पहाड़ों के गांवों में इस प्रकार की घटनाओं का होना, कुछ और संकेत दे रहा है
पहाड़ों के गांवों में इस प्रकार की घटनाओं का होना, कुछ और संकेत दे रहा है डॉ. राजेश्वर उनियालबंधुओ, उत्तराखंड के जिला चमोली के नंदप्रयाग से लगभग तीन किलोमीटर ऊपर स्थित गांव बगना में हाल ही में १३-१४ अक्टूबर,२०२० को कुछ चोरों ने श्री बुद्धि प्रसाद देवली जी के घर का ताला तोड़कर, उनके घर में सेंधमारी की है। यह घटना किस समय हुई, उन्हें इसका भी ठीक से पता नहीं है । वह स्वयं मुंबई में और उनके दूसरे भाई श्री हरि प्रकाश, दिल्ली,नोएडा में रहते हैं और उनके सबसे छोटे भाई श्री राकेश चंद्र, सेना में हैं । गांव में केवल पांच सात लोग हैं, जिनका घर कुछ दूरी पर स्थित है । जब कुछ दिन बाद उनके किराएदार, जो अध्यापकगण हैं, अवकाश से लौटे, तो उन्होंने यह सूचना दी । हालांकि अब पटवारी को रिपोर्ट लिखवा दी गई है व सरकारी छानबीन चल रही है, परंतु पहाड़ों के गांवों में इस प्रकार की घटनाओं का होना, कुछ और संकेत भी दे रहा है । यह निश्चित रूप से एक चिंताजनक बात है । यह तो कहा जा सकता है कि हम अभी उस स्थिति में नहीं पहुंचे हैं कि हम ऐसी घटनाओं के लिए अपने ही गांववासियों या आसपास के लोगों पर कोई संदेह करें, लेकिन हमारे पहाड़ों में पिछले कई दशकों से पुराने बर्तन, गहने आदि बदलने व बढ़ई आदि का काम करने के बहाने जो नजीबाबादी व बिजनौरी मुसलमान आदि हमारे गांवों में आते रहे हैं, उन्हें हमारे गांवों की वर्तमान स्थिति की समझ हमसे अधिक होती है ।गत कुछ वर्षों से विशेषकर उत्तरांचल उत्थान परिषद, के मेरा गांव मेरा तीर्थ, जैसे अभियानों और हाल ही में किए जा रहे सरकारी प्रयासों व कोरोना महामारी आदि कई कारणों से हमारे प्रवासी भाई बंधु फिर से अपने गांवों को लौटकर पुनर्वास करने लगे हैं । उदाहरण के लिए इसी घटना में बंधुवर श्री बुद्धि प्रसाद देवली जी ने बताया कि उन्होंने अपने ग्रामवासियों के प्रयासों से गांव में लगभग 1500-2000 फलदार वृक्ष लगाए हैं तथा वहां लगभग 4 करोड रुपए की योजना का सोलर एनर्जी प्लांट लग रहा है, जिसमें चार-पांच हजार सौर्य प्लेटें बनेंगी । निश्चित रूप से इन सब प्रयासों से आने वाले कुछ दशकों में हमारे पहाड़ों के गांव फिर से हरे-भरे होने की संभावनाएं बढ़ रही हैं । लेकिन इससे समस्या उन असमाजिक तत्वों को होने लगी है, जो कि गत कई दशकों से उत्तराखंड का सामाजिक ताना-बाना बदलकर इसे एक दिन कश्मीर जैसा विवादास्पद क्षेत्र बनाने पर तुले हैं । इतना ही नहीं तो अभी कुछ दिन पहले ही वहीं के पोस्ट आफिस का ताला भी तोडा गया था । आजकल सोशल मीडिया में भी देखने को मिलता है कि किस प्रकार से उत्तराखंड की सड़कों के किनारे किसी पीर बाबा ने जन्म लेकर व वहीं दफन भी होकर समाधि भी ले ली है । वहां हरा झंडा फहराकर एक चबूतरा भी बना दिया जा रहा है। अभी तो चबूतरा है, कुछ दशक बाद वहां बड़ी मस्जिद होंगी, फिर आसपास रोहिंग्या या बांग्लादेशी आबादी बसेगी और फिर हमें श्रीबद्रीनाथ एवं श्रीकेदारनाथ भगवान की तीर्थयात्रा करने के लिए अमरनाथ जैसी सैन्य सुरक्षा की आवश्यकता होगी । कहीं देश के दुर्भाग्य से उस समय दिल्ली के तख्त पर सेकुलर तत्वों का अधिकार होगा, तो सेना को भी धर्मनिरपेक्षता का चोला पहनाया जाने लगेगा । हम अच्छी तरह जानते हैं कि पिछली सरकारों ने किस प्रकार से सेना में धार्मिक गणना करवाने का आदेश दिया था । वह तो उस समय के सैन्य अधिकारियों ने इसे स्वीकार नहीं किया, परंतु भविष्य में क्या हो सकता है, इसकी एक घंटी तो बज चुकी है । अब तो हालत यहां तक आ चुके हैं कि अभी हाल ही में टिहरी जिले में एक गांव के कुछ मुसलमानों ने गांव के बीच में पत्थर डालकर गांव के लोगों का रास्ता बंद कर दिया है । जब गांव के लोग विरोध करने गए तो उन्होंने उन्हें तलवार से काटने की धमकी दे दी । अब सोचिए कि अभी तो ये पहाड़ों में गिनती भर के हैं तो सरेआम तलवार से काटने की धमकी दे रहे हैं, परंतु जिस गति से ये पहाड़ों में जमीन खरीद रहे हैं, व वहां बस रहे हैं, तो जब ये दस बीस प्रतिशत भी हो जाएंगे, तो तब क्या होगा । उत्तराखंड के गांवों में हिंदुओं के तो केवल बुजुर्ग, महिलाएं या बच्चे ही रहते हैं । जो युवक हैं भी, वे सेकुलर का झंडा पकड़कर अपने को परमज्ञानी समझने की ऐतिहासिक भूल कर रहे हैं ।इसलिए मेरी व्यक्तिगत राय है कि पोस्ट ऑफिस का ताला तोड़ना या गांव में चोरी की इस प्रकार की घटना को केवल चोरी का मामला मानकर नहीं बैठना चाहिए, बल्कि इस पर हमारे उत्तराखंड के राजनीतिज्ञों, समाजसेवियों, जागरूक नागरिकों वह विशेषकर धार्मिक संगठनों को तथा प्रशासन को गंभीरता से विचार करना चाहिए । हो सकता है कि यह चोरी केवल सामान्य चोरी ही रही हो, लेकिन उत्तराखंड में जो वर्तमान का परिदृश्य फिर से बदलने लगा है, प्रवासी वापस आने लगे हैं और अपने घरों को बसाने लगे हैं, इससे उत्तराखंड में धर्मपरिवर्तन करने वाली इसाई मिशनरियों व विदेशी ताकतों के बल पर असामाजिक कार्य करने वाले मुस्लिम संगठनों को निश्चित रूप से परेशानी होने लगी है । इसलिए वे इस प्रकार का भय का वातावरण बनाकर लोगों को हतोत्साहित करने लगे हैं, ताकि हम अपने गांवों का पुनर्वास व गांवों में विनियोग करना बंद कर दें, ताकि सौ पचास साल बाद ये तत्व हमारे धार्मिक राज्य उत्तराखंड को भी मिजोरम, नागालैंड व कश्मीर की तरह अशांत क्षेत्र बनाकर अपने अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र को पूरा कर सकें । हमने देखा होगा कि कुछ वर्ष पहले तक कैसे अफवाह उड़ाई जाती थी कि पहाड़ों में बानर सब फल खा जाते हैं, भालू सब सब्जियां उखाड़ देते हैं । पहाड़ बंजर हो गया है, वहां जाने से कोई लाभ नहीं है । लेकिन अब क्या हो रहा है ? अब फलोत्पादन हो रहे हैं या बागवानी फिर से सजने लगी है । तो क्या अब बंदरों व भालुओं ने संन्यास ले लिया है । दरअसल यह सब एक सुनियोजित ढंग से हवा बनाई जाती थी, ताकि प्रवासी लोग अपने गांवों से विमुख हो जाएं और उन गांव में यह बाहरी तत्व अपना वर्चस्व बना सकें । इसलिए समय आ गया है कि अब हम उत्तराखंड के मूल निवासियों को इस बात को गंभीरता से लेना होगा कि हमारा उत्तराखंड हिंदू धर्म का सबसे पावन स्थल है । यहां देवताओं का वास है । धर्म तो हमारा सनातन है, परंतु उस स्थल की पवित्रता को बनाए रखना हमारा परम् कर्त्तव्य होगा और उत्तराखंड में इसाई मिशनरियों तथा मुस्लिम संगठनों के बढ़ रहे षड्यंत्रकारी क्रियाकलापों पर हमें सजगता से नजर रखनी होगी । इनकी गांवों में चोरी व मारकाट जैसे घटनाएं अभी केवल प्रथम और प्रायोगिक चरण में है, यदि हमने इस ओर अभी सजगता के साथ ध्यान देकर इसे नहीं रोका, तो भविष्य में स्थिति और भयावह हो जाएगी ।
डॉ. राजेश्वर उनियाल
हमारे पहाड़ों में पिछले कई दशकों से पुराने बर्तन, गहने आदि बदलने व बढ़ई आदि का काम करने के बहाने जो नजीबाबादी व बिजनौरी मुसलमान आदि हमारे गांवों में आते रहे हैं, उन्हें हमारे गांवों की वर्तमान स्थिति की समझ हमसे अधिक होती है । गत कुछ वर्षों से विशेषकर उत्तरांचल उत्थान परिषद, के मेरा गांव मेरा तीर्थ, जैसे अभियानों और हाल ही में किए जा रहे सरकारी प्रयासों व कोरोना महामारी आदि कई कारणों से हमारे प्रवासी भाई बंधु फिर से अपने गांवों को लौटकर पुनर्वास करने लगे हैं ।
बंधुओ, उत्तराखंड के जिला चमोली के नंदप्रयाग से लगभग तीन किलोमीटर ऊपर स्थित गांव बगना में हाल ही में १३-१४ अक्टूबर,२०२० को कुछ चोरों ने श्री बुद्धि प्रसाद देवली जी के घर का ताला तोड़कर, उनके घर में सेंधमारी की है। यह घटना किस समय हुई, उन्हें इसका भी ठीक से पता नहीं है । वह स्वयं मुंबई में और उनके दूसरे भाई श्री हरि प्रकाश, दिल्ली,नोएडा में रहते हैं और उनके सबसे छोटे भाई श्री राकेश चंद्र, सेना में हैं । गांव में केवल पांच सात लोग हैं, जिनका घर कुछ दूरी पर स्थित है । जब कुछ दिन बाद उनके किराएदार, जो अध्यापकगण हैं, अवकाश से लौटे, तो उन्होंने यह सूचना दी । हालांकि अब पटवारी को रिपोर्ट लिखवा दी गई है व सरकारी छानबीन चल रही है, परंतु पहाड़ों के गांवों में इस प्रकार की घटनाओं का होना, कुछ और संकेत भी दे रहा है ।
यह निश्चित रूप से एक चिंताजनक बात है । यह तो कहा जा सकता है कि हम अभी उस स्थिति में नहीं पहुंचे हैं कि हम ऐसी घटनाओं के लिए अपने ही गांववासियों या आसपास के लोगों पर कोई संदेह करें, लेकिन हमारे पहाड़ों में पिछले कई दशकों से पुराने बर्तन, गहने आदि बदलने व बढ़ई आदि का काम करने के बहाने जो नजीबाबादी व बिजनौरी मुसलमान आदि हमारे गांवों में आते रहे हैं, उन्हें हमारे गांवों की वर्तमान स्थिति की समझ हमसे अधिक होती है ।
गत कुछ वर्षों से विशेषकर उत्तरांचल उत्थान परिषद, के मेरा गांव मेरा तीर्थ, जैसे अभियानों और हाल ही में किए जा रहे सरकारी प्रयासों व कोरोना महामारी आदि कई कारणों से हमारे प्रवासी भाई बंधु फिर से अपने गांवों को लौटकर पुनर्वास करने लगे हैं । उदाहरण के लिए इसी घटना में बंधुवर श्री बुद्धि प्रसाद देवली जी ने बताया कि उन्होंने अपने ग्रामवासियों के प्रयासों से गांव में लगभग 1500-2000 फलदार वृक्ष लगाए हैं तथा वहां लगभग 4 करोड रुपए की योजना का सोलर एनर्जी प्लांट लग रहा है, जिसमें चार-पांच हजार सौर्य प्लेटें बनेंगी । निश्चित रूप से इन सब प्रयासों से आने वाले कुछ दशकों में हमारे पहाड़ों के गांव फिर से हरे-भरे होने की संभावनाएं बढ़ रही हैं । लेकिन इससे समस्या उन असमाजिक तत्वों को होने लगी है, जो कि गत कई दशकों से उत्तराखंड का सामाजिक ताना-बाना बदलकर इसे एक दिन कश्मीर जैसा विवादास्पद क्षेत्र बनाने पर तुले हैं । इतना ही नहीं तो अभी कुछ दिन पहले ही वहीं के पोस्ट आफिस का ताला भी तोडा गया था ।
आजकल सोशल मीडिया में भी देखने को मिलता है कि किस प्रकार से उत्तराखंड की सड़कों के किनारे किसी पीर बाबा ने जन्म लेकर व वहीं दफन भी होकर समाधि भी ले ली है । वहां हरा झंडा फहराकर एक चबूतरा भी बना दिया जा रहा है। अभी तो चबूतरा है, कुछ दशक बाद वहां बड़ी मस्जिद होंगी, फिर आसपास रोहिंग्या या बांग्लादेशी आबादी बसेगी और फिर हमें श्रीबद्रीनाथ एवं श्रीकेदारनाथ भगवान की तीर्थयात्रा करने के लिए अमरनाथ जैसी सैन्य सुरक्षा की आवश्यकता होगी । कहीं देश के दुर्भाग्य से उस समय दिल्ली के तख्त पर सेकुलर तत्वों का अधिकार होगा, तो सेना को भी धर्मनिरपेक्षता का चोला पहनाया जाने लगेगा । हम अच्छी तरह जानते हैं कि पिछली सरकारों ने किस प्रकार से सेना में धार्मिक गणना करवाने का आदेश दिया था । वह तो उस समय के सैन्य अधिकारियों ने इसे स्वीकार नहीं किया, परंतु भविष्य में क्या हो सकता है, इसकी एक घंटी तो बज चुकी है ।
अब तो हालत यहां तक आ चुके हैं कि अभी हाल ही में टिहरी जिले में एक गांव के कुछ मुसलमानों ने गांव के बीच में पत्थर डालकर गांव के लोगों का रास्ता बंद कर दिया है । जब गांव के लोग विरोध करने गए तो उन्होंने उन्हें तलवार से काटने की धमकी दे दी । अब सोचिए कि अभी तो ये पहाड़ों में गिनती भर के हैं तो सरेआम तलवार से काटने की धमकी दे रहे हैं, परंतु जिस गति से ये पहाड़ों में जमीन खरीद रहे हैं, व वहां बस रहे हैं, तो जब ये दस बीस प्रतिशत भी हो जाएंगे, तो तब क्या होगा । उत्तराखंड के गांवों में हिंदुओं के तो केवल बुजुर्ग, महिलाएं या बच्चे ही रहते हैं । जो युवक हैं भी, वे सेकुलर का झंडा पकड़कर अपने को परमज्ञानी समझने की ऐतिहासिक भूल कर रहे हैं ।
इसलिए मेरी व्यक्तिगत राय है कि पोस्ट ऑफिस का ताला तोड़ना या गांव में चोरी की इस प्रकार की घटना को केवल चोरी का मामला मानकर नहीं बैठना चाहिए, बल्कि इस पर हमारे उत्तराखंड के राजनीतिज्ञों, समाजसेवियों, जागरूक नागरिकों वह विशेषकर धार्मिक संगठनों को तथा प्रशासन को गंभीरता से विचार करना चाहिए । हो सकता है कि यह चोरी केवल सामान्य चोरी ही रही हो, लेकिन उत्तराखंड में जो वर्तमान का परिदृश्य फिर से बदलने लगा है, प्रवासी वापस आने लगे हैं और अपने घरों को बसाने लगे हैं, इससे उत्तराखंड में धर्मपरिवर्तन करने वाली इसाई मिशनरियों व विदेशी ताकतों के बल पर असामाजिक कार्य करने वाले मुस्लिम संगठनों को निश्चित रूप से परेशानी होने लगी है । इसलिए वे इस प्रकार का भय का वातावरण बनाकर लोगों को हतोत्साहित करने लगे हैं, ताकि हम अपने गांवों का पुनर्वास व गांवों में विनियोग करना बंद कर दें, ताकि सौ पचास साल बाद ये तत्व हमारे धार्मिक राज्य उत्तराखंड को भी मिजोरम, नागालैंड व कश्मीर की तरह अशांत क्षेत्र बनाकर अपने अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र को पूरा कर सकें ।
हमने देखा होगा कि कुछ वर्ष पहले तक कैसे अफवाह उड़ाई जाती थी कि पहाड़ों में बानर सब फल खा जाते हैं, भालू सब सब्जियां उखाड़ देते हैं । पहाड़ बंजर हो गया है, वहां जाने से कोई लाभ नहीं है । लेकिन अब क्या हो रहा है ? अब फलोत्पादन हो रहे हैं या बागवानी फिर से सजने लगी है । तो क्या अब बंदरों व भालुओं ने संन्यास ले लिया है । दरअसल यह सब एक सुनियोजित ढंग से हवा बनाई जाती थी, ताकि प्रवासी लोग अपने गांवों से विमुख हो जाएं और उन गांव में यह बाहरी तत्व अपना वर्चस्व बना सकें ।
इसलिए समय आ गया है कि अब हम उत्तराखंड के मूल निवासियों को इस बात को गंभीरता से लेना होगा कि हमारा उत्तराखंड हिंदू धर्म का सबसे पावन स्थल है । यहां देवताओं का वास है । धर्म तो हमारा सनातन है, परंतु उस स्थल की पवित्रता को बनाए रखना हमारा परम् कर्त्तव्य होगा और उत्तराखंड में इसाई मिशनरियों तथा मुस्लिम संगठनों के बढ़ रहे षड्यंत्रकारी क्रियाकलापों पर हमें सजगता से नजर रखनी होगी । इनकी गांवों में चोरी व मारकाट जैसे घटनाएं अभी केवल प्रथम और प्रायोगिक चरण में है, यदि हमने इस ओर अभी सजगता के साथ ध्यान देकर इसे नहीं रोका, तो भविष्य में स्थिति और भयावह हो जाएगी ।
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