। यदि कर्मचारी सरकार से हजारों रुपये का वेतन प्राप्त करते हैं, तो उनकी भी यह जवाबदेही बनती है।